मराठी बनाम उत्तर भारतीय मुद्दे ने एक समय में राजनीति में बड़ी हलचल मचाई थी। देश में कई तरह के विवाद हुए थे। हंगामे हुए थे। लेकिन अबतक सिनेमा में सिर्फ इस विषय पर केंद्र कर फिल्म बनाने की कुब्बत किसी ने नहीं दिखाई थी। यह काम मनोज बाजपयी ने अपने होम प्रोडक्शन में कर दिखाया है। आपने हाल में अगर मलाल देखी होगी तो इस विषय पर सरसरी निगाह दौड़ाई गई थी। लेकिन इस बार भोंसले में इसे विस्तार से और बहुत ही सटीक तरीके से दिखाया गया है। भोंसले की खूबी है कि यह न सिर्फ रियलिस्टिक है बल्कि अपने किरदारों को भी बिना ताम-झाम के और बिना भाषण के एक जरूरी मुद्दे को दिखा दिया गया है। पढ़ें पूरा रिव्यू...


फ़िल्म : भोंसलेनिर्माता : मनोज बाजपेयी, संदीप कपूरनिर्देशक : देबाशीष मखीजाकलाकार : मनोज बाजपेयी, संतोष जुवेकर, विराट वैभव, इप्शिता, अभिषेक बनर्जीरेटिंग : तीनओटी टी : सोनी लिव


क्या है कहानी : फिल्म की कहानी प्रवासी और स्थानीय लोगों के बीच पनपते प्रेम और घृणा की कहानी है। कहानी गणेश चतुर्थी से शुरू होती है, जो कि महाराष्ट्र का सबसे बड़ा त्यौहार है और खत्म भी इसके विसर्जन पर होती है। मसलन 11 दिन की फिल्म है। भोंसले (मनोज बाजपयी) पुलिस में हैं और उनकी नौकरी के आखिरी दिन बचे हैं। वह अपने में रहने वाला आदमी है। दुनियादारी से उसका कुछ लेना देना नहीं है। वह अपनी निराश जिन्दगी में ही खुश हैं। वहीं उसके चौल में एक ड्राईवर रहता है, जिसका नाम विलास (संतोष) है, उसको दुनिया में कुछ बड़ा करना है। इसलिए वह बिहारियों के खिलाफ सबको भड़का रहा है। बिहार मूल निवासी सीता (इप्शिता) वहीं रहती है और उसका भाई लालू (वैभव) भी वहां रहता है। भोंसले से वह अचानक एक रिश्ते से जुड़ जाते हैं। ऐसी परिस्थितियां आती हैं कि सीता को एक बार फिर से अग्नि परीक्षा देना पड़ता है। क्या ऐसे में भोंसले कुछ कदम उठाता है या मूक बना रहता है, यही इस फिल्म का टर्निंग पॉइंट है।क्या है अच्छा : फिल्म का क्लाइमेक्स शानदार और अनिश्चित है, वहीं आपको चौंकाता है और हैरत में डालता है। यह एक साइलेंट हीरो की शानदार कहानी है। किसी को अगर हीरो बनना है और कुछ करना है तो वह किस तरह शांत होकर भी कर जाता है, यह देखना फिल्म में दिलचस्प है।क्या है कमी : फिल्म जरूरत से ज्यादा धीमी रफ्तार से बढ़ती है। फिल्म की अवधि कम की जा सकती थी। भोंसले की दुनिया और दिनचर्या दिखाने में बेवजह के 25 मिनट बर्बाद कर दिए गये हैं। फिल्म शोर्ट फिल्म के रूप में अधिक प्रभावशाली बनती। इसके साथ ही एक बड़ी शिकायत यह है कि फिल्म में लगातार केवल एंटी बिहारी स्लोगन दिखाए गये हैं। उत्तर प्रदेश का नाम न लेकर भैया कह कर संबोधित किया गया है। स्पष्ट दिख रहा है कि यह किसी विवाद से बचने के लिए किया गया है। चूंकि प्रवासी सिर्फ बिहार से नहीं हैं। उत्तर प्रदेश से भरी संख्या में लोग यहां हैं।अदाकारी

मनोज बाजपयी के कंधे पर यह फिल्म है। हमेशा की तरह इस फिल्म में भी उन्होंने बेहतरीन अदाकारी की है। उन्होंने कम संवाद कह कर अपने एक्सप्रेशन से कमाल किया है। वह पीड़ा दिखाने में, एकांत जीवन की पीड़ा दिखाने में भी सफल रहे हैं। संतोष ने भी अच्छा काम किया है। इप्शिता ने अच्छा किरदार पकड़ा है। फिल्म के कलाकारों ने बॉडी लैंग्वेज को बखूबी पकड़ा है। विराट वैभव का काम भी काफी अच्छा है।वर्डिक्ट : एक बार फिल्म के विषय की वजह से फिल्म जरूर देखनी चाहिए।फिल्म समीक्षक : अनु वर्मा

Posted By: Satyendra Kumar Singh