बचपन में साइकिलिंग का तो जैसे जुनून था। जब भी मौका मिलता साइकिल से निकल जाता था। स्कूल साइकिल से जाने में अलग फील आती थी। उस वक्त मौके ढूंढा करता था कि कैसे साइकिल लेकर निकल जाऊं। एक बार मैं परिवार में बिना किसी को बताए साइकिल लेकर निकल गया। दोस्तों के साथ घूमते हुए वक्त कैसे बीत गया पता ही नहीं चला। काफी देर तक घर नहीं लौटा तो परिवारवालों को चिंता होने लगी। वे खोजने निकल गए। लौटा तो खूब डांट मिली। साइकिलिंग की बात से वे पुरानी यादें ताजा हो गई हैं। आज भी मुझे साइकिल चलाने का क्रेज है। प्रोफेशनल मजबूरी के चलते भले ही मैं साइकिल लेकर रोड पर नहीं निकल पाता लेकिन दोस्तों के साथ मौका मिलता है तो जरूर चला लेता हूं। मैं व्यक्तिगत तौर पर मानता हूं कि सिर्फ साइकिलिंग स्वस्थ रखने के साथ मुझे फिट रखती है। जो काम पहले कैजुअल तौर पर होता था उसके लिए अब जिम जाना पड़ता है। मेरा वश चले तो मैं हर दिन साइकिल चलाऊं। स्कूल के बच्चों को भी फिटनेस के इस सबसे ईजी फंडे को इस्तेमाल की सलाह देता हूं। शहर के पर्यावरण की सेहत को दुरुस्त रखने का इससे अच्छा कोई और तरीका हो हीं नहीं सकता। सबको जब भी मौका मिले साइकिल जरूर चलानी चाहिए। इसके चलाने में किसी प्रकार के संकोच की जरूरत नहीं है। वैसे भी एक बार यह हैबिट में आ गई तो फिर इसे चलाए बिना आपको चैन नहीं आएगा। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट का यह इनीशिएटिव बेहतरीन है। सब साइकिल चलाएंगे तो झिझक अपने आप मन से निकल जाएगी। तो बस ठान लेना है। साइकिल चलाना ही है। खुद के लिए। अपने शहर के लिए और आने वाली पीढ़ी को बेहतर भविष्य देने के लिए।

अभिषेक तिवारी, एमडी, विष्णु भगवान पब्लिक स्कूल, झलवा इलाहाबाद

Posted By: Inextlive