AGRA: फाग खेलन बरसाने आए हैं नटवर नंद किशोर. घेर लई सब गली रंगीली. फ्राइडे को ऐसे ही गानों से सरोबोर थी कृष्ण की नगरी बरसाना. गलियों में देशभर से श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा. एक तरफ हुरियारों पर लठ्ठ बरस रहे थे तो दूसरी तरफ फूल. अबीर-गुलाल तो मानो हर किसी पर चढ़ा हुआ था.

बरसाने में जमकर हुई होली
फ्राइडे को ब्रज की पारंपरिक लट्ठमार होली खेलने नंदगांव के युवक तैयार होकर दोपहर बाद बरसाने पहुंचे। यहां की हुरियारिन नंदगांव के हुरियारों के लिए पहले से लठ्ठ लेकर तैयार बैठी थीं। स्वागत-सत्कार के बाद शुरू हुई लठ्ठमार होली। सुदामा मोहल्ला, रंगीली गली, फूल गली, कुंज गलीजैसी सभी गलियां शाम होते-होते रंगों में डूब गई थीं। इसी बीच नंदगांव की टोली रंगीली गली जा पहुंची। फिर क्या था। सजी-धजी बैठी हुरियारिनों ने नंदगांव के छोरों पर प्यार भरी लाठ्ठियां बरसाना शुरू कर दिया। वहीं बरसाने के ऊपर मंडराता हेलीकॉप्टर फूल बरसाता रहा। इस होली को देखने के लिए देश-विदेश से काफी लोग बरसाने में जुटे। लठ्ठमार होली के दौरान बरसाने की किसी भी गली में पैर रखने तक की जगह नहीं थी।

डिस्टर्ब हो रहा ईको सिस्टम
जानकारों के मुताबिक, सिटी में करीब 1500 जगहों पर होली जलाई जाती है। एक जगह पर होली जलाने में करीब चार से पांच कुंटल लकड़ी जला दी जाती है। इसमें अधिकांश पार्ट हरे पेड़ों का होता है। इस तरह से होली वाले दिन सिटी में ही करीब 7,500 कुंटल लकड़ी जला दी जाती है। जाहिर सी बात है कि होली में हरे पेड़ों को काटकर ही लकड़ी का इंतजाम किया जाता है। जिसका सीधा सा असर सिटी की ग्रीनरी पर पड़ता है। एक्सपट्र्स के मुताबिक, हरे पेड़ों की अंधाधुंध कटाई का असर ईको सिस्टम पर भी पड़ता है। जिससे एनवॉयरनमेंट का बैलेंस बिगड़ हो जाता है।


निकलता है जहरीला धुंआ
एक्सपट्र्स के मुताबिक, लकड़ी जलने के दौरान कार्बन मोनोऑक्साइड उत्सर्जित करती है। जिससे आस पास का एनवॉयरनमेंट में जहरीली गैस की मात्रा कई गुना बढ़ जाती है। इतना ही नहीं हरा पेड़ होने की वजह से लकड़ी के जलने की परसेंट काफी कम रहती है। वह पूर्ण रूप से न जलकर धुंआ अधिक मात्रा में पैदा करती है। जिसमें हद से ज्यादा कार्बन मोनोऑक्साइड होता है।


फॉर एनवारमेंट सेफ्टी
ऐसा नहीं है कि होली है तो होलिका दहन नहीं किया जाए। जानकारों के मुताबिक, होलिका दहन के दौरान अगर थोड़ी सी समझदारी दिखा दी जाए, तो हरे पेड़ों को कटने से बचाया जा सकता है। होलिका दहन में हरे पेड़ों की जगह पर बेकार पड़ी लकड़ी, सूखे पेड़ और पेड़ों की छंटाई से निकली लकडिय़ों का यूज किया जा सकता है। इस तरह से परंपराओं के साथ एनवॉयरनमेंट सेफ्टी की फिक्र को पूरी ईमानदारी से निभाया जा सकता है।
प्वाइंट टू बी नोटेड
। बेकार और सूखी पड़ी लकड़ी ही जलाएं
। जगह-जगह होलिका दहन न कर, एक बड़े पार्क में होली जलाकर भी लकडिय़ों की बचत की जा सकती है
। याद रखें हरे पेड़ों में भी जान होती है। ये हमारी तरह से ही ग्रो करते हैं।
। सिटी के एनवायरमेंट हो बचाए रखने की भी जिम्मेदारी हमारी है

Posted By: Inextlive