यूपी में कई अफसरों की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो चुकी है।हाल ही में इसमें एक नाम एटीएस में तैनात एएसपी राजेश साहनी का शामिल हो गया है...

कई मामलों से आज तक पर्दा नहीं उठ पाया
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LUCKNOW : एटीएस में तैनात एएसपी राजेश साहनी की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत को लेकर तमाम सवाल उठने लगे है। उनके करीबियों को यकीन ही नहीं कि इतना जिंदादिल इंसान आत्महत्या का रास्ता भी चुन सकता है। पुलिस अफसरों के मुताबिक राजेश ने आत्महत्या की है पर इसका कोई ठोस प्रमाण अभी तक उनके पास नहीं है। आत्महत्या करने की सही वजह भी किसी को नहीं पता है। राजेश की मौत कैसे हुई। शायद इसका राज भी कभी न खुले। दरअसल यूपी में पहले भी तमाम ऐसे मामले सामने आ चुके हैं जिनमें अफसरों द्वारा आत्महत्या किए जाने अथवा उनकी संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत के मामलों से आज तक पर्दा नहीं उठ पाया है।

बीमारी,  पारिवारिक तनाव या काम का बोझ

लखनऊ में एडीएम के पद पर तैनात विनोद राय ने बटलर पैलेस कॉलोनी स्थित अपने सरकारी आवास में आत्महत्या कर ली तो उनके करीबियों को यकीन ही नहीं हुआ। चंद मिनटों के भीतर उनके आवास पर राजनेताओं। ब्यूरोक्रेट्स और पत्रकारों का जमावड़ा लग गया। राजेश की तरह वह भी बेहद जिंदादिल इंसान थे। यह मामला कुछ दिन तो सुर्खियों में रहा। उसके बाद पुलिस ने भी फाइल को बंद कर दिया। विनोद के आत्महत्या करने की वजह क्या थी। यह आज तक नहीं पता चल सका। इसी तरह बसपा शासनकाल में प्रमुख सचिव आवास हरमिंदर राज ने अपने सरकारी आवास पर खुदकुशी कर ली तो इसकी वजह सियासी दबाव होने की चर्चा होने लगी। आईएएस हो या आम नागरिक। आत्महत्या के मामलों में पुलिस तय स्क्रिप्ट के तहत विधिक कार्यवाही करती है लिहाजा हरमिंदर राज की मौत का राज भी फाइलों में दफन हो गया। दो साल पहले प्रमुख सचिव होमगार्ड संजीव दुबे ने अवसाद के चलते आत्महत्या का रास्ता चुना तो बाकी ब्यूरोक्रेट्स भी सोचने को मजबूर हो गये कि आखिर अफसरों को इस तरह की परिस्थितियों से किस तरह बचाया जाए।
सीबीआई ने की जांच, फिर भी नहीं खुलासा
एनआरएचएम घोटाले के आरोपी डिप्टी सीएमओ डॉ.  वाईएस सचान द्वारा लखनऊ जेल परिसर के अस्पताल में फांसी लगाकर आत्महत्या करने के मामले की जांच सीबीआई ने कई सालों तक की। एम्स के विशेषज्ञ डॉक्टरों को बुलाकर जेल के वॉशरूम में क्राइम सीन क्रिएट किया गया। विशेषज्ञों की रिपोर्ट के आधार पर सीबीआई ने अदालत में फाइनल रिपोर्ट लगायी जिसे डॉ. सचान की पत्नी मालती सचान की आपत्ति के बाद कोर्ट ने खारिज कर दिया। साथ ही सीबीआई को दोबारा जांच के आदेश दिए। फिलहाल सीबीआई ने इस मामले की दोबारा जांच नहीं की है और यह मामला भी फाइलों में दब चुका है। सबसे चर्चित मामला जेलर आरके केसरवानी का था। जिन्होंने अपनी पत्नी को गोली मारने के बाद खुद भी मौत का रास्ता चुन लिया। जेल महकमे में अपराधियों के बीच खासी धाक रखने वाले केसरवानी पारिवारिक वजहों से इस कदर कमजोर पड़ जाएंगे। इसकी कल्पना उनके करीबियों ने भी नहीं की थी।

कम नहीं हैं मामले

यूपी में अफसरों की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के मामले कम नहीं हैं। खासकर एनआरएचएम घोटाले में क्लर्क समेत आधा दर्जन लोग आत्महत्या कर चुके हैं। विगत जनवरी माह में गोरखपुर में स्वास्थ्य विभाग के पूर्व डायरेक्टर पवन कुमार श्रीवास्तव ने खुद को लाइसेंसी पिस्टल से गोली मार ली थी। वह घोटाले में नाम आने के बाद अवसादग्रस्त थे। इसी तरह एनआरएचएम के परियोजना प्रबंधक सुनील वर्मा की राजधानी स्थित आवास में गोली लगने से मौत हो गयी थी। इस फेहरिस्त में डिप्टी सीएमओ शैलेश यादव और क्लर्क महेंद्र शर्मा भी शामिल हैं। वहीं पिछले साल कर्नाटक कैडर के आईएएस अनुराग तिवारी की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत के मामले की जांच आज भी सीबीआई कर रही है। सीबीआई इसे हादसा ही मान रही है।
आसानी से पता नहीं लग पाता
आत्महत्या का कारण एक ऐसा विषय है जो आसानी से पता नहीं लग पाता है। कुछ लोग अपनी भावनाएं व्यक्त कर देते हैं जबकि कुछ इसे दबा ले जाते हैं। खासकर फील्ड में काम करने वाले अफसरों की इस वजह से नियमित काउंसिलिंग जरूरी है। आईएएस एसोसिएशन भी इसकी कई बार मांग कर चुका है। स्ट्रेस मैनेजमेंट के जरिए हम इस तरह की प्रवृत्ति पर अंकुश लगा सकते हैं।
मणि प्रसाद मिश्र, पूर्व आईएएस
खबर पर यकीन नहीं हो रहा
राजेश बेहद मिलनसार, परिपक्व और ईश्वरवादी था। उसके आत्महत्या करने की खबर पर यकीन नहीं हो रहा। दरअसल पुलिस में इतनी अपेक्षाएं बढ़ गयी हैं कि उन्हें कोई पूरा नहीं कर सकता। एटीएस में सिपाही से लेकर आईजी तक रोजाना बीस घंटे काम करता है। सारे मामले भी गंभीर आते हैं। हमें पुलिसकर्मियों के मानवाधिकार और उनके शरीर की अनिवार्यता के बारे में भी सोचना होगा।
विक्रम सिंह, पूर्व डीजीपी

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Posted By: Shweta Mishra