सृष्टिकाल में ईश्वर की इच्छा से आद्याशक्ति ने अपने को पांच भागों में विभक्त कर लिया था। वे राधा पद्मा सावित्री दुर्गा और सरस्वती के रूप में जानी जाती हैं।

भगवती सरस्वती विद्या, बुद्धि, ज्ञान और वाणी की अधिष्ठात्री देवी हैं तथा सर्वदा शास्त्र-ज्ञान देने वाली हैं। भगवती शारदा का मूलस्थान शशांक सदन अर्थात् अमृतमय प्रकाशपुंज है। जहाँ से वे अपने उपासकों के लिए निरंतर पचास अक्षरों के रूप में ज्ञानामृत की धारा प्रवाहित करती हैं।

उनका विग्रह शुद्ध ज्ञानमय, आनन्दमय है। उनका तेज दिव्य एवं अपरिमेय है और वे ही शब्दब्रह्म के रूप में स्तुत होती हैं। सृष्टिकाल में ईश्वर की इच्छा से आद्याशक्ति ने अपने को पांच भागों में विभक्त कर लिया था। वे राधा, पद्मा, सावित्री, दुर्गा और सरस्वती के रूप में जानी जाती हैं। भगवान् श्रीकृष्ण के कण्ठ से उत्पन्न होने वाली देवी का नाम सरस्वती है।

आविर्बभूव तत्पश्चान्मुखतः परमात्मनः।

एका देवी शुक्लवर्णा वीणापुस्तकधारिणी।।

वागाधिष्ठातृ देवी सा कवीमामिष्टदेवता।

सा च शक्तिः सृष्टिकाले पञ्चधा चेश्वरेच्छया।

राधा पद्मा च सावित्री दुर्गा देवी सरस्वती।।

वागाधिष्ठातृ या देवी शास्त्रज्ञानप्रदा सदा।

कृष्णकण्ठोद्भवा सा च या च देवी सरस्वती।।

(ब्र.वै.पु.३/५४,५७)

सरस्वती देवी के ये नाम हैं प्रसिद्ध


दुर्गासप्तशती में भी आद्याशक्ति द्वारा अपने-आप को तीन भागों में विभक्त करने की कथा प्राप्त होती है। आद्याशक्ति के ये तीनों रूप महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के नाम से जगद्विख्यात हैं। देवी सरस्वती सत्वगुणसम्पन्ना हैं। इनके अनेक नाम हैं, जिनमें से वाक्, वाणी, गीः, गिरा, भाषा, शारदा, वाचा, धीश्वरी, वागीश्वरी, ब्राह्मी, गौ, सोमलता, वाग्देवी और वाग्देवता आदि अधिक प्रसिद्ध हैं।

भगवती सरस्वती विद्या की अधिष्ठातृ देवी हैं और विद्या को सभी धनों में प्रधान धन कहा गया है। विद्या से ही अमृत पान किया जा सकता है। भगवती सरस्वती की महिमा और प्रभाव असीम है। वे राष्ट्रिय भावना प्रदान करती हैं तथा लोकहित के लिए संघर्ष करती हैं। सृष्टि-निर्माण वाग्देवी का कार्य है। वे ही सारे संसार की निर्मात्री एवं अधीश्वरी हैं। वाग्देवी को प्रसन्न कर लेने पर मनुष्य संसार के सारे सुख भोगता है। इनके अनुग्रह से मनुष्य ज्ञानी, विज्ञानी, मेधावी, महर्षि और ब्रह्मर्षि हो जाता है। वाग्देवी सर्वत्र व्याप्त हैं तथापि वे निर्लेप-निरंजव एवं निष्काम हैं।

बसंत पंचमी के अन्य नाम


इस प्रकार अमित तेजस्विनी और अनन्त गुणशालिनी देवी सरस्वती की पूजा एवं आराधना के लिए माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि निर्धारित की गई है। बसंत पंचमी को इनका आविर्भाव दिवस माना जाता है। अतः वागीश्वरी जयन्ती एवं श्रीपंचमी के नाम से भी इस तिथि की प्रसिद्धि है। इस बार बसंत पंचमी 10 फरवरी को है।

इस दिन इनकी विशेष पूजा-अर्चना तथा व्रतोत्सव के द्वारा इनके सांनिध्य प्राप्ति की साधना की जाती है। सरस्वती देवी की इस वार्षिक पूजा के साथ ही बालकों के अक्षरारम्भ एवं विद्यारम्भ की तिथियों पर भी सरस्वती-पूजन का विधान किया गया है।

— ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र

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Posted By: Kartikeya Tiwari