सर्वसम्मति से नहीं, वोट से हो सकता है विधानसभा अध्यक्ष का फैसला

PATNA: बिहार के संसदीय इतिहास में 51 साल बाद स्पीकर पद के लिए चुनाव की नौबत आ सकती है। क्योंकि इस बार एनडीए और महागठबंधन दोनों ओर से दावेदारी की जा रही है। एनडीए की ओर से बीजेपी विधायक विजय सिन्हा को कैंडिडेट बनाया गया है, जबकि महागठबंधन ने भी आरजेडी के वरिष्ठ नेता अवध बिहारी चौधरी पर दांव लगा दिया है। दोनों ने मंगलवार को नामांकन भी दाखिल किया है। बुधवार को दोपहर बाद सदन में प्रोटेम स्पीकर तय करेंगे कि नए अध्यक्ष के चुनाव का तरीका क्या होगा। विपक्ष की ओर से गुप्त मतदान कराने का आग्रह किया जा सकता है। मानने या न न मानने का अधिकार प्रोटेम स्पीकर के पास है। वह ध्वनि मत से भी फैसला दे सकते हैं।

सर्वसम्मति से निपटाने की कोशिश

वैसे सदन में बहुमत राजग के पास है। इसलिए आखिरी क्षण तक मामले को सर्वसम्मति से निपटाने की कोशिश की जा रही है। बुधवार को दोपहर 11.30 बजे तक नामांकन वापस लिया जा सकता है, लेकिन विपक्ष की तैयारी को देखते हुए माना जा रहा है कि चुनाव की नौबत आ सकती है।

1967 और 1969 में हो चुके हैं चुनाव

बिहार विधानसभा स्पीकर पद के लिए दावेदार खड़ा कर राजद ने 51 वर्ष पुराना इतिहास दोहरा दिया है। सत्तापक्ष की दावेदारी के बीच ही महागठबंधन के प्रमुख घटक राजद ने पूर्व परिवहन मंत्री अवध बिहारी चौधरी को राजद की ओर से स्पीकर पद का दावेदार बनाते हुए उनका नामांकन करा दिया है। 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद विधानसभा अध्यक्ष को लेकर जो हालात बने हैं ठीक वैसी ही स्थिति पहली बार 1967 और इसके बाद 1969 में बन चुकी है। 1967 मे प्रदेश में महामाया प्रसाद के नेतृत्व में मिलीजुली सरकार बनी थी। सरकार बनने के बाद विधानसभा में सत्तापक्ष की ओर से धनिक लाल मंडल का नाम स्पीकर के लिए सामने किया गया। लेकिन विपक्ष को इस नाम पर एतराज था। नतीजा विपक्ष ने दीपनारायण सिंह को स्पीकर का दावेदार बनाकर नामांकन कराया। स्पीकर पद के लिए हुए चुनाव में सभी सदस्यों में से 171 ने धनिक लाल मंडल को वोट किया तो दीपनारायण के पक्ष में 127 लोगों ने वोट किए। इस चुनाव में धनिक लाल मंडल की जीत हुई।

तब सदानंद सिंह बने थे स्पीकर

1967 के बाद दोबारा 1969 में भी ऐसी ही नौबत आई। तब स्पीकर पद के लिए उस वक्त के दो बड़े नेताओं के बीच टक्कर हुई। सत्ता पक्ष ने राम नारायण मंडल को स्पीकर का दावेदार बनाया था जबकि विपक्ष की ओर से रामदेव प्रसाद दावेदार थे। विधानसभा इतिहास के जानकार बताते हैं कि उस चुनाव में रामनारायण मंडल के पक्ष में 151 वोट पड़े जबकि रामदेव प्रसाद के पक्ष में 128 वोट मिले। जाहिर है इन दोनों चुनाव में सत्तापक्ष के ही प्रत्याशी की जीत हुई। 20 वर्ष पूर्व भी चुनाव के हालात पैदा हुए थे। सत्तापक्ष ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सदानंद सिंह को स्पीकर पद के लिए दावेदार बनाया तो विपक्ष ने गजेंद्र प्रसाद हिमांशु को दावेदार बनाया। हालांकि नामांकन के बाद भी हिमांशु का नाम सदन में पुट नहीं हो पाया नतीजा सदन में सदानंद सिंह पूर्ण बहुमत से स्पीकर बनने में सफल रहे।

Posted By: Inextlive