कोर्ट ने कहा मृत कर्मचारी की सेवानिवृत्ति तक या तीन से पांच साल तक वेतन के बराबर भुगतान का कानून बने.

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PRAYAGRAJ : ऐसा तरीका अपनाया जाए जिससे खुली प्रतियोगिता से योग्य की नियुक्ति व सामाजिक न्याय दोनों की पूर्ति हो सके। ऐसा न हो कि मृत आश्रित कोटे में ही नियुक्तियां हों और योग्यता न होने के बाद भी सिर्फ वही काम करते दिखें और योग्यता के साथ अन्याय हो। यह कहना है इलाहाबाद हाई कोर्ट का। कोर्ट ने वेडनसडे को सरकार को सुझाव दिया है कि वह मृतक आश्रितों को संबंधित महकमे में अनुकंपा नियुक्ति देने के बजाय एक पैकेज ऑफर करे। इस पैकेज में मृत कर्मचारी की सेवानिवृत्ति तक या तीन से पांच साल तक उसे मिल रहे वेतन के बराबर आश्रित को भुगतान दिया जाए। इस कदम से परिवार को अचानक आयी आपत्ति से उबरने में तात्कालिक मदद मिलेगी। आश्रित खुली प्रतियोगिता में चयनित होने लायक बनेगा। सरकारी विभाग को भी योग्य अभ्यर्थी मिलेंगे।

खुली प्रतियोगिता से हो नियुक्ति
कोर्ट ने यह भी कहा है कि मृतक आश्रितों की भारी संख्या और पदों की कमी को देखते हुए सरकार ऐसा तरीका अपनाए जिससे खुली प्रतियोगिता में योग्य की नियुक्त हो। आश्रितों को भी सामाजिक न्याय मिले। ऐसा करने से खुली प्रतियोगिता से नियुक्ति के अवसर बढ़ेंगे। यह आदेश जस्टिस पंकज मित्तल व प्रकाश पाडिया की बेंच ने अंकुर गौतम व अन्य की याचिका को खारिज करते हुए दिया है।

आश्रित नियुक्ति बढ़ाने पर हो रही थी सुनवाई

पुलिस विभाग में नियम 5(1) अनुच्छेद 14 व 16 में तय पदों में से केवल पांच प्रतिशत रिक्तियों पर ही आश्रित की नियुक्ति की अनुमति है।

इस नियम के अनुसार सीधी भर्ती के पांच प्रतिशत रिक्तियों पर आश्रितों की संख्या ज्यादा होने पर टेस्ट से मेरिट पर उनका चयन किया जाएगा।

अधिवक्ता प्रभाकर अवस्थी का कहना था कि यह नियम ठीक नहीं है। इससे बहुत से आश्रित नियुक्ति नहीं पा सकेंगे।

इस स्थिति को देखते हुए आश्रित की नियुक्ति का प्रतिशत बढ़ाया जानार चाहिये

कोर्ट ने कहा

सीधी भर्ती कोटे के पांच प्रतिशत पदों पर आश्रितों की नियुक्ति का रूल ओके है

ऐसा न करने से आश्रितों की संख्या अधिक व सीधी भर्ती के अवसर कम होंगे

पुलिस विभाग में खाली पदों का 50 प्रतिशत सीधी भर्ती व 50 प्रतिशत पदोन्नति से भरने का नियम है।

कोर्ट ने यह भी कहा कि कानून सही है। अब जो इसे चुनौती देगा उसे सिद्ध करना होगा कि किस प्रकार यह संविधान के उपबंधों के विपरीत है।

नियुक्तियां सीधी भर्ती से ही की जानी चाहिए, आश्रित की अनुकंपा नियुक्ति अपवाद है। सामाजिक न्याय के तहत होने वाली यह नियुक्ति आश्रित का अधिकार नहीं है। अचानक आयी विपत्ति से बचाव के लिए यह व्यवस्था की गयी है। यह बैकडोर इंट्री है। इसे सही नहीं कहा जा सकता।

इलाहाबाद हाई कोर्ट

Posted By: Inextlive