PATNA : वारदात होने पर छानबीन के लिए डॉग स्क्वॉयड मौके पर पहुंचा। इधर-उधर घूमा, लेकिन किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा। क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों हो रहा है? दरअसल नियमित प्रैक्टिस बेहद जरूरी है, जबकि पटना में डॉग स्क्वॉयड की प्रैक्टिस ही नहीं हो पा रहा है, जिस कारण जासूस के मेमोरी लॉस का खतरा बढ़ गया है। पुलिस लाइन के नजदीक गांधी मैदान है, जिसमें प्रैक्टिस की इजाजत नहीं है। आसपास कोई और मैदान भी नहीं है, जिसमें प्रैक्टिस कराई जा सके। इस कारण पुलिस महकमे में डॉग स्क्वॉयड के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति हो रही है।

पटना में 22 डॉग

पटना में डॉग स्क्वायड में कुल 22 डॉग हैं, जो पुलिस लाइन में रहते हैं। वहीं पर उनकी देखभाल की जाती है। जहां इनकी जरूरत पड़ती है, वहां भेजा जाता है। इनकी देखभाल में स्टाफ लगाए गए हैं। लेकिन लंबे समय तक ये प्रैक्टिस से दूर रहे तो आने वाले दिनों में इनकी उपयोगिता खत्म हो जाएगी। डॉग स्क्वॉयड की देखभाल में कई स्तर पर लापरवाही की बात कही जा रही है। केयर टेकर से लेकर अन्य स्टाफ उच्च अधिकारियों को समस्याओं से अवगत भी कराते हैं, लेकिन कोई ध्यान नहीं दिया जाता है, जिस कारण लगातार उनकी उपयोगिता खटाई में पड़ती जा रही है।

क्या कहता है मानक

जानकारों के मुताबिक डॉग स्क्वॉयड की प्रत्येक दिन प्रैक्टिस होनी चाहिए। ऐसा नहीं होने पर धीरे-धीरे उनकी क्षमता प्रभावित होने लगती है। इसके साथ ही ये आलसी भी होने लगते हैं। बगैर प्रैक्टिस और भाग-दौड़ के ये दस्ता कमजोर होता चला जाता है।

9 महीने की ट्रेनिंग

आपराधी, विस्फोटक और लीकर की खोजबीन करने के लिए डॉग को कड़े प्रशिक्षण से गुजरना होता है। इन्हें 9 महीने की ट्रेनिंग दी जाती है। हैदराबाद आदि जगहों से विशेष प्रजाति के डॉग खरीदे जाते हैं, जिनकी आयु एक वर्ष से अधिक नहीं होती है। इसके बाद इन्हें ट्रेंड किया जाता है।

बिहार में 65 डॉग थे पहले

65 डॉग थे प्रदेश भर में पहले, जिनमें

से कुछ की मृत्यु हो चुकी है। इस

वक्त प्रदेश में कुल 59 डॉग हैं, जिनमें से 22 डॉग पटना में हैं। इनमें माइंस, एक्सक्लूसिव और लीकर पकड़ने के एक्सपर्ट शामिल हैं। ये मौके पर पहुंचकर असलियत का खुलासा करते हैं।

सालाना खर्च 80 लाख

ज्ञात हो कि एक डॉग पर रोज लगभग एक हजार रुपए का खर्च आता है, इस तरह साल में करीब 3.65 लाख रुपए खर्च होता है। पटना में कुल 22 डॉग हैं और इनका सालाना खर्च लगभग 80 लाख रुपए होता है। इनकी देखभाल में लगे स्टाफ का खर्च अलग है। इतना खर्चा करने के बाद भी अगर उनकी प्रैक्टिस नहीं हो जा रही है, तो विभाग की कार्य शैली पर सवाल उठना लाजमी है। पब्लिक का इतना पैसा खर्च हो रहा है और उसका लाभ भी मिल नहीं रहा है।

ऐसी बात नहीं है। प्रैक्टिस कराए जाने के लिए अन्य स्थानों पर डॉग को ले जाया जाएगा। इस संबंध में उच्च अधिकारियों को भी अवगत कराया गया है।

-ओमप्रकाश श्रीवास्तव,

प्रभारी डॉग स्क्वॉयड

Posted By: Inextlive