सरकारी वकीलों की नियुक्ति को चुनौती खारिज
कोर्ट ने लखनऊ पीठ ने लंबित याचिका में अर्जी दाखिल करने की दी छूट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य विधि अधिकारियों की मनमानी नियुक्ति के खिलाफ याचिका वापस करते हुए खारिज कर दी है और याची को छूट दी है कि वह लखनऊ खण्डपीठ के समक्ष विचाराधीन याचिका में अन्तर्हस्तक्षेपी अर्जी दाखिल कर मुद्दे उठा सकते हैं। लखनऊ पीठ में महेन्द्र सिंह पवार ने याचिका दाखिल कर अयोग्यों को सरकारी वकील नियुक्त करने की वैधता को चुनौती दी है। चहेतों की नियुक्ति का आरोपयह आदेश चीफ जस्टिस डीबी भोसले तथा जस्टिस यशवन्त वर्मा की खण्डपीठ ने अधिवक्ता सुनीता शर्मा की जनहित याचिका पर दिया है। याचिका पर अधिवक्ता विजयचन्द्र श्रीवास्तव ने बहस की। याची का कहना था कि सरकारी वकीलों की नियुक्तियों में एलआर मैनुअल के उपबन्धों का पालन नहीं किया गया है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट के वृजेश्वर सिंह चहल केस की गाइड लाइन का खुला उल्लंघन किया गया है। याची का यह भी कहना था कि सरकारी धन का भुगतान करने के कारण राज्य सरकार को अयोग्य व अपने चहेतो की नियुक्ति करने का मनमाना अधिकार नहीं है। याचिका में सरकारी वकीलों की नियुक्ति की अधिसूचनाओं को निरस्त कर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन व मानको के अनुसार नियुक्ति किये जाने की मांग की गयी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने तय की है गाइड लाइन
सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी गठित कर योग्य वकीलों की नियुक्ति करने के सम्बन्ध में दिशा निर्देश जारी किये गये हैं और कार्यरत अधिवक्ताओं को बिना ठोस आधार के मनमाने तौर पर हटा दिया गया है। महिला अधिवक्ताओं की भी अनदेखी की गयी है। कोर्ट ने याची को सभी मुद्दे लखनऊ पीठ में उठाने की छूट दी है। अधिवक्ता सुनीता शर्मा का कहना है कि वह शीघ्र ही लखनऊ पीठ में अन्तर्हस्तक्षेपी अर्जी दाखिल करेंगी।