RANCHI : आईए मिलते हैं झारखंड के 82वें विधायक से। इनका अपना कोई विधानसभा क्षेत्र नहीं है। ये पूरे झारखंड का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये चुनाव भी नहीं लड़ते हैं, पर विधानसभा में इनकी अपनी अलग पहचान है। ये राजनीतिज्ञ हैं, पर दलगत राजनीति से सीधा सरोकार नहीं है। आमतौर पर झारखंड के इस विधायक से ज्यादातर लोग वाकिफ नहीं है, पर सदन में राज्य के मसलों को ये जोरदार तरीके से रखते हैं। हम बात कर रहे हैं, ग्लेन जोसेफ गॉलस्टन की, जिन्हें रघुवर सरकार ने 23 जनवरी को झारखंड विधानसभा के लिए मनोनीत किया है। गौरतलब है कि विधानसभा में निर्वाचित सदस्यों की संख्या 81 है, जबकि एंग्लो इंडियन कोटे से एक विधायक के मनोनीत किए जाने की परंपरा चली आ रही है। इस तरह विधानसभा में सदस्यों की कुल संख्या 82 हो जाती है। सदन में एंग्लो इंडियन समुदाय का प्रतिनिधित्व गॉलस्टन कर रहे हैं। आई नेक्स्ट ने झारखंड के इस 82वें विधायक से की खास बातचीत।

एंग्लो इंडियन की आवाज हैं गॉलस्टन

ग्लेन जोसेफ गॉलस्टन को एंग्लो इंडियन विधायक के तौर पर विधानसभा के लिए मनोनीत करने के रघुवर सरकार के फैसले के बाद विधानसभा कैंपस स्थित विधायक हॉस्टल के कमरा संख्या 156 में चहल-पहल बढ़ गई है। वैसे इस संबंध में राज्य सरकार द्वारा भेजे गए प्रस्ताव पर राज्यपाल की सहमति मिलनी बाकी है, पर अभी से ही उन्हें बधाई देने के लिए लोगों का तांता लगा हुआ है। गौरतलब है कि विधानसभा के लिए वे दूसरी बार मनोनीत किए जा रहे हैं।

जिम्मेदारी निभाने को हैं तैयार

विधानसभा के लिए दूसरी बार मनोनीत किए जाने के बाद गॉलस्टन काफी खुश हैं, वे कहते हैं कि अब अपनी जिम्मेदारियों को बेहतर तरीके से निभाना है। वे कहते हैं कि न सिर्फ सदन, बल्कि पूरे राज्य में एंग्लो इंडियन की आवाज को वे बुलंद करना प्राथमिकता में है। गौरतलब है कि झारखंड के अलग-अलग हिस्सों में लगभग 35 हजार एंग्लो इंडियन रहते हैं। एंग्लो इंडियंस की सबसे ज्यादा आबादी, जमशेदपुर, रांची, धनबाद और चक्रधरपुर में हैं। दुनिया में एंग्लो इंडियंस के लिए बसाया गया एक मात्र शहर मैकलुस्कीगंज भी रांची जिले में ही है।

सिर्फ इंग्लिश से समाधान नहीं

गॉलस्टन कहते हैं- एंग्लो इंडियंस की मदर लैंग्वेज इंग्लिश है। ज्यादातर एंग्लो इंडियंस इंग्लिश में ही बातचीत करते हैं, ऐसे में लोगों को लगता है कि यह सोसाइटी हाइली एजुकेटेड है, पर इसमें सच्चाई नहीं है। यहां ऐसे एंग्लो इंडियंस की तादाद काफी है, जो कम पढ़े-लिखे हैं। एंग्लो इंडियंस की आनेवाली पीढ़ी अच्छे से पढ़े-लिखे। नौकरी के साथ बिजनेस में वे मुकाम हासिल करें, इसके लिए काम करने की जरूरत है। इस संबंध में सरकार से लगातार बातचीत करता रहता हूं। एंग्लो इंडियंस जबतक प्रॉपर वे में एजुकेट नहीं होंगे, तबतक वे न तो अच्छी नौकरी ले पाएंगे और न ही बिजनेस में आगे बढ़ सकेंगे। एंग्लो इंडियन सोसाइटी की समस्याओं को कैसे दूर किया जाए ? सरकार को इसके लिए क्या करना चाहिए? इसे लेकर हमेशा सदन में आवाज उठाता रहा हूं।

पहचान को रखना है सुरक्षित

एंग्लो इंडियंस की पहचान बनी रही। इसके लिए संसद और विधानसभा में इनके लिए सीटें सुरक्षित हैं। जो एंग्लो इंडियन कोटे से सांसद अथवा विधायक मनोनीत होते हैं, उनकी जिम्मेदारी बनती है कि वे इस सोसाइटी की बेहतरी के लिए कुछ करें। गॉलस्टन ने बताया कि वे ऑल इंडिया एंग्लो इंडियन सोसाइटी के वाइस प्रेसिडेंट हैं। यह मान्यता प्राप्त संस्था है, जिसका मुख्यालय दिल्ली में है। यह संस्था एंग्लो इंडियंस की पहचान बनाए रखने की दिशा में काम कर रही है।

मैकलुस्कीगंज को बचाना है जरूरी

जैसे-जैसे साल व दशक गुजरते गए, मैकलुस्कीगंज के वजूद पर खतरा मंडराना शुरू हो गया। एंग्लो इंडियंस की नई पीढ़ी के सामने न सिर्फ अपनी पहचान बल्कि मैकलुस्कीगंज के वजूद को बनाए रखने की गंभीर चुनौती है। गॉलस्टन कहते हैं- यहां रोजगार के साधन कम होते जा रहे हैं। एंग्लो इंडियंस की नई पीढ़ी का पलायन जारी है। पहले पढ़ाई और फिर नौकरी के नाम पर एंग्लो इंडियंस ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और ब्रिटेन जैसे देशों का रूख कर रहे हैं। ऐसे में आज मैकलुस्कीगंज के वजूद को बचाना सबसे जरूरी है। एक विधायक के रूप में पहले पिताजी ने और अब मैं इसके लिए लगातार कोशिश कर रहा हूं। सुरक्षा के लिए थाना खुल चुका है। अब हॉस्पिटल खोलने के लिए प्रयास कर रहा हूं, ताकि यहां रह रहे एंग्लो इंडियंस को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मिल सके।

सदन में रहते हैं एक्टिव

गॉलस्टन कहते हैं- लोग यह सोचते हैं कि विधायक नंबर-82 मनोनीत होते हैं, ऐसे में वे सदन में चुप रहते हैं और सरकार से ज्यादा सवाल-जवाब नहीं करते हैं, लेकिन इसमें सच्चाई नहीं है। सदन में सबसे ज्यादा सवाल पूछनेवाले विधायकों में से मैं एक हूं। एक साथ पांच-पांच समितियों का अध्यक्ष रहा हूं। शून्यकाल के अध्यक्ष का भी पद संभाल चुका हैं। पिछली सरकार में कटौती प्रस्ताव मैने ही सदन में लाया था। सदन में सबसे ज्यादा एक्टिव रहता हूं। सभी सत्रों में ज्यादा से ज्यादा समय सदन को देता हूं, ताकि झारखंड की समस्याओं को जोरदार तरीके से रख सकूं।

जानिए ग्लेन जोसेफ गॉलस्टन को

ग्लेन जोसेफ गॉलस्टन का जन्म 1964 में पटना में हुआ। इनके पिता जोसेफ पेचेली गॉलस्टन भी विधानसभा में एंग्लो इंडियन सदस्य के रूप में मनोनीत हो चुके हैं। इन्होंने सेंट जेवियर्स कॉलेज पटना से ग्रेजुएशन की डिग्री लेने के बाद मगध यूनिवर्सिटी से इंग्लिश में पीजी और फिर बीएड किया। इसके बाद वे पिता द्वारा संचालित किए जा रहे सेंट डामनिक्स स्कूल पहले वाइस प्रिंसिपल और फिर वाइस प्रिंसिपल का पद संभाला। इनकी पत्नी का नाम ग्लैंडा है। इन्हें दो बेटी और एक बेटा है। बड़ी बेटी का नाम गेल है जो पायलट की ट्रेनिंग ली रही है, दूसरी बेटी जार्जिना बीसीए कर रही हैं, जबकि बेटा ग्रेग 10वीं में है।

संविधान में यह है व्यवस्था

संविधान के अनुच्छेद 333 के तहत संसद में दो और राज्य विधानसभाओं में एक एंग्लो इंडियन सदस्य को मनोनीत करने का प्रावधान है। संयुक्त बिहार में भी एक एंग्लो इंडियन को विधानसभा के लिए मनोनीत किया जाता था। जब झारखंड अलग राज्य बना तो एंग्लो इंडियन सदस्य का कोटा झारखंड विधानसभा को मिल गया। इस तरह सदन में एंग्लो इंडियन मेंबर का मनोनयन लगातार होता आ रहा है।

अर्नेस्ट टिमथी ने बसाया मैकलुस्कीगंज

अर्नेस्ट टिमथी मैकलुस्की ने मैकलुस्कीगंज बसाया था। पठारी इलाके में घने जंगलों के बीच एंग्लो इंडियंस के लिए नई बस्ती बसाने को लेकर उनकी आंखों में एक सपना था। वे चाहते थे कि वैसे एंग्लो इंडियंस, जिनके लिए दुनिया में कहीं जगह नहीं है, उन्हें एक जगह लाया जाए। जहां उनका अपना घर हो, अपनी दुनिया हो और अपने लोग हों। आखिरकार उन्होंने अपने सपने को हकीकत में बदला और एंग्लो इंडियंस को बस्ती के रूप में मैकलुस्कीगंज मिला। यहां लगभग चार सौ एंग्लो इंडियन फैमिली आकर बसी। यहां सुंदर बंगले बने, सामूहिक खेती की शुरूआत हुई। पशुपालन को बढ़ावा मिला। इतना ही नहीं, स्कूल- कॉलेज, क्लब और हॉस्पिटल भी खुले। लंबे अर्से तक मैकलुस्कीगंज खुशहाल बस्ती के रूप में अपनी पहचान बनाए रखा था।

Posted By: Inextlive