आज 18 अगस्‍त है। 1945 में आज ही के दिन वो विमान हादसा हुआ था जिसके बारे में कहा जाता है कि इसी हादसे में नेताजी संभाष चंद्र बोस की मृत्‍यु हुई थी। पर तथ्‍य हमेशा ही विवाद में रहा कि क्‍या नेताजी वाकई इसी दिन दुनिया से चले गए थे।


अनसुलझे सवालों का सिलसिला बनी नेताजी की मौतआखिर 18 अगस्त, 1945 को क्या हुआ था ? क्या नेताजी सुभाषचंद्र बोस का विमान सचमुच फोरमोसा जो अब ताइवान है, में दुर्घटना का शिकार हुआ था। क्या इस हादसे में वाकई नेताजी मारे गए थे? या फिर ये बात सही है कि वो बच गए थे और सर्बिया चले गए थे? या और कोई राज भी छुपा नै सुभाष चद्र जी की मृत्यु के राज के साथ। बीते 70 सालों से ऐसे जाने कितने अनसुलझे सवाल हैं जो हमारा पीछा कर रहे हैं। ये आखिर नेताजी की मृत्यु के तथ्य या उनके जीवित होने का रहस्य छुपाने की जरूरत क्या थी या है। पर हाल ही में कुछ कांफीडेंशियल फाइल्स के सामने आने के हल्ले के बावजूद अब भी कुछ सामने नहीं आ रहा औश्र ये अनुसुलझे सवाल अब भी वहीं खड़े हैं। वारिसों में भी है मतभेद


ऐसा नहीं है कि कुछ राजनेता और बाकी देशवासियों के बीच में ही नेताजी की मौत को लेकर अलग अलग राय है बल्कि उनके वारिसों जिसमें उनकी बेटी अनिता फाफ भी शामिल हैं और उनके भाई भतीजों के बीच इस बात को लेकर मतभेद है। अनिता और सुभाषचंद्र बोस की इंडियन नेशनल आर्मी के कुछ पुराने साथी मानते हैं कि वाकईविमान हादसे में नेताजी की मौत हुई थी और उनकी अस्थियां टोक्यो के रेंकोजी मंदिर में सुरक्षित रखी हुई हैं।जबकि नेताजी के कुछ परिजन जैसे उनके भाई और कुछ भतीजे, प्रशंसक, शोध करने वाले हादसे की इस कहानी से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि इसमें कुछ ना कुछ पेंच जरूर है। और सच तो ये है कि इस बात पर यकीन करने वालों की संख्या बहुत अधिक है।जहां अनिता फाफ जो 2013 में कोलकाता आई थीं कहती हैं 'यह नेताजी के लिए शानदार घर वापसी होती, उनकी अस्थियां भारत लाई जातीं और उन्हें यहां गंगा में प्रवाहित किया जाता,' पर सच यही है कि वो विमान हादसे में मारे गए थे। नेताजी के रिश्तेदार और हारवर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सौगत रॉय भी यही मानते हैं और इस हादसे में जिंदा बचे लोगों की गवाही को सही मानते हैं।जांच समितियां भी नहीं एक मत

नेताजी की मृत्यु के मामले की जांच के लिए कई समितियां भी बनाई गयीं जैसे 1956 में शाहनवाज खान समिति, 1970 में जी.डी. खोसला समिति और 2006 में एम.के. मुखर्जी आयोग लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला क्योंकि ये समितियां भी कभी भी एक राय कायम नहीं कर सकीं। जहां शाहनवाज खान समिति और जी.डी. खोसला समिति ने माना कि विमान हादसे में नेताजी की मौत हुई थी, वहीं मुखर्जी आयोग ने इस बात को खारिज कर। हालांकि सरकार ने भी मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट स्वीकार नहीं की लेकिन इस मामले में शोध करने वाले और लेखक अनुज धर मुखर्जी आयोग के नतीजों से सहमत हैं। उनका दावा है कि मुखर्जी आयोग को और उन्हें भी भेजे गए एक पत्र के जवाब में आए पत्र में ताइवान के अधिकारियों ने लिखा कि 18 अगस्त, 1945 को कोई हादसा नहीं हुआ था। उनका दावा है कि यदि नेताजी से संबंधित गोपनीय फाइलों को सार्वैजनिक कर जांच कराई जाए तो सच सामने आ जाएगा कि जपानियों ने रूस से छुपाने के लिए ये झूठी अफवाह फैलायी थी।

जबकि नेताजी की सहयोगी रह चुकीं स्वर्गीय लक्ष्मी सहगल इससे सहमत नहीं थीं। उनका कहना था कि विमान हादसा और उसमें नेताजी की मौत एक सच्चाई है। लेकिन इसका रिकॉर्ड जापानियों ने अपने युद्ध से जुड़े अपराधों के दस्तावेज नष्ट करने के दौरान नष्ट कर दिए थे। अब इन दिनों नेताजी के कुछ रिश्तेदार और प्रशंसक मांग कर रहे हैं कि केंद्र और पश्चिम बंगाल सरकार इस मामले से जुड़ी सभी फाइलों को सार्वजनिक करे। ताकि सच सामने आए कि कि विमान हादसे में मरने वाला एक जापानी सैनिक इचिरो ओकुरा था या नेताजी।कर्नल हबीबुररहमान साथ थे हादसे के दौरान इस मामले में सबसे बड़ी सच्चाई कर्नल हबीबुररहमान की है जो हादसे के दौरान नेताजी के साथ विमान में थे और उनका कहना है कि नेताजी हादसे में मारे गए जबकि वो बच गए। लेकिन जहां शाहनवाज समिति सहित कुछ लोग उनकी बात पर यकीन कर रहे हैं वहीं नेताजी के बड़े भाई शरत चंद्र बोस जिन्होंने ने कर्नल रहमान से पूछताछ की थी सहित कुछ लोग कहते हैं कि नेताजी के कहने पर कर्नल रहमान ने झूठ बोला था।

Hindi News from India News Desk

Posted By: Molly Seth