चेन्नई में संडे को हुई बीसीसीआई की वर्किंग कमेटी की बैठक जो हुआ वह सब पहले से फिक्‍स था. स्क्रीन पर दिख कुछ रहा था और वास्तव में हो कुछ और रहा था. श्रीनिवासन ने जो चाहा बैठक का डिसीजन वही निकला.


श्रीनिवासन ने बीसीसीआई अध्यक्ष का पद नहीं छोड़ा बल्कि वह जांच पूरी होने तक अध्यक्ष पद के कामकाज से दूर हुए. साथ ही उन्होंने अपने विरोधियों आईएस बिंद्रा, शशांक मनोहर को बीसीसीआई में वापसी का कोई मौका नहीं दिया. क्रिकेट को साफ करने के लिए हुई इस बैठक में सिर्फ पॉलिटिक्स हावी रही.  मीडिया और क्रिकेट प्रशंसकों के सामने श्रीनिवासन से दूरी दिखाने के लिए पूर्व आईपीएल चेयरमैन राजीव शुक्ला, बीसीसीआई उपाध्यक्ष अरुण जेटली और ज्वाइंट सेक्रेटरी अनुराग ठाकुर चेन्नई नहीं गए लेकिन दिल्ली में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए उन्होंने वही किया जो कहीं न कहीं श्रीनिवासन के पक्ष में गया. डालमिया-पवार की लड़ाई का फायदा


पूर्व बीसीसीआइ अध्यक्षों जगमोहन डालमिया और शरद पवार के बीच की अदावत संडे को भी काम कर गई. अगर यह दोनों एक होते तो श्रीनिवासन एक मिनट भी गद्दी पर बैठ नहीं सकते थे लेकिन यह दोनों एक साथ नहीं आ सकते जिसका फायदा श्री को मिला. जब पवार खुले तौर पर श्रीनिवासन का विरोध कर रहे थे तो डालमिया को अपने पूर्व विरोधी और वर्तमान सहयोगी श्रीनिवासन के जरिए किंगमेकर बनने का मौका मिल गया.

बैठक में श्रीनिवासन का कामकाज देखने के लिए पहला नाम अरुण जेटली का आया लेकिन राजनीतिक करियर को ध्यान में रखते हुए उन्होंने कांटों से भरे ताज को पहनना उचित नहीं समझा और उन्होंने डालमिया का नाम प्रस्तावित किया. जेटली और डालमिया के बीच अच्छा सामंजस्य है. डालमिया भविष्य में जेटली को बीसीसीआई का अध्यक्ष बनते हुए देखना चाहते हैं. राजीव शुक्ला और अनुराग ठाकुर बीसीसीआई में वही करते हैं जो जेटली कहते हैं. श्रीनिवासन भी पवार गुट को रोकने के लिए डालमिया पर तैयार हो गए. यह सब गेम प्लान के तहत हुआ.अभी से खेला जा रहा है अगले अध्यक्ष का खेलराजीव शुक्ला, अरुण जेटली, अनुराग ठाकुर, डालमिया और कई अन्य मीडिया में तो श्रीनिवासन के विरोधी दिखना चाहते हैं लेकिन अंदरखाने वे श्री के खिलाफ नहीं हैं. इसकी साफ वजह है बीसीसीआई की इंटर्नल पॉलिटिक्स. अगर श्रीनिवासन का कार्यकाल एक साल और नहीं बढ़ाया गया तो इस सितंबर को बोर्ड का नया अध्यक्ष चुना जाएगा.

इसके लिए जेटली और डालमिया को श्री की जरूरत पड़ेगी. इस पद की दौड़ में जेटली सबसे आगे हैं इसलिए वह नहीं चाहते कि भविष्य के खेल पर अभी से कोई ग्रहण लग जाए. अगर जेटली अगले अध्यक्ष पद के लिए आगे नहीं भी आएंगे तो वह चाहेंगे कि उनका ही कोई खास इस पद पर बैठे और इसक लिए भी उन्हें श्री की मदद चाहिए होगी.
क्यों नहीं इस्तीफा देना चाहते श्रीनिवासनश्री के इस्तीफा देते ही उनकी टीम चेन्नई सुपर किंग्स (सीएसके) के करार पर संकट बढ़ जाएगा. उन्हें विरोधी गुट के सत्तासीन होते ही सीएसके का करार खत्म होने का डर सता रहा है. वह जानते हैं कि बोर्ड में कोई पक्का दोस्त नहीं है. जैसे उन्होंने ललित मोदी को और पवार ने डालमिया को बाहर किया था वैसे ही ताकत खत्म होते ही उनका खेल समाप्त हो जाएगा. सीएसके का करार रद होने से श्रीनिवासन को अरबों का नुकसान हो सकता है. यही नहीं पद जाने पर वह अपने दामाद गुरुनाथ मयप्पन की कोई मदद नहीं कर सकते.किसी ने भी इस्तीफा नहीं मांगा: श्रीनिवासनबीसीसीआई अध्यक्ष एन श्रीनिवासन ने रविवार को चेन्नई में हुई कार्य समिति की आपात बैठक के बाद भी अडिय़ल रुख अपनाए रखा और बैठक के बाद उन्होंने जोर दिया कि चर्चा के दौरान एक भी सदस्य ने उन्हें इस्तीफा देने के लिए नहीं कहा. बैठक के बाद श्रीनिवासन ने कहा कि विचार-विमर्श के बाद, मैंने घोषणा की कि जांच पूरी हो जाने तक मैं अध्यक्ष पद नहीं छोडूंगा. मेरे खिलाफ कोई आरोप नहीं है.

Posted By: Garima Shukla