आज कपूर फैमिली डे है लगता है एक ही परिवार की दो दो फिल्में देखने को मिलींपर ये फिल्‍म ऐसी थी जिसका मुझे एक्चुअली इंतेज़ार था लंबा इंतेज़ार किया मैंने इस फिल्‍म का इनफैक्ट जितना इंतज़ार जग्गा जूसस का किया उससे ज़्यादा इसका किया है। क्यों? क्योंकि विक्रमादित्य मोटवानी मेरे फेवरेट निर्देशक हैं। और मैं वाकई देखना चाहता था कि ये इंडियन विजिलांटि सुपरहीरो की ये डार्क कहानी सिनेमापटल पर कैसी लगती है अब जो देख ली है ये फिल्‍म तो बस दिल से यही आवाज़ निकल रही है हुज़ूर आते आते बहुत देर करदी।

कहानी:

भ्रष्ट सिस्टम से लड़ने के लिये 3 दोस्तों की तिकड़ी हाथ आगे बढ़ाती है और जन्म होता है भावेश जोशी सुपरहीरो का।

 

समीक्षा :

जब भी मैं इहेईईई जगत की सुपर हीरो फिल्में देखता हूँ तो सोचता था थैंक गॉड ये सब सुपरहीरो विलायत में ही होते हैं, यहां होते तो बेचारे करते क्या ये लोग, बैटमैन की बैटमोबीएल को यहां का पाण्डु रोक लेता और बेचारे बैटमैन को भी रिश्वत देनी पड़ती अपनी चमचमाती बैटमोबाइल को थाने में जंग खाने से बचाने के लिए। जिस देश में भुखमरी और गरीबी बड़ी समस्या है, वहाँ नेशनल हीरो की ज़रूरत है, न कि सुपरहीरो की, इसे अंग्रेज़ी में नीडगैप कह सकते हैं। विक्रमादित्य ने इस बात का खयाल रखा कि उनका सुपरहीरो , सुपरफिशल न बन के रह जाये जो किसी हद तक फिल्म में दिखता भी है, ये सुपरहीरो ह्यूमन है, सुपर ह्यूमन नही है। बहुत अच्छे, यहां तक तो ठीक हुआ, पर जब फिल्म आगे बढ़ने लगी तो मुझे ये कांसेप्ट, हिंदी मसाला फिल्मी हीरो जैसा लगने लगा, बस इतना फर्क था कि इसके पास एक मास्क था, वरना 'गब्बर' और 'उंगली' और इस फिल्म में क्या फर्क रह गया।

 

क्या आया पसंद :

सिनेमाटोग्राफी बहुत अच्छी है, फिल्म का म्यूजिकल स्कोर भी अच्छा है, फिल्म की ओवरआल लुक एंड फील भी काफी अलग है और फिल्म के फेवर में ही काम करती है। ये विक्रमादित्य मोटवानी का विज़न ही है कि ये फिल्म फ्लाइंग जट जैसी फ्लैट नहीं लगती।

 

क्या नहीं आया पसंद:

फिल्म का सेकंड हाफ बहुत ही खराब लिखा हुआ है और फिल्म की पूरी पेस का सत्यानाश कर देता है, फिल्म में कोई आउट ऑफ द रेगुलर कनफ्लिक्ट नाही है, और फिल्म के किरदार ठीक से लिखे नही गए, खासकर खलनायक न तो मोगाम्बो है और न ही शाकाल, वो एक रेगुलर हिंदी फिल्मी विलेन है। यही फिल्म का सबसे बड़ा माइनस पॉइंट है, बिना विलन के हीरो नहीं होता, ऐसा जोकर ने डार्क नाईट में कहा था। फिल्म की एक्शन कोरियोग्राफी भी साधारण है, फिल्म की एडिट भी लचर है।

 

रेटिंग : 2.5 STAR

 

एक्टिंग :

हर्षवर्धन कपूर में रोल को कैरी करने की तैयारी नहीं थी, कहीं कहीं पे तो वो तीनों विजिलांटि से सबसे वीक एक्ट करते हैं। पोकर फेस लेकर पूरी फिल्म निकल जाती है और जहां नहीं है वहां मास्क है, डायरेक्टर की चतुराई से भला होता है। प्रियांशु इस फिल्म का सबसे मजबूत कंधा हैं, टैलेंटेड हैं और उनको मैं कुछ और अच्छे रोल्स में देखना चाहूंगा। आशीष वर्मा और निशिकांत कामत का काम अच्छा है।

 

ये एक बेहद साधारण फिल्म है, और विक्रमादित्य की फिल्मों में अब तक की सबसे वीक फिल्म है, फिर भी अगर इस हफ्ते फिल्म देखने का मूड बने तो एक बार इसे देखा जा सकता है, अगर राजी आपने आलरेडी देख रखी हो तो।

Review by:

Yohaann Bhaargava
Twitter : yohaannn

Posted By: Chandramohan Mishra