पटना में 100 से अधिक प्रोजेक्ट पर लगा है ब्रेक. आम लोगों के सपनों के घर पर संशय सरकार को करोड़ों का नुकसान. रियल एस्टेट और रेरा की खींचतान में फंस गए सैकड़ों आशियाने. एक प्रोजेक्ट के मैप को अप्रूव होने में छह से आठ माह का समय लगता है.

पटना (ब्यूरो)। बिहार में रियल एस्टेट का कामकाज पूरे देश में सबसे पिछड़ा हुआ है, लेकिन इसके बाद भी ऐसी सरकारी नीति नहीं बनती जिससे इस दयनीय स्थिति में सुधार लाया जा सके। ताजा मामला मैप रिवैलिडेशन का है। बिना मैप रिवैलिडेशन के प्रोजेक्ट शुरू नहीं किया जा सकता है। केवल पटना में ही करीब 100 से अधिक प्रोजेक्ट का यह हाल है। इस स्थिति में कस्टमर की फ्लैट बुकिंग, बैक से फाइनांस और समय पर पोजेशन देने सहित तमाम पहलू पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है। भले ही इसमें रियल एस्टेट का कारोबार करने वाले नुकसान में हों, लेकिन इसका असर व्यापक है। इसमें सबसे बड़ा मामला आम आदमी के समय पर फ्लैट के पोजेशन और उसके दिए गए पैसे के यूटिलाइजेशन का है। जो बिल्कुल बेकार साबित हो रहा है।

यह है पूरा मामला
सरकार के नियमों के अनुसार, कोई भी रियल एस्टेट के प्रोजेक्ट को जमीनी तौर पर सामने आने के पहले नक्शा बनाया जाता है। यह नक्शा पटना महानगर क्षेत्र प्राधिकरण यानि पटना मेट्रोपालिटन एरिया ऑथोरिटी (पीएमएए) पास कराया जाता है। इसके तीन साल की अवधि के भीतर इसी नक्शे का रिवैलिडेशन कराना होता है। अभी समस्या इसके रिवैलिडेशन की ही है। इसे लेकर रियल एस्टेट वाले फ्लैट बुक करने वाले लोगों को निराशा हो रही है।

इसलिए हो रही है परेशानी
पटना मेन टाउन से सटे इलाकों में बड़ी संख्या में फ्लैट का निर्माण कार्य चल रहा है। ये इलाके या तो अर्ध शहरी या ग्रामीण क्षेत्र हैं। करीब तीन महीने से पहले तक प्रोजेक्ट का मैप मुखिया से पास कराया जाता था। तब तक इसे रेरा स्वीकार कर आगे निर्माण कार्य के लिए अनुमति भी देता था। लेकिन अचानक ही रेरा की ओर से ऐसे नक्शे केवल पटना मेट्रोपोलिटन एरिया ऑथोरिटी से पास कराना अनिवार्य कर दिया गया। जानकारों की मानें तो समस्या यहीं से शुरू हुई। इस वजह से पटना में 100 से अधिक प्रोजेक्ट लंबित हो गए हैं। अब रियल एस्टेट चलाने वाले लोगों को फिर से आवेदन करना होगा। जानकारी के अनुसार एक प्रोजेक्ट के मैप को अप्रूव होने में छह से आठ माह का समय लगता है।

प्रोजेक्ट का गणित
इन दिनों पटना के आस-पास कई प्रोजेक्ट चल रहे हैं। एक प्रोजेक्ट कम से कम 50 या इससे अधिक फ्लैट का होता है। यदि केवल 100 फ्लैट का निर्माण प्रभावित होता है तो 5000 फ्लैट का काम बाधित होता है। इसमें एक प्रोजेक्ट के एक फ्लैट की कीमत 40 लाख रुपए है। जबकि पूरे प्रोजेक्ट का कॉस्ट करीब 20 करोड़ का होता है। क्रेडाई के अध्यक्ष सचिन चंद्रा ने बताया कि इसके साथ सरकार का रेवेन्यू भी लॉस हो रहा है। जबकि दूसरे राज्यों में मैप के रिवैलिडेशन को लेकर कोविड अवधि में एक से डेढ़ साल तक का एक्सटेंशन दिया गया है।

काफी नुकसान हो रहा
इस संबंध में दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने क्रेडाई बिहार के प्रेसिडेंट सचिन चंद्रा से बात की। उन्होंने बताया कि इस समस्या की वजह से प्रोजेक्ट लंबित हो रहा है। आर्थिक नुकसान हो रहा है। रियल एस्टेट वाले इस बात को लेकर चिंतित हैं कि आखिर कस्टमर की फ्लैट बुकिंग का क्या होगा? कैसे उसे समय पर पोजेशन मिलेगा। इसके अलावा प्रोजेक्ट चलाने के लिए लोन अप्रूव वाला मामला भी फंस जाता है। बहुत बड़े-बड़े प्रोजेक्ट भी बाधित हैं। बिल्डरों का कहना है कि रेरा और पीएमएए की स्थापना एक साथ की गई। दोनों ही नगर विकास विभाग के अंतर्गत हैं। लेकिन यह समझ नहीं आता कि अचानक से मु़खिया के पास किए मैप को अमान्य क्यों किया जा रहा है।


इस समस्या को लेकर डिप्टी सीएम और नगर विकास विभाग को भी पत्र लिखा है। लेकिन अब तक इसक समाधान नहीं निकला है। सरकार को आपस में समन्वय स्थापित कर समाधान देना चाहिए। किया जाना चाहिए।
- सचिन चंद्रा, प्रेसिडेंट, क्रेडाई बिहार

Posted By: Inextlive