इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा, तीन तलाक मुस्लिम महिला के साथ क्रूरता

सुलह के सारे प्रयास विफल होने पर कुरान देता है तलाक की अनुमति, याचिका खारिज

पर्सनल लॉ संविधान प्रदत्त अधिकारों से ऊपर नहीं हो सकता। तीन तलाक मुस्लिम महिलाओं के साथ क्रूरता है। यह न तो समाज के हित में है और न देश के हित में। यह कमेंट किया इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तलाक के एक मामले में सुनवाई के दौरान। कोर्ट ने इस सबंध में दाखिल याचिका को खारिज कर दिया है।

यह फैसला तलाक की वैधता पर नहीं

फैसला सुनाते हुए जस्टिस सुनीत कुमार ने कहा कि तीन तलाक मुद्दे की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट कर रहा है। वह निकाह या तलाक की वैधता पर कोई फैसला नहीं दे रहे। कोर्ट ने कहा है कि पवित्र कुरान तलाक या खुला की छूट देता है। लेकिन इसकी अनुमति तभी है जब पति-पत्नी के बीच सुलह के बीच सुलह के सभी रास्ते बंद हो चुके हों। लोग अपनी सुविधा के लिए तीन तलाक के इस्लामिक कानून की व्याख्या कर जायज ठहरा रहे हैं। यह गलत है क्योंकि कोई भी पर्सनल लॉ संवैधानिक प्रावधानों से ऊपर नहीं हो सकता।

पति ने फोन पर दिया तलाक

कोर्ट ने यह फैसला दो याचिकाओं को सुनने के बाद दिया है। एक मामले में एक 53 साल के पुरुष ने 23 साल की याची से शादी की जो दो बच्चों की मां थी। उसने अपनी पत्नी को तलाक देकर निकाह कर लिया। जब परिवार व अन्य लोग परेशान करने लगे तो हाईकोर्ट में सुरक्षा की गुहार लगायी। कोर्ट ने अपनी उम्र से आधी उम्र की लड़की से निकाह के लिए पत्नी को तलाक देने के कारण याचिका पर हस्तक्षेप करने से इन्कार करते हुए याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि यदि पत्नी के आचरण या बुरे चरित्र के चलते वैवाहिक जीवन दु:खमय हो गया हो तो अपरिहार्य होने पर कुरान में तलाक की व्यवस्था दी गयी है। कुरान में भी तलाक को अच्छा नहीं माना गया है। बिना किसी ठोस वजह के तलाक धार्मिक या कानून की निगाह में सही नहीं माना जाता। कई देशों में तलाक के लिए कोर्ट को कारणों से संतुष्ट करना पड़ता है। दूसरे मामले में पति दुबई में रहता था। हसीन मियां की पत्नी उमर बी ने मुस्लिम अली से यह कहते हुए निकाह कर लिया कि पति ने दुबई से टेलीफोन पर तीन तलाक दे दिया है। जबकि, पति ने तलाक देने से इन्कार किया। कोर्ट ने हस्तक्षेप न कर इस मामले को एसपी के समक्ष भेज दिया है। पहले मामले में बुलंदशहर की श्रीमती हिना ने अपने दूने उम्र के पुरुष से निकाह किया। उसने अपनी पत्नी को तलाक देकर निकाह किया और कोर्ट में सुरक्षा की गुहार लगायी।

सभी मुसलमान तीन तलाक को नहीं मानते किन्तु भारत में बड़ा मुस्लिम समाज तीन तलाक को स्वीकार कर रहा है। जो महिलाओं को संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों के खिलाफ है तथा है तथा भारत को एक राष्ट्र होने में बाधक है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट

Posted By: Inextlive