विवेक की पत्नी कल्पना के रंगों से सजी दुनिया एक पल में ही वीरान हो गई। कल्पना की वीरान जिंदगी में बेटियां प्रियांशी व शानू विवेक का अक्स बनकर उसकी जिम्मेदारी से भरी जिंदगी के जीना का एक मात्र मकसद हैं।

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LUCKNOW : पति विवेक की चिता की आग अभी पूरी तरह से बुझ भी नहीं पाई थी कि पत्नी कल्पना के चेहरे पर बच्चों और परिवार के परवरिश की चिंता की लकीरें नजर आने लगीं। अपने ऊपर टूटे गमों के पहाड़ को भूलकर कल्पना अब अपने परिवार के रहन सहन और परवरिश को लेकर परेशान हैं। रविवार को सुबह वैकुंठ धाम पर विवेक के अंतिम संस्कार के बाद आकाश गंगा अपार्टमेंट में हर कोई कम उम्र पर टूटे दुखों के पहाड़ के साथ परिवार के गुजर-बसर की बात कर रहा था।
मेरे पास रहने को घर नहीं है
विवेक का परिवार आकाश गंगा अपार्टमेंट में किराए के फ्लैट में रहता है। कल्पना ने बताया कि अब मेरी सबसे बड़ी जरूरत एक घर है, यहां हम लोग किराए पर रहते थे। इसका किराया ही 25 हजार रुपये है। अब मैं किराया कहां से लाऊंगी। मेरी दोनों बेटियां सीएमएस में पढ़ती हैं। दोनों की फीस लगभग प्रतिमाह 13 हजार रुपये जाती है। अब इतना पैसा हर माह कहां से लाऊंगी। हम सबका सहारा पुलिस ने छीन लिया। लाचार हो गई हूं मैं।
एक्सीडेंट नहीं निर्मम हत्या है
अपनी बेटियों की तरफ देखते हुए कल्पना ने कहा कि मेरा परिवार बिखेर दिया गया। सबकुछ खत्म कर दिया गया। यह सजा मैं तो झेलूंगी, लेकिन मैं अपनी बेटियों को तो नही दे सकती। उनके आगे पूरी जिंदगी पड़ी हुई है। उनकी एजुकेशन ज्यादा जरूरी है। उनके सिक्योर फ्यूचर के लिए सहायता राशि बढ़ाई जाए, मुझे घर दिया जाये और सरकारी नौकरी। 25 लाख रुपये मुआवजे की बात पर इसलिए राजी हुई क्योंकि डीएम ने मुझसे कहा कि एक्सीडेंटल बीमा में 25 लाख ही मिलता है, लेकिन यह एक्सीडेंट नहीं हत्या है।
दो परिवारों की जिम्मेदारी
कल्पना ने बताया कि मेरे पति की सैलरी करीब 2.5 से तीन लाख रुपये थी, जिसमें वह हमारी जरूरतों को पूरा करने के साथ गांव में रह रहे परिवार की भी पूरी जिम्मेदारी उठा रहे थे। इसमें उनकी बूढ़ी मां के साथ एक दिव्यांग भाई भी है जिनका पूरा खर्च विवेक ही उठाते थे। उनके ऊपर सिर्फ एक ही नहीं बल्कि दो परिवारों की जिम्मेदारी थी। ऐसे में मैं दो परिवारों की जिम्मेदारी कैसे उठा पाऊंगी इसलिए मुझे एक परमानेंट जॉब चाहिए ताकि मैं इस परिवार को संभाल सकूं।

मुझे मकान दिया जाए

सहायता राशि बढ़ाई जाए, मेरे पास मकान नहीं है मुझे मकान दिया जाए। साथ ही एक परमानेंट सरकारी जॉब दी जाए ताकि मैं अपने बच्चों का भविष्य बना सकूं।
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Posted By: Shweta Mishra