सैदपुर नाला बना रिहाइशी इलाकों में दमा व सांस संबंधी बीमारियों का हब नाला डैमेज होने के बाद से भरने लगा गाद मीथेन गैस से जीना हुआ मुहाल

पटना (ब्यूरो)। राज्य सरकार सभी जिलों में आधारभूत संरचनाओं के विकास के लिए कई परियोजनाएं चला रही है। उसके ऊपर समय, पैसा सबकुछ खर्च हो रहा है। लेकिन राजधानी पटना में सैदपुर नाला, जो कि मौत का नाला के नाम से कुख्यात हो चुका है, उसकी घोर अनदेखी की जा रही है। अब तक इस नाले में सैंकड़ों लोगों की डूबकर मौत हो चुकी हैं। सिर्फ यही नहीं, इस नाले से मिथेन गैस का रिसाव हो रहा है । इस कारण से सैदपुर नाले के किनारे रहने वाले लोग दमा की बीमारी से तेजी से पीडि़त हो रहे हैं। वहीं इस इलाके में रहने वाले कई लोग कैंसर के भी शिकार हैं। इस नाले में गाद जमा होने की जबरदस्त समस्या है। सरकार और अधिकारियों की उदासीनता के कारण इस नाले के पास बसे करीब चार लाख लोगों की जिंदगी तड़पकर बीत रही है। घर-घर दमा की बीमारी का कहर है। ये बातें पाटलिपुत्र नगर विकास समिति के अध्यक्ष रितेश कुमार बबलू ने मंगलवार को कहीं । उन्होंने बताया कि समस्या बेहद गंभीर है ।

ऐसे समझे, क्यों है यह समस्या
दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की टीम ने स्थानीय लोगों से बातचीत की । साथ ही इस नाले का भी मुआयना भी किया। इस बारे में स्थानीय नागरिकों ने बताया कि यह ओपन नाला है और जेसीबी आदि से सफाई करने के क्रम में नाला की ढ़लाई क्षतिग्रस्त हो चुकी है। इसके ठीक नीचे की मिट्टी सड़कर नाले में फैल गई है। यह गैस बनकर नाले से रिसती रहती है । उधर, निगम जब-जब इस नाले की उड़ाही की जाती है तो नाले का गाद इसके ठीक किनारे छोड़ दिया जाता है । गाद सूखने के बाद यह महीन धूलकण के तौर पर नाले के पास के रिहाइशी इलाकों में उड़ता है। यह लोगों के सांस नली के जरिए फेफड़े तक पहुंच रहा है और दमा का शिकार बना रहा है।

जेसीबी की सफाई से बढ़ा खतरा
पाटलिपुत्र नगर विकास समिति के अध्यक्ष रितेश कुमार बबलू ने बताया कि समस्या इतनी गंभीर पहले नहीं थी। लेकिन जब से जेसीबी से इस नाला की सफाई की जाने लगी है। नाला का दोनों छोर की बाउंड्री और इसके तल का हिस्सा भी बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया है। इसके बाद से ही नाला में गाद जमने और मिथेन गैस से लोगों के दमा से ग्रसित होने की समस्या बढ़ती जा रही है। जेसीबी से सफाई से अधिक समस्या उत्पन्न हो रही है।

सालों भर बंद रहता है दरवाजा
यहां से गुजरने वाल लोगों को तेज बदबू का सामना करना पड़ता है। यह राहगीरों की समस्या है। लेकिन जो सालों भर इसके पास रहते हैं उनका हाल तो बेहाल है। ऐसे सभी लोग सालों भर अपने घरों का दरवाजा बंद रखते हैं। इसकी वजह न केवल बदबू से बचना है बल्कि नाला के किनारे का गाद धूल बनकर घर में धूल की काली परत जमा देता है। इसलिए यह केवल किसी व्यक्ति की नहीं बल्कि नाले के किनारे बसे हजारों परिवारों की समस्या है। जिसकी अनदेखी हो रही है।

खूब चला अभियान, लेकिन।
सैदपुर नाला सेफ बनाने को लेकर पाटलिपुत्र नगर विकास समिति की ओर से अभियान चलाया गया है। इसमें कई जनप्रतिनिधियों, पटना नगर निगम के अधिकारियों, नगर विकास विभाग के अधिकारियों से गुहार और मानव श्रृंखला बनाकर भी स्थानीय लोगों को अवेयर किया गया है। लेकिन अब तक निराशा ही हाथ लगी है। अभियान से जुड़े रितेश कुमार बबलू, सुधीर कुमार और हलीम जाफर का कहना है कि चाहे जिम्मेदारी इस नाले की किसी के पास रही हो, सभी ने स्थानीय लोगों को उनके भाग्य पर छोड़ दिया है।

सैदपुर नाला - एक नजर में
सैदपुर नाला की लंबाई 5400
प्रभावित आबादी - करीब 400000
नाला के अंतर्गत वार्ड - 47,48,50, 53 और 51
समस्याएं - डूबने की घटनाएं, दमा की बीमारी, गंदगी और बदबू
विशेषज्ञों ने कहा - पीली पट्टी में ले
आम तौर पर लोग इसे नुकसानदेह समझते हैं। लेकिन उससे भी अधिक नुकसानदेह जहरीली गैसों का सघन आबादी के बीच रिसाव है। मीथेन जहरीली गैस है और सांसों के जरिए फेफड़े को काफी नुकसान पहुंचाता है। यह सांस की सीओपीडी बीमारी का भी कारण हो सकता है। यह प्रभावित व्यक्ति की जीवन प्रत्याशा को कम कर देता है। नाला में एनारोबिक डिकंपोजिशन होने के बाद मिथेन और अमोनिया जैसी गैस निकलती है। इसे सरल शब्दों में कहें तो आक्सीजन की बेहद कमी हो जाती है। इसके कारण ऑगेनिक चीजों खत्म हो जाती है। नाला के चैम्बर में भी काफी हद तक ऐसी ही स्थिति बनती है। सैदपुर नाला पर विस्तृत अध्ययन की जरूरत है।

Posted By: Inextlive