-बीजेपी के लिए आत्ममंथन का समय, जेडीयू भी लेगी सबक

PATNA : दर्द दिलों के कम हो जाते मैं और तुम हम हो जाते। कितने हंसी आलम हो जातेमैं और तुम हम हो जाते.तेरे बिना ना आए सुकून न आए करार। दूर वो सारे भरम हो जाते मैं और तुम गर हम हो जाते ये गाना पहले भी आई नेक्स्ट ने अपनी रिपोर्ट में आपको सुनाया था। एक बार फिर सुना रहा हूं। गाना सही साबित हुआ क्0 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में। बीजेपी का भरम भी दूर हुआ और आरजेडी सहित जेडीयू के एक खेमे का भरम भी। अब नीतीश कुमार खुश हैं और आरजेडी भी। काग्रेस को भी फायदा हो गया। लेकिन इस रिजल्ट के कई और मायने भी हैं। बीजेपी के लिए सीख का समय है। संभलने का समय। आगे ये सीख काम आएगी।

भागलपुर ने भद पिटवायी

भागलपुर में अश्विनी चौबे और शहनवाज हुसैन के बीच का टकराव छोटा टकराव नहीं है। ये टकराव दोनों ओर से समर्थकों में भी पसरा हुआ है। कैसा भीतरघात अपने लोगों ने ही किया? किया भी या नहीं? ये आत्ममंथन तो सबसे ज्यादा और सही-सही बीजेपी खुद ही कर सकती है। पार्लियामेंट के इलेक्शन में ही ये टकराव दिखा था। अश्विनी चौबे भागलपुर से टिकट चाहते थे। वे चाहते थे कि बाहरी को यहां से टिकट ना मिले। लेकिन आखिरकार शहनवाज हुसैन को भागलपुर से टिकट मिला और वे आरजेडी के बुलो मंडल से मात खा गए। अश्विनी चौबे बक्सर में जाकर लोकसभा इलेक्शन लड़े और जीत भी गए। लेकिन शहनवाज हुसैन भागलपुर से नरेन्द्र मोदी लहर में भी हार गए थे। विधानसभा उपचुनाव में बीजेपी के नभय कुमार चौधरी को कांग्रेस के अजीत शर्मा ने हरा दिया। नभय कुमार चौधरी को अश्विनी चौबे का खास माना जाता है। तो क्या भागलपुर में बदले की राजनीति ने बीजेपी की नैया डुबो दी? ये छोटी बात नहीं कि जहां से अश्विनी चौबे पांच बार से इलेक्शन जीतते रहे थे। लोग ये भी सवाल कर रहे हैं कि अश्विनी चौबे को बक्सर भेजना महंगा साबित तो नहीं साबित हुआ?

अगड़ी जाति पर किसका कब्जा

लोकसभा इलेक्शन में अगड़ों का वोट बीजेपी को जम कर पड़ा था। अतिपिछडो़ं ने भी खूब वोट किया था। विधानसभा उपचुनाव में महागठबंधन से अगड़ी जाति के कई कंडीडेट जीते। इससे ये मैसेज गया कि अगड़ी जाति के वोट बैंक पर बीजेपी का ही कब्जा नहीं है। लेकिन ये भी हुआ कि छपरा में इंडीपेंडेंट कंडीडेट डॉ। सी। एन। गुप्ता ने बता दिया कि आरजेडी के बाद दूसरे नंबर पर वही हैं। बीजेपी नहीं। ये और बात है कि प्रभुनाथ सिंह के बेटे रंधीर कुमार सिंह ने वहां से इलेक्शन जीता।

सीख जेडीयू के लिए भी

नीतीश कुमार ने कहा कि बेहतर तरीके से तालमेल करते तो नतीजे और अच्छे आते। बड़ी बात ये कि हाजीपुर जैसी सीट पर अगर बीजेपी की जीत हुई तो इसका बड़ा कारण टिकट बंटवारे में गड़बड़ी भी है। पार्टी ने देवकुमार चौरसिया को टिकट दिया होता तो ख्क् हजार वोट प्लस हुआ होता और फिर बीजेपी के अवधेश ंिसंह की जीत आसान नहीं रह पाती। बांका में भी कांटे की टक्कर हुई। महज 7क्क् वोट से बीजेप के रामनारायण मंडल इलेक्शन जीत पाए। आरजेडी के इकबाल हसन अंसारी ने क्79ब्0 वोट लाया।

क्यों नहीं बोल रहे हरेन्द्र प्रताप

बीजेपी के नेता हरेन्द्र प्रताप राफ-साफ बोलने वाले नेता जाने जाते हैं। पार्टी के अंदर भी और बाहर भी। लेकिन आई नेक्स्ट से बातचीत में उन्होंने कोई भी रिएक्शन नहीं दिया। कहा नहीं मैं अभी कुछ नहीं कहूंगा। इतने महत्वपूर्ण रिजल्ट पर उनका नहीं बोलना बीजेपी की अंदररूनी राजनीति की ओर इशारा करता है।

बाहरी से ज्यादा अंदरूनी हार

ये इलेक्शन बीजेपी की बाहरी से ज्यादा अंदरूनी हार है। पार्टी के नेता कभी सुशील कुमार मोदी के नाम पर टकराव करते हैं। ये हसुआ के ब्याह में खुरपी के गीत जैसा ही है।

आओ खेले जाति जाति

इस इलेक्शन की खास बात ये रही कि इसमें किसी सरकार को बनाने या हटाने का एजेंडा नहीं था। न किसी को सीएम बनाना था ना पीएम। लोकसभा इलेक्शन में वोटर यूपीए सरकार से बहुत खफा दें और इसका बड़ा लाभ नरेन्द्र मोदी को मिला। अन्ना हजारे का आंदोलन हो या बाबा रामदेव का फायदा बीजेपी को मिला था। लेकिन इस इलेक्शन में जैसे आओ खेलें जाति-जाति का अंदरूनी नारा था। नीतीश कुमार को लालू प्रसाद की जाति का वोट बैंक चाहिए था सो उन्होंने गठबंधन कर लिया। लालू प्रसाद को सत्ता का किनारा चाहिए था इसलिए वो भी पास हो लिए। कांगे्रस को डूबते को तिनके का सहारा चाहिए था। कांग्रेस के एक्स स्टेट प्रेसीडेंट महबूब अली कैसर लोकसभा इलेक्शन में एलजेपी के साथ होकर नरेन्द्र मोदी लहर में लोकसभा चले गए थे जबकि कांग्रेस के टिकट से वे पहले विधानसभा ही हार चुके थे।

विधान सभा इलेक्शन पर पड़ेगा असर?

विधान सभा इलेक्शन ख्0क्भ् में होना है। सवाल ये है कि इस उपचुनाव का असर उसमें होगा कि नहीं? इस सवाल का जवाब इसमें छिपा है कि बीजेपी कैसी और कितनी सीख लेती है। बिहार में जातिवादी राजनीतिक की जड़ें कैसी है ये बीजेपी से भी छिपा नहीं है। विधान सभा इलेक्शन में सबसे बड़ा मुद्दा होगा यहां का सीएम पोस्ट का कंडीडेट। कौन पार्टी सही मन से मुस्लिम सीएम का नाम प्रोजेक्ट करती है ये भी अल्पसंख्यक वोट बैंक पर असर डालने वाली राजनीति का हिस्सा बनेगा। किस जाति का कितना वोट बैंक है ये हर पार्टी को मालूम है। इसलिए इस उपचुनाव के नतीजे को ध्यान में रखकर कोई पार्टी दांव नहीं खेलेगी। खेलेगी तो झेलेगी। अभी का सच तो यही है कि जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस ने मिलकर बीजेपी से दो सीटें छीन लीं। ये तब हुआ जब लोकसभा इलेक्शन में बीजेपी ने दमदार परफॉरमेंस दिया।

Posted By: Inextlive