कोरोना वायरस एक इंसान से दूसरे इंसान में फैलता है। अगर कोविड-19 संक्रमित को पहचाना जा सके तो उससे सोशल डिस्टेंसिंग बनाकर इस वायरस से बचा जा सकता है। मगर उन पेशेंट का क्या जिनके अंदर कोरोना वायरस होता तो है मगर उनके अंदर कोई लक्षण नहीं दिखता ऐसे पेशेंट को एसिम्प्टोमैटिक कहते हैं।

हैदराबाद (एएनआई)। भारत में कोरोना वायरस का खतरा दिनों-दिन बढ़ता जा रहा। सरकार ने इससे निपटने के लिए लॉकडाउन लगाया था मगर आर्थिक गतिविधि को पटरी पर लाने के लिए लॉकडाउन में ढील दे दी गई। जिसके बाद संक्रमितों की संख्या में और इजाफा हो गया। वायरस से बचने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से कई दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। जिसमें मास्क पहनने से लेकर दो गज की दूरी बनाए रखने की आवश्यकता बताई गई। ये लड़ाई हम सामने दिख रहे वायरस से लड़ सकते हैं मगर उनका क्या, जिनके अंदर वायरस तो है मगर लक्षण नहीं दिखते। इन्हेंं एसिम्प्टोमैटिक पेशेंट कहा जाता है और लोगों में इनको लेकर काफी डर है।

कौन होते हैं एसिम्प्टोमैटिक पेशेंट

मेडिकल भाषा में एसिम्प्टोमैटिक पेशेंट उन लोगों को कहा जाता है, जो किसी वायरस से संक्रमित होते तो हैं मगर उनके अंदर वायरस की पहचान करने के लिए कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। कुछ लोग इन्हेंं वायरस कैरियर भी कहते हैं। डब्ल्यूएचओ भी इस तरह के पेशेंट को लेकर अलर्ट है।

लक्षण नहीं दिखे तो कोई दिक्कत नहीं

सीएसआईआर-सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी के निदेशक राकेश मिश्रा ने गुरुवार को कहा कि अगर कोई लक्षण महसूस नहीं होते हैं तो एसिम्प्टोमैटिक रोगियों को कोरोना वायरस से डरने की जरूरत नहीं है। मिश्रा ने एएनआई को बताया, "ऐसा हो सकता है कि कुछ लोगों को कोरोना वायरस के कोई लक्षण महसूस न हों। इन विषम रोगियों को डरने की जरूरत नहीं है। जब तक आपको कोई लक्षण महसूस नहीं होता है, कोई समस्या नहीं है।"

सभी कोविड -19 मामलों में से कितने एसिम्प्टोमैटिक हैं

लगभग 80% कोविड -19 मामलों में या तो कोई लक्षण नहीं हो सकता है या हल्के बुखार, खांसी या गले में खराश जैसी छोटी शिकायतें हैं, जिन्हेंं अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता नहीं है। उनमें से, लगभग 30% मामलों में कोई शिकायत नहीं हो सकती है और 50% मामलों में हल्के शिकायतें हो सकती हैं। सह-रुग्ण स्थितियों के बिना अन्यथा स्वस्थ रहने वाले इन रोगियों का उपचार घर पर बाहरी आधार पर किया जा सकता है, लेकिन इन्हेंं अलगाव की आवश्यकता होती है। वे आमतौर पर अपने दम पर ठीक हो जाते हैं।

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari