- मेडिकल कॉलेज में 89 बैच के साथ मना सिल्वर जुबली

- डॉक्टर्स ने माना देश व विदेश में जमीन आसमान का फर्क

- टॉपर्स को दिए गए प्राइज, टॉपर के पिता भी निकले टॉपर

- सिल्वर जुबली अलम्नाई मीट में डॉक्टर्स ने लिए जमकर मजे

- शिवानी कश्यप व सायंतनी के साथ सबके जमकर थिरके कदम

रूद्गद्गह्मह्वह्ल: थिरकते हैं कदम जब मिल बैठते हैं पुराने यार संग। पुरानी बातें और मुलाकातें, बस देखते ही बनती हैं। गले मिलते हैं तो पुरानी यादें एक बार फिर ताजा हो जाती हैं। मन करता है चलो पीछे लौट चलें। कुछ ऐसा ही नजारा लाला लाजपत राय मेडिकल कॉलेज में 89 बैच की सिल्वर जुबली अलम्नाई मीट में देखने को मिला। जहां देश में डॉक्टरी करके विदेश गए डॉक्टर्स ने एक बार फिर अपनी यादें ताजा कीं। पुराने यार मिले तो मानो गले मिलकर दिल में उतर गए। लग रहा था कदम थिरकने से रुकेंगे नहीं और कभी इन यादों में वो थकेंगे नहीं।

यह था मिलन

लाला लाजपत राय मेडिकल कॉलेज में साल 1989 के पास आउट डॉक्टर्स की गुरुवार को अलम्नाई मीट रखी गई थी। 25 साल पूरे होने पर इस बैच ने सिल्वर जुबली प्रोग्राम मनाया। जिसकी तैयारी कॉलेज के ओल्ड स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने की थी। पूरा प्रोग्राम अध्यक्ष डॉ। संदीप, सचिव डॉ। विवेक बंसल, कोऑर्डिनेटर डॉ। अक्षत त्यागी और कोषाध्यक्ष डॉ। आशीष जैन ने ऑर्गेनाइज किया था। सुबह दस बजे से शुरू हुआ मिलन का यह प्रोग्राम लकी ड्रॉ पर खत्म हुआ। प्रोग्राम फेलोशिप और लाइटिंग लैंप से शुरू हुआ। इसके बाद जैसे समय बढ़ता गया प्रोग्राम की आखिरी सीढ़ी की तरफ सब लोग चलते गए। बारह बजे से लेकर एक बजे तक मेरिटोरियस स्टूडेंट्स को एवार्ड डिस्ट्रीबूट किए गए।

इनको मिले प्राइज

एमबीबीएस फ‌र्स्ट ईयर के स्टूडेंट आकाश गोयल को टॉपर्स का फ‌र्स्ट प्राइज मिला। डॉक्टर बनने जा रहे आकाश के पिता डॉ। अजय गोयल कंकरखेड़ा में सीजीएचएस में सीएमओ हैं और मां डॉ। शिखा गोयल भी गायनिक डॉक्टर हैं। आज इनको अपने बेटे को टॉपर्स का फ‌र्स्ट प्राइज मिलते देख खुशी का ठिकाना नहीं था। कभी इन्होंने टॉप किया था आज इनका बेटा टॉप से ही सीढ़ी चढ़ रहा है। इनके साथ ही सेकंड टॉपर्स में में मोनिका छाबड़ा व मोली नंदी रहीं, थर्ड टॉपर दिव्या सरीन, फोर्थ टॉपर बेस्ट ऑलराउंडर नेहा सैनी रहीं। पीडियाट्रिक्स की टॉपर्स में नैना सिक्का, ईएनटी में सत्या देव और दिव्या सैनी टॉपर रहे।

कल्चरल प्रोग्राम

दोपहर में एक बजे कल्चरल प्रोग्राम शुरू हुआ, जिसमें सिंगर शिबानी कश्यप, सायंतनी घोष और आईपीएल में एंकर व बिग बॉस की पार्टिसिपेंट करिश्मा कोटक ने परफॉर्म किया। शिबानी कश्यप के गाने 'रात बाकी बात बाकी' से मानो लग रहा था कि अभी यह मीट लंबी चलेगी। शाम तक लगातार यह प्रोग्राम चलता रहा। डॉक्टर्स म्यूजिक पर झूम रहे थे। इस म्यूजिक और गाने के बीच तीनों कलाकार डॉक्टर्स को प्राइज डिस्ट्रीब्यूट कर रहीं थीं। फैमिली के साथ आए डॉक्टर्स अपने पुराने दोस्तों के साथ मिलकर यादें ताजा कर रहे थे।

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देश में शिक्षा, विदेश में प्रैक्टिस

एलएलआरएम से 1989 में डेढ़ सौ स्टूडेंट्स में करीब 125 स्टूडेंट्स पासआउट हुए थे। जिनमें कुछ डॉक्टर्स ने विदेश की राह पकड़ ली। देश में मिलने वाली फैसिलिटी से नाखुश इन डॉक्टर्स ने विदेश में काफी कुछ पाया। पर देश की मिट्टी की खुशबू को आज भी ये दौड़े चले आते हैं। विदेश पहुंच डॉक्टर्स में डॉ। मनोज श्रीवास्तव लंदन में प्रैक्टिस कर रहे हैं। डॉ। संजय दीक्षित, डॉ। मोहित सिंह नेगी यूएस में हैं। इनके साथ ही डॉ। उमंग भी यूएस में और डॉ। अमन सूद यूएई में प्रैक्टिस कर रहे हैं। इन डॉक्टर्स में कुछ से हमने मुलाकात की और जाना देश व विदेश का फर्क।

- मैं 18 साल पहले लंदन में शिफ्ट हो गया था। वहां मैं सर्जन हूं और पिनहॉल सर्जरी करता हूं। हमारे देश में जो टेक्नोलॉजी है लंदन में इससे कहीं बेहतर टेक्नोलॉजी है। वहां पैसा है, लेकिन अपने देश में प्यार अधिक मिलता है। देखा जाए तो कोई अपनी इच्छा से विदेश नहीं जाना चाहता। अगर यहां भी फैसिलिटी और पैसा अच्छा हो तो कोई विदेश क्यों जाएं। लंदन में सब कुछ सरकारी है। वहां मिलने वाली फैसिलिटी प्राइवेट से बेहतर है। इसलिए वहां सब लोग सरकारी अस्पताल और डॉक्टर्स को दिखाते हैं, लेकिन यहां सरकारी अस्पतालों के बजाय प्राइवेट को पकड़ा जाता है। दिल्ली में जाने वाले डॉक्टर्स बाकी जगह से अधिक पैसा कमाते हैं। इसलिए हर कोई उस तरफ जाना चाहता है जहां टेक्नोलॉजी बेहतर हो।

- डॉ। मनोज श्रीवास्तव, 1989 बैच, लंदन

- मैं 1996 में इंडिया से यूएस चला गया था। 18 साल से वहां प्रैक्टिस कर रहा हूं। यहां जो रिसोर्स हैं वहां इससे कहीं डिफ्रेंट और इफेक्टिव रिसोर्स मौजूद हैं। वहां की टेक्नोलॉजी काफी आगे है। वहां एक्सप‌र्ट्स हैं। क्वालिटी पर अधिक ध्यान दिया जाता है। देखा जाए तो हमारे देश से वहां का स्ट्रक्चर सिस्टम काफी अलग है। यहां के स्ट्रक्चर से कोई सेटिसफाई नहीं होता, लेकिन वहां जो सिस्टम है उससे सभी को सेटिसफेक्शन मिलता है। कोई अपने देश को क्यों छोड़ेगा। यहां अपॉच्र्यूनिटी नहीं हैं, लेकिन वहां फेयर अपॉच्र्यूनिटी हैं। वहां का हेल्थ सिस्टम अलग है, लेकिन हम वहां रहकर भी अपने देश के लिए कुछ ना कुछ तो करते ही रहते हैं। यहां से आइडिया शेयर करते हैं। जिससे हमारा कांटेक्ट देश से कभी नहीं टूटता।

- डॉ। मोहित सिंह नेगी, 1989 बैच, यूएस, फिजिशियन

Posted By: Inextlive