Patna : 'नगमे हैं शिकवे हैं किस्से हैं बातें हैं. बातें भूल जाती हैं यादें याद आती हैं...' याद और यादों का यह सिलसिला पटना वीमेंस कॉलेज में चल रहा था. स्टूडेंट्स अपने कॉलेज की यादों में खोए हुए थे.


First time एल्युमिनाई मीट
शनिवार को कॉलेज में फस्र्ट टाइम एल्युमिनाई मीट आयोजित किया गया। इस मौके पर एल्युमिनाई एसोसिएशन की चेयरपर्सन डॉ। सिस्टर मारिया जेसिया एसी, प्रेसिडेंट मीरा किशोर, जेनरल सक्रेटरी डॉ। शेफाली राय सहित तमाम मेंबर्स मौजूद थीं।

डिसिप्लीन, डेडिकेशन व रेस्पेक्ट अब भी
कॉलेज की बिल्डिंग चेंज हो गई। पढ़ाई का स्टाइल चेंज हो गया। कॉलेज में कई चेंजेज हुए, पर डिसिप्लीन, डेडिकेशन और एक-दूसरे के प्रति रेस्पेक्ट अब भी वैसा ही है। 1951-55 बैच की स्टूडेंट डॉ। इंदिरा प्रसाद ने बताया कि आज भी कॉलेज का डिसिप्लीन अपनी पहचान बनाए हुए है। शायद इसलिए कॉलेज में इतने सालों बाद आने पर भी कोई भी चेंजेज फील नहीं हुआ।

डेजी बेस्ट बॉलर, तो सिस्टर केरोल स्ट्रिक्ट
हमारे कॉलेज में वीमेन क्रिकेट की बेस्ट बॉलर थीं डेजी। हमलोग कोई भी मैच नहीं हारते थे, जिसमें डेजी होती थीं। हमारी सबसे अच्छी टीचर थी सुधा मैम। वे जब अपनी कलरफुल चूडिय़ों के साथ क्लासरूम में आती थीं, तो हमलोग खूब इंज्वॉय करते थे। सिस्टर केरोल बहुत ही स्ट्रिक्ट थीं। छोटी-छोटी गलती पर भी क्लास के बाहर खड़ा कर देती थीं। कहीं पर सिस्टर की डांट, तो कहीं पर टीचर्स संग बिताए गए सुनहरे पल याद किया जा रहा था.

हंसी-मजाक में भी डिसिप्लीन
हमारे कॉलेज में हंसी-मजाक और मस्ती भी डिसिप्लीन में ही होता था, जो अब भी कायम है। हमलोग आपस में एक-दूसरे की खूब खिंचाई करते थे, पर प्रिंसिपल और टीचर्स का ख्याल रखना पड़ता था। उन्हें पता चल जाता, फिर तो शामत आनी थी।
सुधा ठाकुर, बैच 1963-65, बीआईटी में टेक्नीकल इंग्लिश की लेक्चरर

उनसे तो बहुत डर लगता था 
हमारी स्पोट्र्स की टीम थी। वीमेन क्रिकेट की शुरुआत ही हमारे टाइम से हुई थी। उन दिनों खेलने का अपना ही मजा था। हमलोग काफी मस्ती करते थे। लड़ाई भी होती थी, पर मैच होने के बाद एक-दूसरे के साथ बैठकर इंज्वॉय करते थे। सिस्टर केरोल से हम बहुत डरते थे। छोटी सी छोटी गलती भी वे पकड़ लेती थी.
मायाशंकर, चेयर पर्सन, स्पिक मैके, बैच 1972-74

खूब करते थे क्लास बंक
हमलोग क्लास बंक कर मौर्यालोक घूमने जाते थे। जब भी मौका मिलता, क्लास बंक कर लेते थे। एक बार सिस्टर को किसी दूसरी स्टूडेंटस ने बता दिया, फिर तो सिस्टर ने पूरी इंक्वायरी की, पर सिस्टर को हमने पकडऩे नहीं दिया। इस तरह की चीजें हमलोग अक्सर ही करते थे। कॉलेज के वो दिन काफी अच्छे थे। तब मुझे मेरी बेस्ट फ्रेंड सृष्टि मिली, जिससे आज काफी दिन बाद मिली।
कावेरी, रिसर्च स्कॉलर, बैच, 2006-09

जब कॉलेज से भागकर देखे थे फिल्म
हमलोग कॉलेज से भागकर कभी गंगा किनारे, तो कभी फिल्म देखने चले जाते थे। क्लास बंक कर तो कई बार फिल्म भी देखने गए थे। कुछ भी हो जाए, फस्र्ट डे फस्र्ट शो देखना हॉबी बन गई थी। हमलोग इतने अच्छे से सारा काम करते थे कि सिस्टर कभी भी पकड़ नहीं पाईं.
जयश्री, डायरेक्टर, दिल्ली मॉडल हाईस्कूल, बैच 2001-06

Posted By: Inextlive