Youth voter के पास है बेहतर candidate तय करने की समझ

रंग दे बसंती’ तो याद होगी ना. आमिर खान, अतुल कुलकर्णी, शरमन जोशी और उनका ‘गैंग’. बड़ा ही बेफिक्र और बिंदास यंगिस्तान था उनका. बस अपनी लाइफ मस्ती में जियो, बाकी सबसे क्या मतलब. अचानक सीन बदला और मस्त रहने वाला यह ग्रुप देश और पॉलिटिक्स को लेकर संजीदा हो गया. इस मूवी में जो हुआ, वह जाहिर है कि आइडियल नहीं है, लेकिन उसका एसेंस इतना ही है कि यूथ से चेंज एक्सपेक्टेड है. यही बात यूथ वोटर पर लागू होती है.

क्योंकि वो समझदार है

आज का यूथ, जो एजूकेडेट है और जिसके मोबाइल पर सारा सोशल नेटवर्क हर वक्त मौजूद रहता है, का वोट काफी अहमियत रखता है. दिल्ली के हंसराज कॉलेज से ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहे अंकित सेठी कहते हैं कि यंग वोटर खासतौर पर अर्बन यूथ के पास हर चीज को ऑब्जर्व करने की समझ और लॉजिकली डिसाइड करने की कैपेबिलिटी है. हां उसे अभी इस इस बात को एक्टिवली प्रूव करना है कि वह बदलाव ला सकता है और वह भी अपना वोट इस्तेमाल करके.

ये भी, वो भी
अभी तक हुए इलेक्शंस और खासकर पिछले 3-4 इलेक्शंस में यूथ वोटर का बिहेवियर बहुत रेडिकल नहीं रहा है. हां, यह बात जरूर है कि कुछ चेंज देखने को मिल रहा है. सीएसडीएस ने इंडियन यूथ की सोच पर एक स्टडी की. इसमें सामने निकलकर आया कि यूथ का बिहेवियर बड़ा ही अनसर्टेन है. दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर कल्पना गांगुली कहती हैं कि आज का यूथ इंडियननेस को भी पसंद करता है और वेस्टर्न कल्चर को भी. शायद वह वेस्टर्न कल्चर को खुद पर बहुत हावी नहीं होने देना चाहता है. वह ईस्ट और वेस्ट किसी पर भी पूरी तरह खुद को डिपेंड करने में यकीन नहीं रखता.


अभी असर आना है बाकी


स्टडी एक बड़ा अहम खुलासा करती है. इंडिया में अभी तक यूथ वोट क्लास, कास्ट, रीजन और जेंडर के कंपैरिजन में अधिक असर नहीं डाल पाया है. यूपी की ही तरह इस समय मुंबई में भी बीएमएसी इलेक्शन का माहौल है. पहली बार अपनी वोटिंग पावर का यूज करने जा रहे इंजीनियर मनीष मिश्रा कहते हैं कि कास्ट और क्लास जैसे सेगमेंट्स पॉलिटिक्स को लंबे समय से अफेक्ट करते रहे हैं. ऐसे में यूथ वोट असर बनाने लगा है तो आने वाले समय में बदलाव ला सकता है.

यूरोप है डिफरेंट
मशहूर सेफोलॉजिस्ट योगेन्द्र यादव यूथ वोटर के बिहेवियल इम्पैक्ट पर बताते हैं कि वेस्टर्न वल्र्ड में पॉलिटिक्स कास्ट सिस्टम के बजाए जेनरेशंस के स्ट्रगल पर फोकस करती है. वहां की पॉलिटिक्स इसी के आसपास घूमती है. ग्रीन पार्टी इसका एग्जांपल है जो केवल यूथ वोटर के सहारे ही अपना एक मुकाम बना पाने में सफल रही. योगेंद्र यादव अमेरिकी प्रेसीडेंट बराक ओबामा की जीत के पीछे भी यंगिस्तान को ही जिम्मेदार मानते हैं. उनका मानना है कि इस बार असेेंबली इलेक्शन में  यूथ वोटर्स ही डिसाइडिंग फैक्टर होगा. यूथ को अपनी पॉवर पहचानने की जरूरत है.

Posted By: Garima Shukla