युनेस्को शांति व अंतर संास्कृतिक सहमति चेयर की ओर से कार्यक्रम में बोले प्रो आनंद कुमार

VARANASI

21वीं सदी में अहिंसक आंदोलनों के वैचारिक एवं व्यवहारगत पक्षों में जमीनी परिवर्तन आया है। ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में हमें समझना होगा कैसे नागरिकों को ज्यादा स्वंतत्रता व अधिकारिता दे सकते हैं।

यह बातें बुधवार को समाजशास्त्री प्रो। आनंद कुमार ने बीएचयू में कही। वह युनेस्को शांति व अंतर संास्कृतिक सहमति चेयर की ओर से हुए स्पेशल लेक्चर में बोल रहे रहे थे। उन्होंने कहा कि जिस तरह का समावेशी एवं बहुसांस्कृतिक विभिन्नताओं से भरा हुआ संवैधानिक तंत्र हमें हमारे पूर्वजों द्वारा प्राप्त हुआ है, वह आज के समय में अकल्पनीय है। अहिंसा के लिए एक नई समाजभाषा, नई अभियांत्रिकी और नया व्याकरण गढ़ना होगा। जो हमारे वैचारिक पूर्वजों के चिंतनलोक के नजदीक हो। महिला-पर्यावरण-छात्र-मजदूर-आदिवासी-दलित आंदोलनों को अहिंसा का नया लोक रचना होगा जिसमें नैतिक जनतंत्र का नया वैश्रि्वक भूगोल विकसित हो सके। वक्ता का परिचय प्रो। अंजू शरण उपाध्याय ने और अतिथियों का स्वागत एवं विषय प्रवर्तन केंद्र समन्वयक प्रो। प्रियंकर उपाध्याय ने किया। धन्यवाद संकाय प्रमुख प्रो। आर। पी। पाठक ने किया। कार्यक्त्रम में बड़ी संख्या में शिक्षक, छात्र एवं शोधकर्ता मौजूद थे। संचालन रीना लाहा ने किया।

Posted By: Inextlive