कोई कप्तानी नहीं करना चाहता था, मजबूरी में बना कैप्टन : अनिल कुंबले
1 साल तक रहे थे कैप्टन
कुंबले को नवंबर 2007 में कप्तान नियुक्त किया गया था और इसके बाद उन्होंने एक साल के लिये इंडियन टीम की कमान संभाली. कुंबले ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा,' मैं भारत के लिये 17 साल खेलने के बाद कप्तान बना, इसलिये शायद कप्तान गलती से बन गया क्योंकि कोई और ऐसा नहीं करना चाहता था.' उन्होंने कहा राहुल द्रविड़ ने कप्तानी छोड़ी ही थी और उस समय धोनी को टेस्ट कप्तान बनाना थोड़ा जल्दी था, इसलिये मैं ही बचता था और कप्तान बना दिया गया. बताते चलें कि कुंबले ने अपने 18 साल के करियर में 132 टेस्ट में 619 विकेट और 271 वनडे में 337 विकेट चटकाये हैं.
बदलाव का था दौर
कुंबले ने कहा कि जब उन्होंने कप्तानी संभाली थी, तब वह समय भारतीय क्रिकेट के लिये बदलाव का दौर था. मैं यह भी जानता था कि मैं अपने करियर के 17वें साल में था और मैं लंबे समय तक नहीं खेल पाऊंगा इसलिये वह बदलाव का दौर था. 41 साल के कुंबले ने बताया कि उनकी कप्तानी करने का तरीका हमेशा समावेशी होता था क्योंकि वह हमेशा फैसले लेने में युवाओं को सम्मिलित करते थे.
कैसा था कप्तान का अनुभव
इंडिया के इस महान स्पिनर ने यह भी बताया वह अपने साथियों के साथ सहज होकर रहते थे और उसका आनंद उठाते थे. कप्तान के तौर पर कुंबले की अगुवाई में भारत ने 14 टेस्ट मैच खेले, इसमें 5 में हार मिली वहीं 6 ड्रा रहे. कुंबले ने कहा कि बॉलर के तौर पर यह डगर काफी कठिन होती है. उन्होंने कहा अगर आप बॉलर हो तो आप पायक नहीं हो सकते. आप हमेशा एक नायक का समर्थन करते हो लेकिन टेस्ट मैच जीतने के लिये परे 20 विकेट लेने की जरूरत होती है. भारत में आप पिचों के आधार पर टीम का चयन करते हो इसलिये हमेशा बॉलर ही बदला जाता है. अगर टर्निंग पिच है तो फॉस्ट बॉलर नहीं खेल सकता और अगर घसियाली पिच है तो स्पिनर नहीं खेल सकता.