सुप्रीम कोर्ट में हिंदू पक्षकारों ने विवादित स्थल पर मंदिर होने की दलील पेश की। उनका दावा था कि वहां मस्जिद बनाने के लिए भगवान विष्णु के अवतार भगवान राम का मंदिर तोड़ा गया। एक संस्कृत भाषा में लिखा एक शिला वहां मिली है जिसकी भारतीय पुरातत्व विभाग ने पुष्टि की है।


नई दिल्ली (आईएएनएस/पीटीआई)। भारतीय पुरातत्व विभाग की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए राम लला विराजमान के वकील ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि विवादित स्थल पर मस्जिद बनाने के लिए अयोध्या में मौजूद मंदिर तोड़ा गया था। राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद केस में राम लला विराजमान एक पक्षकार हैं। सुनवाई के आठवें दिन हिंदू पक्षकारों ने कोर्ट में कहा कि 1992 में विवादित मस्जिद से 12वीं शताब्दी का एक शिला पट्ट मिला है जिसमें संस्कृत भाषा में लिखा गया है। उनकी दलील थी कि इससे उस स्थान पर मंदिर के मौजूद होने को बल मिलात है। राम लला विराजमान की ओर से पैरवी कर रहे वरीष्ठ अधिवक्ता सीएस वैद्यनाथन ने चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में संवैधानिक पीठ को सूचित किया कि इस शिला पट्ट की प्रमाणिकता को लेकर कभी बात नहीं की गई।एएसआई के वरीष्ठ सदस्य ने किया है शिला पट्ट का उल्लेख


उन्होंने कहा कि मस्जिद की दीवारों के बीच शिला पट्ट लगी हुई थी। मस्जित ढहाने के दौरान वह गिर गई थी। शिला पट्ट 4 फुट लंबी और 2 फुट चौड़ी है। गिरने के दौरान यह तिरछे दो टुकड़ों में टूट गई थी। वैद्यनाथन की दलील थी कि टूटने के बावजूद उसकी लिखावट को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है। उस पर संस्कृत में लिखा गया है, जिससे उस मंदिर के भगवान विष्णु और उनके अवतार भगवान राम से संबंधित जान पड़ता है। इस संस्कृत पुरालेख की वर्तनी संबंधी विवरण का उल्लेख भारतीय पुरातत्व विभाग के वरीष्ठ सदस्य ने किया है।शिलापट्ट पर राजा गोबिंद चंद्र का उल्लेख, वहां था विष्णु हरि का मंदिरवैद्यनाथन ने कोर्ट में दलील पेश करते हुए कहा कि शिला पट्ट पर लिखे श्लोक में राजा गोबिंद चंद्र का उल्लेख है जिन्होंने अयोध्या में 1114 से 1155 इस्वी सन के दौरान राज किया था। श्लोक से इस बात का भी पता चलता है कि वहां भगवान विष्णु हरि का मंदिर था, जिन पर लोगों की अगाध श्रद्धा थी। इसमें राजा की वंशावली का भी जिक्र है और इस बात का भी जिक्र है कि अयोध्या साकेत मंडल की राजधानी थी। हिंदू पक्षकारों ने पुरातत्व विभाग के वरीष्ठ अधिकारी केवी रमेश द्वारा उल्लिखित प्रमाण का हवाला पेश किया। रमेश ने उस शिला पट्ट में लिखे संस्कृत के श्लोक का अनुवाद किया था और पता लगाया था कि यह 12वीं शताब्दी का लिखा गया है।दूसरे पक्षकारों ने उठाए शिला पट्ट की विश्वसनीयता पर सवाल

कोर्ट ने शिला पट्ट की प्रमाणिकता को लेकर सवाल किए तो दूसरे पक्ष ने इसका नकारात्मक जवाब दिया। उनका कहना था कि इस शिला पट्ट की जिस पत्रकार अशोक चंद्र की मौजूदगी में हुआ था उनका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ाव था इसलिए शिला पट्ट की विश्वसनीयता संदेह के घेरे में है। अशोक और रमेश दोनों के बयान इस मामले में बतौर विटनेस दर्ज हैं। शिला पट्ट की वर्तमान मौजूदगी को लेकर पूछे गए सवाल पर वैद्यनाथन ने जवाब दिया कि यह सरकार की कस्टडी में है। उनकी दलील थी कि पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट इस बात को पुख्ता करती है कि वहां पिलर्स पर एक बड़ा हाॅल था तथा वहां पूजा करने वाले हिंदू धर्म को मानने वाले थे। इस रिपोर्ट पर शक की कोई गुंजाईश नहीं है।

Posted By: Satyendra Kumar Singh