एक शोध में पता चला है कि ऐस्प्रिन के नियमित सेवन का असर आंखों की रोशनी पर पड़ सकता है. ख़ासतौर से ह्रदय रोग के मरीज़ों के लिए भी ऐस्प्रिन ख़तरनाक साबित हो सकता है.

'जेएएमए इंटरनल मेडिसिन' जर्नल ने 2,389 लोगों का अध्ययन कराया जिसमें यह बात सामने आई कि ऐस्प्रिन लेने वालों में वेट एएमडी यानी मैक्यूलर डिजेनरेशन नामक बीमारी का खतरा दोगुना बढ़ जाता है। इस बीमारी में रेटिना के बीच वाले हिस्से में खराबी आ जाती है जिससे मरीज़ को देखते वक्त धब्बा सा दिखाई देता है।

क्या है ख़तरावेट एएमडी बीमारी गलत जगह पर रक्त नलिका के बढ़ने से होती है जिससे सूजन और रक्त स्त्राव की समस्या बढ़ती है और रेटिना को क्षति पहुंचती है। सिडनी विश्वविद्यालय में कराए गए अध्ययन में शामिल प्रत्येक 10 लोगों में से एक व्यक्ति हफ्ते में कम से कम एक दिन ऐस्प्रिन ले रहे थे।

इन लोगों की उम्र औसतन 50-60 साल थी। अध्ययन में शामिल लोगों की आंखों की जांच पांच, 10 और 15 साल के अंतराल में कराई गई।

इस अध्ययन में शोधकर्ताओं को मालूम हुआ कि ऐस्प्रिन न लेने वाले 3.7 फीसदी मरीजों के मुकाबले इस दवा को लेने वाले 9.3 फीसदी मरीजों में रेटिना में विकृति आने से एएमडी की बीमारी बढ़ रही थी जिससे उन्हें देखने पर धब्बा दिखाई दे रहा था। रिपोर्ट के मुताबिक इस बीमारी का अंदाजा 10 या 15 सालों के बाद लगता है।

जोखिम है बड़ा

वैसे ऐस्प्रिन से आंतरिक रक्त स्त्राव की समस्या के बारे में पहले से पता है। शोध टीम का कहना है कि आंखों की रोशनी कम होने की समस्या पर भी गौर करने की जरूरत है।

ऑस्ट्रेलिया के सिडनी विश्वविद्यालय में दृष्टि-शोध के विशेषज्ञ प्रोफेसर जाई जिन वांग का कहना है कि डॉक्टर इस मसले पर ज्यादा बीमार लोगों से चर्चा भी कर सकते हैं।

वहीं आरएनआईबी चैरिटी के मैथ्यू एथ कहते, "इस शोध में उठाए गए कुछ मसलों की जांच और स्पष्टीकरण के लिए और अधिक शोध की गुंजाइश बनती है."

वे कहते हैं, ''इस दिलचस्प शोध में अंदाजा मिल रहा है कि ब्रिटेन के लोगों की आंखों की रौशनी जाने की वजह एक प्रमुख वजह वेट एएमडी नामक बीमारी ही है.'' वहीं मैक्यूलर सोसायटी का कहना है कि जो मरीज ऐस्प्रिन ले रहे हैं, उन्हें डॉक्टर की सलाह के बगैर यह दवा लेना बंद नहीं करना चाहिए।

Posted By: Inextlive