- राष्ट्रीय सांप्रदायिक सद्भाव प्रतिष्ठान के 'अंतर धर्म संवाद' में बोले वक्ता

- कहा भारत की धार्मिक व सांस्कृतिक विविधता ही इसकी सबसे बड़ी ताकत

VARANASI

समाज में प्रेम, भाईचारा, सहयोग व समन्वय की भावना को मजबूती देने के लिए सामाजिक विज्ञान संकाय-बीएचयू स्थित हॉल में शुक्रवार को 'अंतर धर्म संवाद' कार्यक्रम आयोजित हुआ। राष्ट्रीय सांप्रदायिक सद्भाव प्रतिष्ठान के सहयोग व सामाजिक बहिष्करण एवं समावेशी नीति अध्ययन केंद्र की ओर आयोजित कार्यक्रम में धर्मगुरुओं ने साझा सांस्कृतिक विरासत व आपसी संवाद पर जोर दिया।

बतौर चीफ गेस्ट राष्ट्रीय सांप्रदायिक सद्भाव प्रतिष्ठान के सचिव मनोज पंत ने कहा कि भारत की सबसे बड़ी ताकत इसकी धार्मिक विविधता है। इस दौरान उन्होंने 1992 में स्थापित प्रतिष्ठान के अब तक कार्यो का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया। राजगुरु मठ काशी के पीठाधीश्वर दंडी स्वामी अनंतानंद सरस्वती ने हिंदू संस्कृति, इतिहास, धार्मिक ग्रंथों व देवी-देवताओं पर चर्चा की। मुफ्ती ए बनारस मौलाना अब्दुल बातिन नोमानी ने कहा कि जो दूसरों के मजहब का सम्मान नहीं करता और दूसरों को दुख देता है, वह मुसलमान नहीं हो सकता। गुरुद्वारा नीचीबाग के मुख्य ग्रंथी भाई धरमवीर सिंह ने सिख धर्म के सार तत्व को सामने रखा। प्रो। अशोक कुमार जैन ने कहा कि जैन धर्म समस्त जीव मात्र के कल्याण, अहिंसा और सदाचार पर बल देने वाला धर्म, जिसमें किसी तरह की हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है। फादर चंद्रकांत ने ईसाई धर्म को अन्य धर्मो के उपदेशों से अलग न मानते हुए कहा कि कुछ परंपराओं, रीति-रिवाजों एवं संस्कृतियों के कारण धर्मो में विभिन्नताएं होती हैं। वहीं बौद्ध धर्म के प्रतिनिधि के रूप में भिक्खु चंदिमा ने कहा कि धम्म वास्तव में लोक कल्याण व परहित चिंतन का विचार है, जो मानव में कोई भेद नहीं करता। अध्यक्षता सामाजिक विज्ञान संकायाध्यक्ष प्रो। आरपी पाठक, स्वागत आयोजन सचिव डा। अमरनाथ पासवान व धन्यवाद ज्ञापन डा। एसडी शर्मा ने किया। इस अवसर पर प्रो। टीपी सिंह, प्रतिष्ठान के सहायक सचिव सौरभ दुबे, प्रो। जेबी कोमरैया, डा। अभिनव शर्मा, प्रो। ओमप्रकाश भारती आदि थे।

Posted By: Inextlive