हरियाली को लग गया लापरवाही का ग्रहण

पटना (ब्यूरो)। पटना में तमाम प्रकार के डेवलपमेंट वर्क के दौरान वहां से हटाए गए पेड़ को ट्रांसप्लांट किया गया था। लेकिन ऐसे सैंकड़ों पेड़ सूख चूके हैं और इनपर 15 लाख 76 हजार रुपये बर्बाद हो गये हैं। इस बार में वन विभाग के आला अधिकारी खुद यह कह रहे हैं कि ट्रांसप्लांट के दौरान सही ढंग से देखभाल नहीं हो सकी। कम से कम एक साल तक इसकी देखभाल होती तो शायद ट्रांसप्लांट सफल होता। इस प्रकार, यह महत्वकांक्षी योजना विफल हो गया है। इसकी वजह से केवल पेड़ ही नहीं सूखे बल्कि एक बहुत बड़ी क्षति पर्यावरण के लिहाज से भी हुआ है। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने इस मामले की पड़ताल की।

इन जगहों से हटाए गए थे पेड़
डेवलपमेंट वर्क के दौरान कई जगहों से पेड़ हटा दिए गए। इसके कारण बेली रोड़, दीघा- आर ब्लॉक फ्लाईओवर, पटना म्यूजियम समेत अन्य कंस्ट्रक्शन वर्क के दौरान ये सभी पेड़ हटाए गए थे। इसे हटाने के लिए वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के निर्देश पर तैयार किए गए कंस्ट्रक्शन वर्क के दौरान ही इसका काम कर लिया गया था। लेकिन इसमें सफलता नहीं मिली।

किसे करना था पेड़ों को ट्रांसप्लांट
वन पर्यावरण विभाग एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, बिहार सरकार से मिली जानकारी के अनुसार, जिस विभाग का कंस्ट्रक्शन या डेवलपमेंट प्रोजेक्ट चल रहा था, कंस्ट्रक्शन साइट पर मौजूद पेड़ों को भी ट्रांसप्लांट करने का जिम्मा उसी विभाग का था। जैसे सड़क निर्माण विभाग काम कर हो तो पेड़ों का ट्रांसप्लांट भी उसे ही करना था।

क्यों फेल हो गई योजना
ट्रांसप्लांट किए गए अधिकांश पेड़ सूख गए। आखिर क्यों? दरअसल, पूरी योजना में केवल पेड़ों को ट्रांसप्लांट कर दिया गया। इसके बाद उसकी नियमित देखभाल के लिए कोई एजेंसी को काम नहीं दिया गया। ट्रांसप्लांट के लिए संबंधित विभाग ने पेड़ों को केवल एक जगह से दूसरे जगह पर इसे लगा दिया। इसके बाद इसकी देखभाल नहीं की गई। अलग-अलग विभागों के द्वारा सभी पेड़ को एलसीटी घाट के पास गंगा नदी क्षेत्र में लगाया गया था।

ये है ट्रांसप्लांट करने का तरीका
पेड़ों को ट्रांसप्लांट करने का तरीका ऐसा होना चाहिए कि वह रीलोकेट करने पर भी हरा-भरा ही रहे। इस बारे में पटना यूनिवर्सिटी के बॉटनी डिपार्टमेंट के पूर्व एचओडी प्रो। एमपी त्रिवेदी ने बताया कि सबसे पहले पेड़ का चुनाव हो। इसमें जिस पेड़ का ट्रंक नीचे बहुत विशाल या चौड़ा हो, उसका ट्रांसप्लांट नहीं किया जाना चाहिए। लेकिन जो पेड़ झाड़ीनुमा हो और तेजी से बढऩे वाला हो, उसका ट्रांसप्लांट बेहतर होता है। ट्रांसप्लांट के लिए पेड़ का दो हिस्से जैसे नार्थ या साउथ का रूट स्टेम बडिंग कर लेना चाहिए। यह तीन-चार माह पहले ही कर लेना चाहिए। जहां पहले से पेड़ लगा है और जहां पेड़ ट्रांसप्लांट होना है- इन दोनों जगहों का पीएच वैल्यू चेक कर लेना चाहिए। दोनों एक जैसा होना चाहिए। जहां ट्रांसप्लांट करना है वहां मिट्टी काम्पैक्ट नहीं हल्का होना चाहिए। बायो फर्टिलाइजर का प्रयोग करना चाहिए। पूरा पानी देना चाहिए। कम से कम छह से साल भर का समय देख -भाल करना चाहिए।

तेलंगाना मॉडल पर होगा काम
इस मामले पर वन एवं पर्यावरण विभाग के प्रिंसिपल सेक्रेटरी ने कहा कि देश भर में तेलंगाना में पेड़ों का ट्रांसप्लांट बेहतर ढंग से हो रहा है। अभी विभाग पेड़ों के ट्रांसप्लांट मामले पर सर्वे कर रहा है कि आखिर किन कारणों से पेड़ सूख गए। उसकी बेहतर देखभाल के लिए क्या किया जा सकता है। पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, बिहार सरकार के प्रिंसिपल सेक्रेटरी दीपक कुमार सिंह ने कहा कि पेड़ ट्रांसप्लांट करने के बाद कम से कम एक एक साल तक देखभाल करने की जरूरत पड़ती है। वह समुचित रूप से नहीं हो सका। सभी पेड़ का स्पीसीज वाइज सर्वे कराया जा रहा है।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट
पटना यूनिवर्सिटी के बॉटनी डिपार्टमेंट के पूर्व एचओडी प्रो। एमपी त्रिवेदी ने कहा कि बहुत विशाल पेड़ को ट्रांसप्लांट करने की सलाह नहीं दी जा सकती है। खास तौर पर विशाल ट्रंक वाले पेड़। साथ ही इसकी लंबी प्रक्रिया है, न कि एक जगह से दूसरे जगह पर इसे लगा देने भर का। जल्दी बढऩे वाले झाडीनुमा पौधे ही सफल तरीके से ट्रांसप्लांट होते हैं।

Posted By: Inextlive