-ऑस्ट्रिया का कलाकर हुआ काशी पर फिदा, साइकिल की लम्बी यात्रा करके पहुंचा शहर

-बनारस के पकवानों का चखा स्वाद, अपनी कंट्री के फेमस डिश बनाकर खिला रहा बनारसियों को

VARANASI : काशी की माटी की खुशबू ही कुछ ऐसी है कि आदमी सात समुन्दर पार से भी यहां खिंचा चला आता है। काशी की धरती पर साइकिल से चलकर आए ऑस्ट्रिया के फेमस पेंटर पीटर फ्रीटजेनवालेनर को बनारस इतना भा गया कि उन्होंने यहां के कल्चर को पूरी शिद्दत के साथ जीया। यहां के डिशेज का जादू उन पर ऐसा चला कि वो इसके दीवाने हो गए। उन्होंने भी यहां के लोगों को ऑस्ट्रिया का स्वाद चखाने की सोची और महमूरगंज में बाकायदा ठेला लगाकर बनारस के लोगों को ऑस्ट्रिया की डिशेज खिलाई। पढि़ये ये इंट्रेस्टिंग खबर, अंदर के पेज पर।

देखी तुम्हरी काशी

काशी की आबोहवा में ऐसा जादू है जो हर किसी को अपना दीवाना बना देती है। जो यहां रहते हैं, उन्हें दुनिया का कोई कोना रास नहीं आता है। दुनिया के दूसरे कोने से कोई यहां आए तो यहां का होकर रह जाता है। ऐसा ही कुछ हुआ ऑस्ट्रिया के फेमस पेंटर पीटर फ्रीटजेनवालेनर के साथ। वह बनारस आए और यहां के हर पहलू को शिद्दत से जिया। उस स्वाद को चखा जो बनारस के लोगों को जेहन में रचा-बसा है। यहां मिले प्यार को बनारस के लोगों को लौटाने के लिए उन्हें अपने देश की फेवरेट डिश खिलाई वह भी बिल्कुल बनारसी अंदाज में। साइकिल की सवारी पसंद करने वाला ये शख्स बनारस साइकिल से ही पहुंचा और शहर को नजदीक से देखने के लिए साइकिल से ही घूमते रहे।

समझने आए कला और संस्कृति

ऑस्ट्रिया के विएना के रहने वाले ब्ख् वर्षीय पीटर एक फेमस पेंटर हैं। अकेली जिंदगी बिताते हुए कला के लिए पूरी तरह से समर्पित हैं। उनकी कूची से निकले रंग पूरी दुनिया में बिखरे हैं। उनके अपने देश में एक कलाकार के रूप में उन्हें काफी रुतबा हासिल है। कलाकृतियों को जन्म देने वाले कलाकार के मन में दुनिया के नायाब शहर काशी को देखने की इच्छा जगी। प्राचीन नगरी में कण-कण में बिखरी कला और संस्कृति को अपनी आंखों से देखना चाहते थे। उन्हें यकीन था कि इस शहर को देखने के बाद कला के प्रति उनका नजरिया और बड़ा होगा। देखने की इच्छा उनके मन में अरसे से थी। इसका मौका तो वह झट से तैयारी कर निकले पर काशी के लिए।

साइकिल से किया सफर

काशी आने से पहले उन्होंने आसपास मौजूद दुनिया के अन्य प्राचीन शहरों को देखना तय किया ताकि वह बनारस में विशेष क्या है इसकी समीक्षा वह बेहतर कर सकेंगे। पीटर ने बनारस से पहले नेपाल जाना तय किया। पंद्रह दिन पहले वह नेपाल पहुंचे। कुछ दिन यहां बिताया और स्थानीय लोगों से मुलाकात की तो सबने उन्हें काशी के बारे में काफी कुछ बताया। उनकी जिज्ञासा इस शहर के लिए और बढ़ गयी। बनारस से हर पल को जीने के लिए उन्होंने साइकिल से सफर करना तय किया। वह अपने देश से तो साइकिल लाए नहीं थे। उन्होंने नेपाल में साइकिल अरेंज की। इसके बाद निकल पड़े बनारस की ओर।

सात दिन चला सफर

पीटर को नेपाल से बनारस आने में सात दिन लगे। इस बीच वह कई शहरों से होकर गुजरे और कई शहरों में रातें बितायीं। रंगों से खेलने वाला कलाकार ने दुनिया के वास्तविक रंग देखने के लिए झुग्गियों में आराम किया, ठेले-खोमचों और रोड किनारे मौजूद ढाबों में खाना खाया। चार दिन पहले वह बनारस पहुंचे। बिना वक्त गंवाए इस शहर के कोने-कोने को निहारा। यहां के स्वादिष्ट खाने की चर्चा खूब सुनी थी तो उसे भी जमकर चखा। यहां भी वहीं अंदाज रहा। ठेले-खोमचे पर जमकर खाते-पीते रहे। कचौड़ी-जलेबी से लेकर मलइयो, ठण्डई सब कुछ खाया-पीया। चंद दिनों में ही रंगों से खेलने वाले यह शख्स काशी के रंग में पूरी तरह से सराबोर हो गया। बनारसी अंदाज के लोगों को खूब प्यार लिया तो अब उन्हें देने के लिए सोचने पर मजबूर हो गए। कला-संस्कृति भी उनकी सोच से कहीं ऊंचाई के मिले।

लगा दिया रोड पर ठेला

पीटर बनारस के स्वादिष्ट पकवानों के दीवाने हो गए। यहां से काफी कुछ लिया तो देने के लिए पकवानों का सहारा अपना। स्थानीय लोगों की मदद से महमूरगंज में एक ठेला लगा दिया। इस पर अपने कंट्री का सबसे फेमस डिश काइजर स्मार्न बनाने लगे। आटा, काजू, किसमिस, अण्डा, सेव, दूध, क्रीम, चीनी, दालचीनी के मिश्रण से तैयार होने वाला यह डिश अपने देश के चिल्ला की तरह है। इसे सिर्फ मिनिमम कॉस्ट पर बनारस के लोगों को परोसा। इस स्वादिष्ट पकवान को खाने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी। सुबह से लेकर शाम तक पीटर काइजर स्मार्न बनाते रहे और बनारस के लोगों को खिलाते रहे।

पेंटिंग में होगा बनारस

पीटर की अगली पेंटिंग में बनारस दिखायी देगा। पीटर कहते हैं कि उन्होंने इस शहर में कला के इतने आयाम देखे कि उनके सोचने की सीमा और बड़ी हो गयी। इस शहर में दुनिया के सारे रंग हैं। जिंदगी का उल्लास है मौत का उत्सव इस शहर में नजर आता है। गंगा की कल-कल सुनाई देती है तो घंटे-घडि़याल की आवाज गूंजती है। हर शख्स के जीने का अंदाज मासूम की मस्ती जैसा है। खास हो या आम सब एक जैसे हैं। इसे जीने वाले तो ऐसे ही कलाकार हो जाएगा। पीटर कहते हैं कि इस शहर से बेहद प्रभावित हैं। उनकी अगली पेंटिंग्स में यह शहर होगा। सिर्फ एक कैनवास पर इस शहर को उतारना मुश्किल है तो पेटिंग की एक सिरीज में बनारस दिखेगा। अगले दो दिन में पीटर आगरा में जाएंगे। इसके बाद दिल्ली से होते अपने देश लौट जाएंगे और इस शहर को उकेरने के लिए उनकी कूची चलने लगेगी।

Posted By: Inextlive