-मेरठ के इतिहास को ले जाते रहे हैं आने-जाने वाले

-मेरठ की ऐतिहासिक इमारतों पर अवैध कब्जे

-रखरखाव के अभाव में दरक रहे मराठाकालीन भवन

अखिल कुमार

Meerut : फिरोजशाह कोटला में स्थापित व‌र्ल्ड क्लास हेरीटेज मॉन्यूमेंट 'अशोकन पिलर' मेरठ की धरोहर है। फिरोजशाह तुगलक (1309-1388 ईसवी) में इस धरोहर को मेरठ से दिल्ली ले गया था। त्रेतायुग के मयराष्ट्र से देश के प्रथम स्वाधीनता संग्राम तक मेरठ ने इतिहास के पन्नों में स्थान लिया है। मयराष्ट्र से मेरठ तक के हजारों सालों के इस सफर में कुछ जुड़ा तो बहुत कुछ खुदबुर्द भी हुआ है। हालिया यकीन करें तो सिस्टम की नजरअंदाजी से आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया से संरक्षित शाहपीर का मकबरा, सरधना चर्च समेत 100 के करीब छोटे-बड़े मॉन्यूमेंट अतिक्रमणकारियों के कब्जे में हैं तो शिल्पकारी की मिसाल 18वीं सदी की सैकड़ों इमारतें जमींदोज हो रही हैं।

चला गया अशोकन पिलर

सम्राट अशोक के शासनकाल (273-236 ईसा पूर्व) में मेरठ में अशोकन पिलर की स्थापना की थी। इस पिलर को मेरठ में शिकार खेलने आए फिरोजशाह तुगलक की नजर इस विशालकाय पिलर पर पड़ी और वो इसे दिल्ली ले गया। 42 पहियों की बैलगाड़ी से इस पिलर को यमुना के सहारे ले जाया गया बाद में नाव से यमुना पार कराकर हिन्दू राव अस्पताल के समीप स्थापित क दिया गया। 10 मीटर ऊंचे शिला फर्रुकसियर के शासनकाल में विस्फोट से क्षतिग्रस्त हो गई, शिला के पांच टुकडों को एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल (कोलकाता) ले जाया गया जहां से शिला को जोड़कर दोबारा दिल्ली लाया गया।

थी मेरठ की शान

- इतिहासकारों का मानना है कि अकबर की टकसाल मेरठ में थी। अकबर पीरिएड के क्वाइन इस बात का प्रमाण हैं।

-बागपत के रटौल से राजपूत काल, 7-8वीं सेंचुरी की पत्थर की बेहतरीन देवी-देवताओं की मूर्तियां यहां से मथुरा म्यूजियम में शिफ्ट कर दी गई।

-हिंदू सभ्यता के प्रमाण मुजफ्फरनगर, सिनौली में मिले हैं तो वहीं सिनौली में शवाधान (शव दफनाने का स्थान) मिला है।

खास बात

मेरठ सिंधु सभ्यता की ईस्टर्न बाउंड्री है। इतिहासकार डॉ। मनोज गौतम के मुताबिक प्राचीन हिंदू सभ्यता की वेस्ट में सुत्कागेनडोर (अफगानिस्तान), नार्थ में मांडा (जम्मू-कश्मीर), साउथ में दायमाबाद (महाराष्ट्र) और ईस्ट में आलमगीरपुर (मेरठ) है।

मयराष्ट्र से मेरठ तक

ऐतिहासिक धरोहरों से हरी-भरी क्रांतिधरा मेरठ का अस्तित्व प्राचीन काल में था। मेरठ का नाम मयराष्ट्र था और जनश्रुति के अनुसार यह रामायण में वर्णित मयदानव का राज्य था। मयदानव रावण की पत्‍‌नी मंदोदरी का पिता था, विव्लेश्वर महादेव मंदिर का संबंध भी त्रेताकाल से है। द्वापरयुग में महाभारत में भी मयराष्ट्र का जिक्र आया है, किवदंती है कि इसे इंद्रप्रस्थ बसाने वाले वास्तुकार मय ने बसाया था। 1836 में मेरठ के मौजूदा स्वरूप को पहचान मिली।

जमींदोज हो रहीं ऐतिहासिक इमारतें

हस्तिनापुर-महाभारत काल में यह भारतवर्ष की राजधानी था, भग्नावशेष बाकी हैं तो आज भी जैन तीर्थस्थल के नाम से देश-विदेश में चर्चित है। शीर्ष एजेंसियों की नजरअंदाजी से उपेक्षित है, ये ऐतिहासिकनगरी।

किला परीक्षितगढ-महाभारत काल में ही राजा परीक्षितगढ़ द्वारा इस शहर को बताया गया था। कई ऐतिहासिक प्रमाण आज भी मौजूद हैं तो ज्यादातर जमींदोज हो गए।

वरनावा का लाक्षागृह: महाभारत काल में चर्चा में आया लाक्षागृह मेरठ के समीप वरनावा में है। यहां आज भी लाक्षागृह के प्रमाण और भग्नावशेष हैं पर ऐतिहासिक स्थल की पहचान इतिहास की किताब के पन्नों में बची है।

गगोल-गगोल धार्मिक स्थल का जिक्र ऋषि विश्वामित्र के साथ है। गगोल तालाब रामायण काल में बनवाया गया तो वहीं 1857 की क्रांति के साथ इसी तालाब के पास पेड़ के नीचे ब्रिटिश ने क्रांतिकारियों को एकसाथ फांसी पर लटका दिया था।

खरखौदा-खर-दूषण की नगरी।

शाहपीर गेट-आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) द्वारा संरक्षित इस इमारत के आसपास अतिक्रमणकारियों का कब्जा है। 1620 ईसवी में इस दरगाह की स्थापना नूरजहां से कराई थी।

अबू का मकबरा-1688 में अबू मोहम्मद खान कंबो की पीढ़ी ने अबू के मकबरे की स्थापना कराई थी। आलम यह है कि इस मकबरे के आठ बुर्जो पर अतिक्रमणकारियों का कब्जा है।

सरधना चर्च- एएसआई संरक्षित ऐतिहासिक सरधना चर्च में वर्जिन मैरी की प्रतिमा की स्थापना ब्रिटिश पीरिएड में की गई थी। इस चर्च का निर्माण 1778 में सरधना एस्टेट की नबाव बेगम समरू ने कराया था।

नबाव खैरंदेश का मकबरा-खैरनगर स्थित नबाव खैरंदेश के मकबरे के आसपास अतिक्रमणकारी जमे हुए हैं।

नबाव शम्सुद्दीन का मकबरा-ऐतिहासिक इमारत के आसपास अतिक्रमणकारी काबिज हैं।

शाही ईदगाह-1194 में स्थापित इस ऐतिहासिक ईदगाह का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने कराया था।

सूरजकुंड-मराठा काल से चर्चा में आए सूरजकुंड का जिक्र बुद्ध के समय भी था। इतिहासकारों का मानना है कि यहां बुद्ध की आदमकद प्रतिमा निकली थी, कहां गई किसी को नहीं मालूम?

औघड़नाथ मंदिर-प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (1857) का बिगुल यहीं से फुंका था।

सेंट जॉन्स चर्च, सेंट जॉन्स सेमेट्री आदि।

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यहां हैं सभ्यता के निशां

ब्रिटिश से पहले मेरठ पर मराठा का शासन था। दिल्ली के नजदीक शहर में मुगल और ब्रिटिश शिकार खेलने, नौकायन करने और मनोरंजन करने आते थे। मराठा और उसके बाद प्राचीन रिहायशी इलाकों में सैकड़ों ऐसी इमारतें बनवाई गई तो तत्कालीन वास्तुकला का खास नमूना पेश करती हैं। 18वीं और 18वीं सदी की सैकडों इमारतें रखरखाव के अभाव में ध्वस्त हो रही हैं। सदर, खैरनगर, कागजी बाजार, शुक्लों का चौक, खंदक बाजार, बुढ़ाना गेट, स्वामीपाड़ा, कसाईपाड़ा, ढढेरपाड़ा आदि इलाकों में सैकड़ों इमारतें मौजूद हैं।

रामायण काल से मेरठ का देश के इतिहास में दखल है। सिंधु सभ्यता की ईस्ट बाउंड्री में मेरठ है तो यहां से कई सभ्यताओं का जन्म हुआ है। ऐतिहासिक महत्व की क्रांतिधरा के इतिहास की रंगत नजरअंदाजी से फीकी पड़ रही है। धरोहर का संरक्षण आवश्यक है।

-डॉ। मनोज गौतम, संग्रहालयाध्यक्ष, स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय

Posted By: Inextlive