क्रिकेट की दुनिया की सबसे बड़ी जंग यानी एशेज सीरीज की शुरुआत 1 अगस्त से हो रही है। ऑस्‍ट्रेलिया और इंग्‍लैंड के बीच यह लड़ाई सालों से चली आ रही है। यह सिर्फ खेल नहीं बल्‍िक आन बान और शान की लड़ाई होती है। यही वजह है दोनों देश इस सीरीज को जीतने के लिए जी-जान लगा देते हैं...


कानपुर। ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच Ashes 2019 में पांच टेस्ट खेले जाने हैं। अभी तक दोनों देशों के बीच 70 सीरीज हो चुकी हैं, यानी कि 1 अगस्त से 71वीं एशेज सीरीज का आगाज हो रहा। फिलहाल अभी तक यह मुकाबला टक्कर का रहा है। ऑस्ट्रेलिया ने जहां 33 बार सीरीज जीती वहीं इंग्लैंड ने 32 बार इसे अपने नाम किया, वहीं 5 मौके ऐसे आए जब सीरीज ड्रा हो गई। 137 साल पहले खेला गया था पहला मैच


एशेज सीरीज का इतिहास काफी पुराना है। पहली बार एशेज शब्द का इस्तेमाल सन 1882 में हुआ था। ऑस्ट्रेलियाई टीम ने इंग्लैंड में पहली टेस्ट जीत दर्ज की। कंगारुओं ने यह मैच 14 रन से जीता था। इंग्लैंड के लिए यह हार किसी बुरे सपने से कम नहीं थी। अखबारों में इंग्लैंड क्रिकेट टीम की खूब बेइज्जती की गई। न्यूज पेपर 'स्पोर्टिंग टाइम्स' ने यहां तक कह दिया था कि, 'इंग्लिश क्रिकेट की मौत हो गई, ऑस्ट्रेलिया ने इसका अंतिम संस्कार किया और राख (Ashes) ऑस्ट्रेलिया अपने घर ले गई।'पहली बार सामने आई वो छोटी ट्रॉफी

ऑस्ट्रेलिया के हाथों बुरी तरह हारने के कुछ महीनों बाद इंग्लैंड ने ऑस्ट्रेलिया दौरा किया। वहां दोनों देशों के बीच तीन टेस्ट मैच खेले गए। घर से निकलने से पहले इंग्लिश कप्तान इवो ब्लिग ने वादा किया कि, वो इंग्लिश क्रिकेट की मौत का बदला जरूर लेंगे और राख को वापस लाएंगे। सीरीज शुरु हुई, पहला मैच मेलबर्न में खेला गया जिसे ऑस्ट्रेलिया ने जीता। दूसरा टेस्ट इग्लैंड के नाम रहा। अब सीरीज का आखिरी और निर्णायक मैच बचा, इंग्लैंड ने इस मैच को जीतने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी। मेहमान इंग्लैंड ने यह सीरीज 2-1 से जीत ली। इंग्लैंड के कप्तान ईवो को मेलबर्न में मैच देखने आई एक महिला फैंस ने एक अंगुल की छोटी सी ट्रॉफी दी। कहते हैं कि यह एक सेंट यानी परफ्यूम की डिब्बी थी जिसमें ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट की गिल्लियों को जलाकर राख भरी गई थी। इंग्लिश कप्तान उस ट्रॉफी को घर ले आए, बस इसके बाद से यही छोटी ट्रॉफी एशेज सीरीज की पहचान बन गई।4 इंच की है यह ट्रॉफी

मौजूदा वक्त में जो एशेज ट्रॉफी दी जाती है, वो असली नहीं बल्िक उसकी डुप्लीकेट है। असली ट्रॉफी तो सन 1927 में मेलबर्न क्रिकेट क्लब को दे दी गई थी जहां म्यूजियम में वो आज भी रखी है। अब जो ट्रॉफी दी जाती है, वह करीब 4 इंच की है और क्रिस्टल से बनी है उसके अंदर अब कोई राख नहीं भरी जाती।

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari