प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के कुछ सेक्शन की कान्स्टिटूशनल वैलीडिटी को लेकर एक और याचिका शनिवार को सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई । जिसमें कहा गया है कि एक्‍ट सेक्युलरिज्म के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।


नई दिल्ली (एएनआई)। मथुरा स्थित धार्मिक गुरु देवकीनंदन ठाकुर द्वारा दायर याचिका में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की धारा 2, 3 और 4 की कान्स्टिटूशनल को चुनौती दी गई है। जिसमें कहा गया है कि यह आर्टिकल 14, 15, 21, 25, 26, 29 का उल्लंघन करता है। साथ ही सेक्युलरिज्म के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। याचिकाकर्ता ने कहा कि हिंदू सैकड़ों वर्षों से शांतिपूर्ण सार्वजनिक आंदोलन के साथ भगवान कृष्ण की जन्मभूमि के लिए लड़ रहे हैं। लेकिन इस कानून के तहत केंद्र ने अयोध्या में भगवान राम के जन्मस्थान को इस एक्‍ट से बाहर कर दिया है। लेकिन मथुरा में भगवान कृष्ण के जन्मस्थान को नहीं, हालांकि दोनों ही भगवान विष्णु के अवतार हैं। पूजा और तीर्थस्थलों के प्रबंधन का उल्लंघन करता है एक्‍ट
एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय, रुद्र विक्रम, वाराणसी के निवासी, और स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती, एक धार्मिक नेता, अन्य लोगों ने पहले ही एक्‍ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 (आर्टिकल 25) कई कारणों से अनकान्स्टिटूशनल है। यह कहते हुए कि यह हिंदुओं , जैन , बौद्धों और सिखों के प्रार्थना करने, मानने, अभ्यास करने और धर्म का प्रचार करने के अधिकार का उल्लंघन करता है। साथ ही यह एक्‍ट (आर्टिकल 26) हिंदुओं, जैन, बौद्धों और सिखों के पूजा और तीर्थस्थलों के प्रबंधन, रखरखाव और प्रशासन के अधिकारों का भी उल्लंघन करता है। याचिका के अनुसार, (आर्टिकल 29) हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों और सिखों को उनकी सांस्कृतिक विरासत से जुड़े अपने पूजा स्थलों और तीर्थयात्राओं को वापस लेने से रोकता है। लेकिन मुसलमानों को वक्फ एक्‍ट की धारा 107 के तहत दावा करने की अनुमति देता है।

Posted By: Kanpur Desk