राजधानी में कई जगहों पर पब्लिक की सुरक्षा के लिए लगाए गए थे टॉयलेट्स. ज्यादातर की हालत बद से बदतर. कहीं लगा हुआ है ताला तो कहीं गंदगी की भरमार. किसी का गेट असामाजिक तत्वों ने तोड़ दिया तो कहीं पानी की व्यवस्था नहीं.

पटना (ब्यूरो)। पटना स्मार्ट सिटी की तरफ बढऩे के लिए अग्रसर है। इसकी गिनती ओडीएफ प्लस सिटी में होती है। शहर के लोगों की सुविधा के लिए जगह जगह पर विशेष तौर पर सीएसआर एक्टिविटी के तहत मॉड्यूलर टॉयलेट्स भी लगाए गए थे लेकिन ज्यादातर जगहों पर इन टॉयलेट्स की हालत ऐसी हो चुकी है कि लोग उसमें जाना ही नहीं चाहते हैं। बता दें कि पटना निगम की ओर से दो साल पहले बनाए गए मॉड्यूलर टॉयलेट्स अव्यवस्थाओं के चलते कारगर साबित नहीं हुए थे। बाद में मॉडयूलर टॉयलेट्स की देखरेख एवं संचालन सुलभ इंटरनेशनल को दी गई, लेकिन आज भी ज्यादातर के हाल बदहाल ही हैं।

कई जगहों पर बनाए गए थे टॉयलेट्स
शहर में कई जगहों पर ऐसे टॉयलेट्स को बनाया गया था, उद्देश्य यही था कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसकी सुविधा मिले लेकिन आज की तारीख में इन टॉयलेट्स को देखकर यह अंदाजा लगाना कतई मुश्किल नहीं कि इससे लोगों को कितना फायदा हो रहा होगा। ज्यादातर जगहों पर इन टॉयलेट्स में ताला लगा रहता है और जहां पर ताला खुला है, वहां लोग न जाना ही बेहतर समझते हैं। इक्का-दुक्का जगहों को छोड़ दें तो करीब-करीब हर टॉयलेट का यही हाल है।

नहीं खुलता ताला
बुद्ध स्मृति पार्क के पास बने टॉयलेट में ताला हुआ है। पूछने पर यहां के लोगों का कहना है कि कम से कम हम लोगों ने तो इसका ताला खुलते हुए आज तक नहीं देखा है। यहां बना टॉयलेट, स्ट्रीट वेंडर के सामान रखने के लिए गोदाम का काम करता है। हैरत वाली बात यह कि इसी जगह पर बैठकर लोग खाते भी हैं। इसी प्रकार तारामंडल के पास बने टॉयलेट में भी ताला लगा हुआ है और लोग बगल में खड़ा होकर हल्का होते हैं। यही हाल गांधी मैदान थाना के सामने बने टॉयलेट का है। यहां पर भी लोग टॉयलेट में न जाकर उसके बगल में हल्का होते हैं। गांधी मैदान के ही करगिल चौके के पास बने टॉयलेट्स के बारे में यहां के लोगों का कहना था कि यही ऐसा टॉयलेट है, जहां पर सफाई होती है। सबसे बुरा हाल श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल के गेट नंबर एक के पास बने टॉयलेट का है। इसकी हालत देखने के साथ ही उबकाई आ जाएगी। बेतरतीब गंदगी, उखड़े शीट्स तो है ही असमाजिक तत्वों द्वारा इसके दरवाजे को भी उखाड़ लिया गया है। मौर्यालोक कंप्लेक्स में बना टॉयलेट थोड़ी बेहतर हाल में देखने को मिला। इसी तरह की हालत कमोबेश हर उस जगह के टॉयलेट्स की है, जहां इसे लगाया गया था।

सीएसआर के तहत टॉयलेट्स
इन मॉड्यूलर टॉयलेट्स का निर्माण सीएसआर (कॉर्पोरेट एंड सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) के तहत किया गया है। इनमें जमीन, पानी कनेक्शन व टाइल्स लगाने की जवाबदेही पटना नगर निगम की थी। इनके खराब रहने से राजधानी के लोगों को काफी फजीहत झेलनी पड़ रही है, जिसके कारण से लोग जहां-तहां मल-मूत्र त्याग रहे हैं। जिस कारण से और गंदगी फैल रही है।
फाइबर के हैं बने
ये मॉड्यूलर टॉयलेट्स पारंपरिक शौचालयों से अलग होते हैं। ये फाइबर के बनाए जाते हैं और इनमें कंक्रीट का प्रयोग नहीं होता है। इसकी छत पर ही पानी की टंकी रखी जाती है, जिससे नियमित रूप से पानी की आपूर्ति हो सके। इनकी बनावट व कैपिसिटी ऐसी होती है कि यह हर मौसम को झेलने में सक्षम होते हैं।

सुलभ शौचालय को जिम्मा
स्मार्ट सिटी की पीआरओ हर्षिता के अनुसार पूरे शहर में करीब दो सौ से ज्यादा जगहों पर ऐसे टॉयलेट्स बनाए गए हैं। उद्देश्य यही है कि लोगों को सुविधा मिले। इन सभी टॉयलेट्स के मेंनटेंस का जिम्मा सुलभ इंटरनेशनल को दिया गया था। पटना ओडीएफ प्लस सिटी है। ऐसे में इस तरह की कोताही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उनका यह भी कहना था कि जहां कहीं भी ऐसे टॉयलेट लोगों को देखने को मिले, जिसमें सुविधा नहीं है या फिर ताला लगा हुआ है। लोग उसकी तस्वीर लेकर स्वच्छता एप के माध्यम से हमारे पास भेजे, तत्काल कार्रवाई होगी।


- ऐसे टॉयलेट के बना देने से क्या फायदा जब हमें इसका लाभ ही न मिले। बराबर ताला लगा रहता है।
- कृष्णा सिंह, करगिल चौक

- शहर में पब्लिक की सुविधा के लिए लगे टॉयलेट्स में व्याप्त गंदगी देखकर अंदर घुसने की हिम्मत ही नहीं होती है। सब पैसे की बर्बादी है।
- सुकेश भारती, गांधी मैदान

- जब टॉयलेट बने तो इनकी मेंटनेंस पर भी ध्यान देना चाहिए न, ऐसे में बनाने का क्या मतलब।
- निरंजन विश्वकर्मा, फ्रेजर रोड

Posted By: Inextlive