LUCKNOW: कहते हैं अगर किसी परिवार को साक्षर बनाना है तो उस परिवार की बेटी का साक्षर बनाना होगा। अगर परिवार की एक बेटी पढ़ गई तो उसका पूरा परिवार पढ़ जाता है। इसी की एक बेमिशाल उदाहरण हमारे शहर लखनऊ में एक मजदूरी करने की वाले तेज बहादुर वर्मा की क्फ् वर्षीय बेटी सुषमा मिश्रा की जिसने इतनी छोटी उम्र में वह ऊंचाइयां हासिल कर ली, जिसे पाने के लिए एक साधारण छात्र को सालों तक मेहनत करनी पड़ती हैं।

छोटी उम्र में बीएससी किया था पास

गुड्डे-गुडि़यों से खेलने वाली उम्र में सुषमा वर्मा की हमसाया मोटी-मोटी किताबें हैं। जिस उम्र में बच्चे सातवीं, आठवीं क्लास में पढ़ाई कर शिक्षा की शुरुआती सीढि़यां चढ़ रहे होते हैं, उस उम्र में सुषमा शैक्षिक सोपान के अंतिम छोर की तरफ बढ़ रही है। वह मौजूदा समय में बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर यूनिवर्सिटी से माइक्रोबायलॉजी से मास्टर ऑफ साइंस कर रही हैं।

दाखिला कराना आसान नहीं था

क्फ् वर्ष की उम्र में ही सुषमा ने लखनऊ यूनिर्वसिटी के इतिहास में सबसे कम उम्र में जूलॉजी और बायोलॉजी विषयों के साथ बैचलर ऑफ साइंस बीएससी की परीक्षा में म्म् प्रतिशत नंबरों के साथ पास किया था। सुषमा का बड़ा भाई शैलेंद्र वर्मा ने भी महज साढ़े नौ वर्ष की उम्र में ख्00भ् में हाईस्कूल की परीक्षा पास कर ली थी। भाई के नक्शे कदम पर चलते हुए सुषमा ने पांच साल की उम्र तक आते-आते हाईस्कूल की किताबें पढ़कर उसे समझने लगी थीं। पांच साल की उम्र में उसकी कक्षा नौ के पाठ्यक्रम पर अच्छी पकड़ हो गई थी इसीलिए ख्00भ् में उसका एडमिशन सीधे कक्षा नौ में कराया गया। पांच साल में सीधे कक्षा नौ में दाखिला कराना आसान नहीं था।

ख्0क्0 में किया पास किया इंटरमीडिएट एग्जाम

सुषमा के पिता तेज बहादुर का कहना है कि इंटरमीडिएट में एडमिशन के लिए माध्यमिक शिक्षा परिषद से अनुमति लेनी पड़ी थी। जुलाई ख्00भ् में सीधे नवीं कक्षा में प्रवेश लेने के बाद सुषमा ने यहां से ख्007 में सात साल की उम्र में यूपी बोर्ड की हाई स्कूल परीक्षा भ्9.म् फीसदी नंबरों के साथ पास की और इसके दो साल बाद ख्0क्0 में इंटरमीडियट परीक्षा में म्फ् फीसदी नंबर लाए। तेज बहादुर ने बताया कि ख्00भ् में जब सुषमा को हाईस्कूल में एडमिशन लेने गई तो स्कूल प्रशासन यह कहकर मना कर दिया था इस उम्र में बच्चे नर्सरी में एडमिशन लेते हैं। इसके एडमिशन के लिए यूपी बोर्ड से विशेष तौर पर अनुमति लेनी पड़ी थी।

विदेशों से मदद के लिए आए लोग

बेहद गरीब परिवार से संबंध रखने वाली सुषमा का नाम एमएससी माइक्रोबायोलॉजी में दाखिले की कट ऑफ सूची में आने के बाद एडमिशन फीस भरने में अड़चने आईं। लेकिन होनहार सुषमा की मदद के लिए कई हाथ आगे बढ़े। गीतकार जावेद अख्तर और अमेरिका में माइक्रोसॉफ्ट में कार्यरत अनिवासी भारतीय रफ त सरोस ने सुषमा की पढ़ाई में आने वाले खर्च में मदद का भरोसा दिया था। इसके अलावा सुलभ इंटनेशनल के प्रमुख बिंदेश्वरी पाठक ने भी सुषमा की पढ़ाई में मदद के लिए पांच लाख रुपये दिए थे। सुषमा कहती है कि माइक्रोबायलॉजी के बाद पीएचडी करना चाहती हूं और क्8 साल की होने पर सीपीएमटी की परीक्षा दूंगी। घर की हालत देखते हुए अभी तक यह सब बहुत मुश्किल लग रहा था। लेकिन लोगों की मदद से उम्मीद जगी है कि मैं अपना मुकाम हासिल कर लूंगी।

Posted By: Inextlive