देश के 11वें प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत की जो आधुनिक विदेश नीति तय की उसी पर आज तक अंतरराष्ट्रीय रिश्तों की गाड़ी दौड़ रही है। भारत के पहले पीएम जवाहर लाल नेहरू ने अमेरिका और सोवियत रूस के खेमे से इतर निर्गुट आंदोलन को लेकर विदेश नीति की नींव रखी थी। इसे वाजपेयी ने समकालीन परिदृष्य में रफ्तार प्रदान किया।


कानपुर। पाकिस्तान को जहां उन्होंने आतंकवाद पर घेर कर दुनिया के सामने बेनकाब करने की सफल कोशिश की वहीं उन्होंने दिल्ली-लाहौर बस सेवा और समझौता एक्सप्रेस शुरू करके यह भी दिखा दिया कि वे अपने पड़ोसी देश के साथ रिश्तों को बातचीत से ही सुलझाने में विश्वास रखते हैं। उन्होंने पाकिस्तान के साथ सांस्कृतिक आदान-प्रदान और व्यापार को लेकर कुछ कदम भी उठाए। पाकिस्तान और चीन के साथ संबंधों को लेकर उनका कहना था, 'दोस्त बदले जा सकते हैं पड़ोसी नहीं।' इससे पता चलता है कि वे पड़ोसी देशों को विदेश नीति में कितनी अहमियत देते थे।जनरल मुशर्रफ को भी झुकाया, साझा बयान में कबूलवाया


उनकी सटीक विदेश नीति का ही परिणाम था कि कारगिल को अंजाम देने वाले जनरल मुशर्रफ को साझा बयान में यह कहना पड़ा कि भारत के खिलाफ आतंकवाद के लिए पाकिस्तान अपनी जमीन का इस्तेमाल नहीं होने देगा। पकिस्तान को लेकर भारत सरकार आज भी उसे आतंकवाद को लेकर जवाबदेह बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लगातार कोशिशें कर रहा है। यही वजह है कि वर्तमान में वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ चुका है।चीन के साथ नये संबंध, सिक्किम को माना भारत का हिस्सा

यह तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की दूरदर्शिता या यों कहें कि वे विदेश नीति के ऐसे मर्मज्ञ शिल्पी थे जिन्होंने चीन जैसे विस्तारवादी देश को अपनी लाइन से इतर सिक्किम को भारत का हिस्सा मानने पर मजबूर कर दिया। हालांकि इसके लिए उन्हें तिब्बत को चीन का हिस्सा मानना पड़ा। वैसे भी तिब्बत को अपने देश के पहले पीएम जवाहर लाल नेहरू बहुत पहले चीन का हिस्सा मान ही चुके थे। इससे दोनों देशों के बीच जहां एक ओर आपसी समझ बढ़ी वहीं रिश्तों में एक नई ताजगी भी आई।इजराइल जैसे नए सहयोगी बनाए और लुक ईस्ट की नीति

देश के 11वें पीएम ने भारत की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए इजराइल जैसे देशों को अपने नये सहयोगी राष्ट्र बनाए और उनसे संबंधों को एक नये आयाम दिए। यह किसी से छिपा नहीं है कि कारगिल युद्ध के समय जब अमेरिका ने भारत की मदद से इनकार किया तो इजराइल ने भारत को रणनीतिक तौर पर कितनी मदद की थी। आज भी इजराइल से हम सीमा की सुरक्षा संबंधी अत्याधुनिक तकनीक को लेकर मदद ले रहे हैं। इसके साथ ही उन्होंने आसियान राष्ट्रों के साथ लुक ईस्ट नीति शुरू की जो आज भी पीएम मोदी के विदेशी एजेंडे की प्राथमिकता है। 2018 के गणतंत्र दिवस समारोह में इंडोनेशिया, म्यांमार, कंबोडिया, थाईलैंड, फिलीपींस सहित 10 दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के राष्ट्राध्यक्ष बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए थे।अमेरिका और रूस दोनों से संबंधों में संतुलन1998 में परमाणु परीक्षण करके तब के पीएम वाजपेयी ने चौंकाया ही नहीं बल्कि दुनिया को भारत की शक्ति से परीचित कराया। हालांकि भारत को कुछ आर्थिक प्रतिबंध झेलने पड़े लेकिन उन्होंने देश के आर्थिक रफ्तार को कम नहीं होने दिया। यही वजह थी कि अमेरिका को भारत के साथ अपने संबंध को लेकर एक बार फिर से सोचना पड़ा। भारत के पुराने मित्र रूस के साथ भी उन्होंने नये सिरे से स्ट्रेटजिक पार्टनरशिप की शुरुआत की। यह उनकी समझ का ही नतीजा था कि अमेरिका और रूस के संबंधों में उन्होंने संतुलन स्थापित किया। एक ओर जहां मार्च 2000 में जहां अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने भारतीय संसद को संबोधित किया वहीं अक्टूबर 2000 में रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन को भी भारतीय संसद को संबोधित करने का अवसर दिया गया। उनकी यह नीति आज भी बदस्तूर जारी है। एक ओर जहां अमेरिका से हम रणनीतिक साझेदारी और सैनिक साजोसामान खरीद रहे हैं वहीं हमने रूस से अत्याधुनिक एयर डिफेंस सिस्टम का भी सौदा किया है।स्रोत : पीएम इंडिया की आधिकारिक वेबसाइट, ब्रिटानिका और अन्य मीडिया रिपोर्ट

Posted By: Satyendra Kumar Singh