विश्व अस्थमा दिवस पर विशेष स्टोरी

सिटी में बढ़ गया चार गुना आएसपीएम

70 प्रतिशत बच्चों में पैर जमा रहा अस्थमा का रोग

आगरा। अस्थमा मुख्य रूप से अमीर बच्चों को होता है। इसका कारण है कि यह बच्चे हर तरह के वातावरण को एडजस्ट नहीं कर पाते हैं। जबकि गरीब बच्चे हर माहौल को एडजस्ट कर लेते हैं। अमीरों के बच्चे एसी घर में रह रहे हैं। स्कूल भी एसी बस से जा रहे हैं। स्कूल भी एसी से युक्त है। साफ-सफाई हर सुख सुविधा के साथ रहता है। लेकिन जब वह जरा से भी बाहरी क्षेत्र में पहुंचता है तो वह हर माहौल को एडजस्ट नहीं कर पाता है। इसलिए वह जल्द ही इस बीमारी से ग्रस्त हो जाता है। यह कहना है एसएन मेडिकल कॉलेज के चेस्ट फिजीशियन डॉ। जीवी सिंह का।

बड़ों से ज्यादा बच्चे ज्यादा अस्थमा से पीडि़त

आज 18वां विश्व अस्थमा दिवस है। यह क्रोनिक लंग्स डिजीज है। इसमें सांस की नलियां प्रभावित होती हैं। सांस की नलियों में सूजन आ जाती है। भारत में अस्थमा के मरीजों की संख्या वर्तमान में तीन करोड़ है। हर 100 में से दो व्यक्ति को अस्थमा के मरीज है। इसमें पांच से 14 साल तक के बच्चों को अस्थमा ज्यादा होता है। बच्चों में यह प्रतिशत सात से 10 तक पाया जाता है।

सिटी में बड़ रहा है आरएसपीएम

डब्लूएचओ के अनुसार वातावरण में मात्र 25 माइक्रोग्राम आरएसपीएम होना चाहिए। जबकि आज के समय यह पांच से छह गुना बढ़ चुका है। इसकी संख्या वर्तमान में 200 से 300 तक पहुंच चुकी है। पिछले 25 सालों में दो से तीन गुना औद्योगीकरण, जनसंख्या वृद्धि, पेड़ों का कटना आदि के कारण आरएसपीएम बढ़ गया है।

काउंसिलिंग की आवश्यकता है

अस्थमा को लेकर आज लोगों को दवा से ज्यादा सही काउंसिलिंग की जरूरत है। डॉ। गजेन्द्र विक्रम सिंह के अनुसार सिर्फ 25 प्रतिशत मरीज ही सही से अपना इलाज करते हैं। बाकी 70 प्रतिशत मरीज दवाओं में लापरवाही करते हैं। यह अपनी बीमारी को लेकर सीरियस नहीं होते हैं। दवाओं और इनहेलर का सही तरीके से यूज नहीं कर पाते हैं। इसके लिए सही काउंसिलिंग की जरूरत है। अगर मरीज सही दवा और परहेज रखें तो सामान्य जीवन जी सकते हैं।

इनहेलर सबसे कारगर उपचार

आज भी हमारे अधिकांश मरीज करीब 70 से 80 प्रतिशत मरीज दवाओं और सीरप पर डिपेंड हैं। एसएन मेडिकल कॉलेज के चेस्ट फीजिशयन डॉ। जीवी सिंह के अनुसार इनहेलर न लेने के लोगों में आज कई प्रकार की भ्रांतियां हैं। जबकि इनहेलर कॉरटिकोस्टेरॉयड थैरेपी अस्थमा को नियंत्रित करने में सबसे ज्यादा कारगर है। आईसीटी के मामले में दवाई की बहुत कम डोज सीधे सूजन भरी सांस की नलियों में पहुंचती है। इससे साइड इफैक्ट्स भी सीमित होते हैं। ओरल दवाई का डोज आईसीटी के मुकाबले कई गुना ज्यादा होता है। इससे साइड इफैक्ट्स की संभावना बढ़ जाती है।

Posted By: Inextlive