- राजधानी में कुल पाइप लाइन का बिछा जाल- 1200 किलोमीटर

- शहर में प्रतिदिन निकलता लिकेज- 10-12

- एक लिकेज से प्रति घंटा पानी की बर्बादी- 50-55 लीटर

- प्रतिदिन कुल पानी की बर्बादी- 40 गैलेन

- पाइप लाइन का बिछा जाल- 60-70 साल पुराना

- राजधानी में प्रतिदिन पानी की सप्लाई- 60 लाख गैलेन

- पटनाइट्स द्वारा पानी का मिसयूज- 30 फीसदी

PATNA : महाराष्ट्र के लातूर जिले में पानी का संकट इस तरह गहराया कि वहां पानी बचाने को लेकर धारा क्ब्ब् तक लागू करनी पड़ी। इसलिए अगर पटनाइट्स भी पानी की बर्बादी को नहीं रोकेंगे, तो हो सकता है कि इस तरह की समस्या से उन्हें भी दो-चार होना पड़े। क्योंकि पानी मिसयूज करने में पटनाइट्स कम पीछे नहीं हैं।

सबसे बड़ी दु:खद बात यह है कि गंगा किनारे बसे शहर होने के बावजूद पिछले ख्0 सालों में पटना शहर का ग्राउंड वाटर लेवल लगातार गिरता जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ दिन पर दिन पानी को बेवजह बहाया जा रहा है। शहर में वाटर सप्लाई सिस्टम की वजह से भी पानी बर्बाद हो रहा है। लेकिन इसे देखने वाला कोई नहीं है। इन सबसे अलग वाटर बोर्ड के पास भी इसे बचाने के लिए कोई खास अरेंजमेंट नहीं है। लिहाजा अब स्थिति गंभीर होती जा रही है।

ब्0 गैलेन पानी प्रतिदिन बर्बाद

वाटर बोर्ड एक दिन में म्0 लाख गैलेन पानी की सप्लाई करता है, जिसमें ब्0 गैलेन पानी लिकेज की वजह से प्रतिदिन बर्बाद हो जाता है। इसके अलावा गाड़ी की सफाई से लेकर कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में यूज किए जाने वाली पानी, जो कुल पानी का फ्0 फीसदी है, बर्बाद हो जाता है। ऐसी स्थिति में न तो पटना जल पर्षद के पास पानी रोकने के लिए पर्याप्त संसाधन है और न ही जिला प्रशासन इंडस्ट्रीज पर कोई रोक लगा रहा है।

ऐसे होता है पाइप में लिकेज

पटना जल पर्षद के मुख्य अभियंता बिनोद कुमार तिवारी बताते हैं कि राजधानी में जो पाइप लाइन बिछा हुआ है, वह म्0-70 साल पुराना है। इस परिस्थिति में जब नया बोरिंग होता है और उसे उसी पुराने पाइप लाइन में जोड़ दिया जाता है। बोरिंग से पानी का प्रेशर जब बढ़ता है, तो पुराना पाइप उस प्रेशर को सहन नहीं कर पाता और वह डैमेज हो जाता है। जिससे लिकेज की स्थिति पैदा हो जाती है। तिवारी बताते हैं कि राजधानी के पूरे पाइप लाइन को बदलने की जरूरत है।

तो पानी के लिए तरसेंगे

गंगा से सटे और किनारे वाले एरिया खासकर पटना सिटी से दीघा एरिया का ग्राउंड लेवल की हालत दिन पर दिन खराब होती जा रही है। बीस साल पहले जहां ब्भ् फीट पर पानी उपलब्ध हो जाता था, वहीं अब 70-80 फीट में भी साफ पानी नहीं मिल पाता है। एक्सपर्ट बताते हैं कि जिस तेजी से पानी निकाला जा रहा है, उससे आने वाले बीस साल में पानी के लिए पटनाइट्स तरसेंगे।

Posted By: Inextlive