Bhishma Dwadashi 2020 : भीष्म द्वादशी माघ महीने के 12वें दिन मनाई जाती है। इस दौरान माघ मास शुक्ल पक्ष होता है। मालूम हो इसे मघा शुक्ला द्वादशी के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि इसी दिन महाभारत काल में पांडवों ने भीष्म पितामह का अंतिम संस्करा किया था।


Bhishma Dwadashi 2020 : द्वादशी के दिन कई सारे श्रद्धालु इच्छानुसार व्रत रखते हैं। इस दिन भीष्म पंचक व्रत की समाप्ति भी होती है भीष्म पंचक व्रत को व्रती भीष्म अष्टमी से रखना शुरु करते हैं। बता दें भीष्म अष्टमी के दिन से 5 दिन तक व्रत रखा जाता है और पांचवे दिन यानी की भीष्म द्वादशी के दिन उसका पारण किया जाता है।भीष्म द्वादशी का महत्व
इसके अलावा जो लोग एकादशी से हर दिन व्रत रख रहे हैं वो श्रद्धालु भी भीष्म द्वादशी व्रत का पारण कर सकते हैं। इस दिन लोग भगवान विष्णु की विधि- विधान से पूजा करते हैं। भीष्म द्वादशी पर व्रत रखना एक विशेष महत्व रखता है। इसे करने से जीवन में खुशहाली बनी रहती है और पापों से छुटकारा मिलता है। इस दिन दान- दक्षिणा करना व विष्णु पूजन करने को विशेष महत्व दिया गया है। पूजन के समय 'ओम नमो नारायणाय नम :' मंत्र का जाप करना लाभदाई हो सकता है। यह मंत्र व्यक्ति को सभी पापों से छुटकारा भी दिलाता है।पौराणिक कथा


लोगों की मान्यता अनुसार भीष्म द्वादशी की एक पौराणिक कथा है। अपनी संस्कृति डाॅट काॅम के मुताबिक शान्तनु की पत्नी गंगा ने एक बेटे को जन्म दिया जिसका नाम देवव्रत था। गंगा ने बच्चे को जन्म देने के बाद शान्तनु को छोड़ दिया। इसकी वजह से शान्तनु चिंतित रहने लगे। एक बार शान्तनु ने गंगा नदी को पार करने के लिए नाव पर सवारी की, ये नाव सत्यवती की थी। शान्तनु उसकी खूबसूरती देख कर उनके दीवाने हो गए फिर उन्होंने सत्यवती से विवाह करने की इच्छा जताई। सत्यवती के पिता इस विवाह के लिए एक शर्त पर माने कि सत्यवती का जो पुत्र होगा वो ही शान्तनु के साम्राज्य का उत्तराधिकारी माना जाएगा। शान्तनु ने ये शर्त मान कर सत्यवती से विवाह कर लिया। इस वजह से पत्नी गंगा से हुए उनके पुत्र देवव्रत ने जीवनभर विवाह न करने की शपथ ले ली। पुत्र का ये त्याग देख कर शान्तनु ने देवव्रत को ये वरदान दिया कि वो जब मृत्यु चाहेंगे तभी वो दुनिया छोड़ सकेंगे अन्यथा ऐसा किसी और के चाहने से नहीं होगा। देवव्रत को ही महाभारत काल में भीष्म पितामह के नाम से जाना गया। महाभारत के युद्ध में पितामह कौरवों की तरफ थे। इस वजह से कौरव ये युद्ध जीतने लगे थे। फिर भगवान श्रीकृष्ण ने सिखंडी को पितामह के विपक्ष में होने के लिए राजी किया। पितामह उससे युद्ध नहीं कर सकते थे और इस वजह से उन्होंने सूर्य के उत्तरायण होने पर इच्छा मृत्यु को चुना। उस दिन माघ मास की अष्टमी थी और तभी से इस दिन को भीष्म अष्टमी के नाम से जाना जाने लगा। वहीं महाभारत काल में द्वादशी के दिन उनकी पूजा की गई। इस वजह से लोग इस दिन को भीष्म द्वादशी के नाम से जानने लगे।कैसे करें पूजाइस दिन श्रद्धालुओं को स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। उन्हें फल, केले की पत्तियों, सुपारी, सुपारी की पत्तियों, तिल, मोली, रोली और कुमकुम चढ़ाना चाहिए। प्रसाद के लिए पंचामृत बनाना चाहिए जिसमें दूध, शहद, केला, गंगा जल, तुलसी का होना अनिवार्य है। इसके अलावा अपनी पसंद की कोई मिठाई व पंजीरी भी चढ़ा सकते हैं। विष्णु पूजा के बाद दूसरे देवी- देवताओं की भी पूजा करनी चाहिए। तत्पश्चात पंचामृत और प्रसाद सभी में बांट दें।

Posted By: Vandana Sharma