स्वामी करपात्री प्राकट्योत्सव में विशिष्टजनों का किया गया सम्मान

VARANASI

संस्कृति की रक्षा करनी है तो गौ, गंगा

तथा संस्कृत की रक्षा करनी होगी। करपात्री जी सदैव इन तीनों के

लिए मुखर रहे। यह विचार अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महन्त नरेन्द्र गिरी ने सोमवार को दुर्गाकुण्ड स्थित धर्मसंघ में आयोजित 111 वें करपात्र प्राकट्योत्सव में व्यक्त किये। दस दिवसीय प्राकट्योत्सव के नवें दिन प्राकट्य दिवस पर उन्होंने कहा कि गौसेवा से बड़ा कोई धर्म नही, यही हमारी संस्कृति है। अध्यक्षता करते हुए धर्मसंघ पीठाधीश्वर शंकरदेव चैतन्य ब्रम्हचारी ने कहा कि धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी सनातन धर्म के हस्ताक्षर थे। विशिष्ट अतिथि महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के वीसी प्रो। टीएन सिंह ने कहा कि धर्मसंघ स्वामी

करपात्री जी के आदर्शो पर चल रहा है। विशिष्ट अतिथि सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के वीसी प्रो। राजाराम शुक्ल ने कहा कि धर्म सम्राट द्वारा दिया गया नारा अपने आप में सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याण को इंगित करता है। इससे पूर्व काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रो। शिवदत्त शर्मा चतुर्वेदी को अतिविशिष्ट करपात्र रत्‍‌न सम्मान से अंलकृत किया गया। एक अन्य विद्वान डॉ। रजनीश शुक्ल को करपात्र गौरव सम्मान से नवाजा गया। प्राकट्योत्सव के अवसर पर समाज के विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट सेवा करने वालों को करपात्र मणि सम्मान से नवाजा गया। प्राकट्योत्सव में मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री नारायण

व्यास, चन्द्रमा पाण्डेय, धनंजय पाण्डेय, उपेन्द्र त्रिपाठी, रामपूजन

पाण्डेय रामरक्षा त्रिपाठी, दयानिधि मिश्र, गायत्री प्रसाद पाण्डेय आदि

विद्वतजन विशिष्ट रूप से उपस्थित रहे। संचालन प्रो। उपेन्द्र पाण्डेय एवं धन्यवाद ज्ञापन राजमंगल पाण्डेय ने दिया।

Posted By: Inextlive