लेखपाल कैंडीडेट्स के साथ सबसे बड़ा धोखा
- जिले में लेखपाल नियुक्ति के लिए बिके 20-25 हजार फॉर्म
- 60 फीसदी स्टूडेंट्स खरीद चुके हैं सरकारी लोगो लगी किताबें- प्रशासन की सख्ती के बाद मार्केट से हटाई गईं किताबें Meerut : लेखपाल की नियुक्ति के एग्जाम की तैयारी करने वाले अगर अभी भी नहीं चेते हैं तो संभल जाइए। जी हां, आपके साथ सबसे बड़ा धोखा हुआ है। जिस सरकारी लोगो लगी किताब को पढ़कर जो आप तैयारी कर रहे हैं वो निजी प्रकाशक की किताब है। उस किताब को पढ़कर या तैयारी कर कोई फायदा नहीं होने वाला है। अगर कोई आपसे इस बात को कह रहा है, तो आपके साथ धोखा कर रहा है। वहीं प्रशासन और शिक्षा विभाग की चाबुक चलने के बाद पब्लिशर्स ने मार्केट से अपनी उन किताबों को उठवाना भी शुरू कर दिया है। हरकत में आया पब्लिशरकमिश्नर के लेटर और डीआईओएस के नोटिस के बाद पब्लिशर ने अपनी किताबों को मार्केट से वापस लेने का काम कर दिया है। शॉपकीपर्स की मानें तो उनके पास पब्लिशर्स के फोन आ रहे हैं और उन्होंने किताबें वापस लेने की बात कही है। कारण अभी कुछ नहीं बताया है, लेकिन इतना जरूर कहा कि कुछ तकनीकि खामियों की वजह से किताबों का स्टॉक वापस लेने की बात कही है। तो बात साफ है कि प्रशासन के डंडे और डीआईओएस ऑफिस के नोटिस का काफी गहरा असर पड़ा है।
नहीं है कोई मॉनिटरिंग डिपार्टमेंटजानकारों की मानें तो पब्लिशर क्या प्रकाशित कर रहे हैं? किस तरह से प्रकाशित कर रहे हैं? इस बात को देखने के लिए कोई मॉनिटरिंग डिपार्टमेंट नहीं है। जबकि अब पब्लिशर्स के नाक में नकेल कसने के लिए ऐसे डिपार्टमेंट की जरुरत महसूस की जा रही है। क्योंकि आज भी एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो हिंदी और इंग्लिश की किताबों का पाठक है। वहीं स्टूडेंट्स तो हर रोज लाखों रुपए कि कॉम्पटीटिव बुक्स खरीद लेते हैं। 25 हजार बिक चुके हैं फॉर्मलेखपाल नियुक्ति से संबंधित फॉर्म बिक्री की बात करें तो ये आंकड़ा करीब 25 हजार तक पहुंच चुका है। दुकानदारों की अब भी लेखपाल का फॉर्म भरने के लिए लगातार कैंडीडेट्स आ रहे हैं। ये आंकड़ा और भी आगे पहुंच सकता है। ये बात तो सिर्फ मेरठ जिले की है। अगर बात वेस्ट यूपी के अन्य जिलों की भी करें तो ये आंकड़ा लाख से ऊपर पहुंच गया होगा। 60 फीसदी से अधिक ने किताबजब आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने 10 किताबों की दुकानों में सर्वे किया तो चौंकाने वाली बात सामने आई। लेखपाल का फॉर्म भरने वालों में 60 फीसदी से बच्चों ने विद्या प्रकाशक की सरकारी लोगो की किताबों को खरीदा है। एक शॉपकीपर ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि स्टूडेंट्स मांग कर किताबें लेकर जा रहे हैं। जबकि इसका कंटेंट कभी भी इतना अच्छा नहीं रहा है। सिर्फ सरकारी लोगो लगा होने के कारण ही इस बुक की बिक्री हो रही है। इसी जिले में ही नहीं यूपी के अन्य जिलों में भी इस बुक की डिमांड बढ़ी है।
लोगो का इस्तेमाल गैरकानूनी है ये तो पूरी तरह से गलत और गैरकानूनी है। बच्चों और मार्केट में भ्रम फैल जाएगा। इससे कैंडीडेट्स यही समझेंगे कि ये एक सरकारी किताब है।- विकास गर्ग, ऑनर, गर्ग बुक डिपो किसी भी प्राइवेट पब्लिशर्स द्वारा स्टेट गवर्नमेंट के लोगो का इस्तेमाल करना काफी गलत है। अगर बात बिक्री पर प्रभाव की करें तो कंटेंट मजबूत होना चाहिए। लोगो से कोई फर्क नहीं पड़ता।- कर्मवीर सिंह, ऑनर, वीर ब्रदर्स बुक डिपो वैसे विद्या प्रकाशन की किताबें नहीं रखते हैं। लेकिन प्रकाशक की किताब में इस तरह लोगो लगा हुआ तो गैरकानूनी हरकत है।- विवेक, ऑनर, विवेक बुक सेलर्स
ये तो कैंडीडेट्स के साथ धोखा है मैंने यही किताब खरीदी है। मैंने ये किताब इसी वजह से खरीदी थी कि ये एक सरकारी किताब है। मेरे साथ तो बड़ा खोखा हुआ है।- कुलदीप तालियान जब मैं किताब की दुकान में गया तो लेखपाल की इस किताब को दिखाकर दुकान के सेल्समेन ने बताया कि ये किताब लो इस पर सरकारी लोगो भी लगा है। इसलिए मैंने ये किताब ले ली।- करन कुमार कुछ दिन पहले मैंने अपने दोस्त के हाथ में ये किताब देखी थी तो उसी ने मुझे ये किताब सजेस्ट की। हमें तो पता ही नहीं था कि सरकारी लोगो के नाम पर इतना बड़ा फ्रॉड है।- संजय कुमार प्रकाशन कंपनी के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो जाना चाहिए। बच्चों के साथ ये बहुत बड़ा धोखा है। मैंने और मेरे कई दोस्तों ने इसी लोगो को देखकर किताब खरीदी थी।- टीकम कुमार सरकारी लोगो का इस्तेमाल बच्चों को गुमराह करने और अपनी जेबें भरने के लिए हुआ है। इस पर प्रशासन को ही नहीं बल्कि सरकार को भी सख्त एक्शन लेना चाहिए।- अरुण कुमारये तो हम जैसे कैंडीडेट्स के साथ धोखा हुआ है। इस बारे में शासन और प्रशासन को सख्त से सख्त एक्शन लेना चाहिए।
- अंकुर कुशवाहा