Patna: आजादी के इतने साल बाद भी कभी-कभी जाने-अंजाने देश में सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगड़ ही जाता है कारण जो भी हो. इंटरनेट-नेटवर्किंग साइट्स के इस फास्ट और ब्रॉड जमाने में भी कुछ लोग जाति-कौम का रोना रोते रहते हैं.


भाषा या धर्म आड़े नहीं आतीपटना में इन होनहारों ने कुछ ऐसा कर दिखाया है कि देश के बाकी लोगों के लिए मिसाल से कम नहीं है। भाषा या धर्म किसी भी काम में आड़े नहीं आती, यह इन्होंने करके दिखा दिया है। वो भी, इंफ्रास्ट्रक्चर और पैसे की कमी के बावजूद। मदरसा बोर्ड के मौलवी के एग्जाम में स्टेट की सेकेण्ड टॉपर बनी सीमा कुमारी ने हर क्रिटिक का सामना कर उर्दू मीडियम में अपनी पढ़ाई जारी रखी। सीमा कहती है कि मैं अपने देश में हिन्दू-मुस्लिम के बीच की हर दीवार को खत्म करना चाहती हूं। किशनगंज की मदरसा इस्लामिया फैजुल, घनपतगंज की स्टूडेंट सीमा कुमारी ने आई नेक्स्ट से अपनी फीलिंग्स शेयर की।इस सक्सेस पर क्या कहना चाहेंगी?
वह दिन याद है, जब मुझे हिन्दू सोसायटी में गलत नजरों से देखा जाता था। लोग तो हम पर मुस्लिम हो जाने तक का आरोप लगाते थे। हमलोग हिन्दू के जिस वर्ग से बिलांग करते हैं, वहां हमारी स्थिति अच्छी नहीं है, फिर भी मैंने किसी चीज की परवाह नहीं की और आगे बढ़ती रही। नॉन मुस्लिम का संबोधन कैसा लगता है?


नॉन मुस्लिम का संबोधन मुझे अच्छा लगता है। कम से कम इस वर्ड से हिन्दु-मुस्लिम की एकता की झलक तो मिलती है। इस तरह की व्यवस्था दूसरे बोर्ड में भी होनी चाहिए। लैंग्वेज के बैरियर को खत्म कर ही हम देश की एकता बना सकेंगे। मदरसा बोर्ड कम से कम नॉन मुस्लिम का दर्जा देकर इस बैरियर को खत्म करने की कोशिश तो कर रहा है।उर्दू पढऩे में कैसी दिक्कतें आईं?स्टार्टिंग में तो बहुत प्रॉब्लम हुई। समझने में परेशानी होती थी। घर में हिन्दी लैंग्वेज का माहौल था और स्कूल में उर्दू, तो समझने बहुत प्रॉब्लम होती थी। और कोई कुछ बताने वाला भी तो नहीं था। अब हम चारों भाई-बहन उर्दू से ही पढ़ाई कर रहे हैं, जिससे कोई परेशानी नहीं है। उर्दू की ओर किसी ने प्रेरित किया या खुद का ही मन था?पापा ने मुझे उर्दू पढऩे की ओर प्रेरित किया। मैं हिन्दी और उर्दू दोनों भाषा की पढ़ाई कर रही हूं। हिन्दी की तैयारी घर में ही पापा करवाते हैं, तो उर्दू मदरसा में जाकर पढ़ती हूं। इससे एक साथ मुझे दोनों भाषाओं की जानकारी हो रही है।आपकी नजर में हिंदी और उर्दू में कितना फर्क है?

हिन्दी से राष्ट्रीयता की खुशबू आती है, तो उर्दू में रीजनल का स्वाद मिलता है। मुझे तो कभी नहीं लगा कि उर्दू हमारी भाषा नहीं है। लैंग्वेज तो लैंग्वेज होती है। मेरी नजर में इन दोनों भाषा में कोई फर्क ही नहीं है। हर भाषा की अपना स्टैंडर्ड होता है। ऐसे भी जितनी भाषा की जानकारी हो, उतना ही अच्छा होता है। आपकी फ्यूचर प्लानिंग क्या है?मैं अभी उर्दू से ही बीए करना चाहती हूं। उसके बाद मैं सिविल सर्विसेज में जाना चाहती हूं। इसलिए दूसरे सब्जेक्ट की भी पढ़ाई कर रही हूं।टॉपर बनने के बाद सोसायटी के लिए क्या करना चाहती हैं?टॉपर बनने के बाद मुझे बहुत सारे लोगों ने बधाईयां दी। तब मुझे अहसास हुआ कि सफल होने के बाद इंसान का महत्व कितना बढ़ जाता है। बधाई मुझे उर्दू में टॉपर होने के कारण अधिक मिल रहा था। मैं सोसायटी में कुछ ऐसा करना चाहती हूं, जिससे भाषा, जाति, धर्म आदि से ऊपर उठ कर लोग हर तरह की शिक्षा लें। गल्र्स एजुकेशन की स्थिति पर क्या कहेंगी?
आज भी हमारे समाज में गल्र्स एजुकेशन बहुत कमजोर है। खासकर पिछड़े हिन्दू और मुस्लिम में आज भी गल्र्स को पढ़ाया नहीं जाता है, जिसे एक लड़की ही समझ सकती है। मैं सोसायटी की उन तमाम सफल गल्र्स से अपील करूंगी कि जब वो एक मुकाम हासिल कर लें, तो गल्र्स एजुकेशन पर काम करें। मैं अभी से इसकी शुरुआत कर चुकी हूं। अपने घर में लड़कियों को बुलाकर पढ़ाती हूं। Profileसीमा कुमारीफादर्स नेम  - बंधू सदामदर्स नेम  - कमला देवीrinku.jha@inext.co.in

Posted By: Inextlive