भूदान में मिली जमीन पर सीएम ने लगाया था रुद्राक्ष का पौधा कचईनियां गांव के मंदिर में काफी समय तक रहे थे संत विनोबा भावे

पटना (ब्यूरो)। मानसून सीजन नजदीक आने के साथ ही वन मंडल प्रशासन ने हरियाली का दायरा बढ़ाने की दिशा में प्रयास तेज कर दिए हैं। वहीं कांव नदी के तट पर बसा कोरानसराय के कचईनियां के विनोबा वन की हरियाली अब मुरझाने लगी है। कभी इस गांव के मंदिर मेंं संत विनोबा भावे लंबे समय तक रहे थे। इनकी प्रेरणा से डुमरांव महाराज ने जमीन भू-दान में दी थी। इसी जमीन पर संत विनोबा भावे की यादों को संजोये रखने के लिए 12 साल पहले विश्वास यात्रा पर आए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रुद्राक्ष का पौधा लगाकर पौधारोपण का शुभारंभ किया था। उस समय मुख्यमंत्री ने कहा था कि विनोबा वन को हरा-भरा कर भूदान आंदोलन के नायक संत विनोबा की यादों को जन-जन तक पहुंचाया जाएगा। तब प्रशासनिक अमले ने संत विनोबा वन को हरित पट्टी के रूप में विकसित करने का विश्वास दिलाया था, लेकिन समय के साथ-साथ अधिकारियों का संकल्प भी पीछे छूट गया। अब यहां लगाए गए शीशम सहित पेड-पौधे समुचित देख-रेख व सिचाई के अभाव में सूख रहे हैं।

प्रवासी बन संत विनोबा ने भूदान में ली थी जमीन
साल 1954 में भूदान आंदोलन के नायक संत विनोबा भावे ने कचईनियां वन में स्थित कंचनेश्वर मंदिर परिसर में लंबी अवधि तक प्रवासी बन कर गुजारे थे। इसी दौरान इन्होंने भूदान में डुमरांव महाराजा से कुल 42.91 एकड़ भूमि अर्जित किया। भूदान तथा भू-हदबंदी अधिनियम के तहत कुल 122 भूमिहीन परिवारों के बीच संत विनोबा भावे ने वितरित किया था। वर्ष 1978 में कचईनियां मठियां के महंथ ने इन्हें 56.12 एकड़ जमीन दान किया। आगे चलकर इस जमीन पर मनरेगा योजना से 20 हजार शीशम के पौधे लगाए गए। इसमें अधिकांश शीशम के पेड़ अब समुचित देख-रेख के अभाव में सूख रहे हैं।

अधिकारियों की जांच मेंं मिले थे प्राचीन अवशेष
बिहार के सीनियर आईपीएस अधिकारी विकास वैभव और महाभारत कालीन तीर्थ स्थलों पर शोध करने वाले हेरिटेज सोसायटी के सचिव डा। अनंताशुतोष द्विवेदी ने विनोबा वन का दौरा किया था। उस समय यहां प्राचीन अवशेष मिलने के साथ ही मध्य उत्तर गुप्तकाल की मूर्तियां भी होने की संभावना व्यक्त की गई। यहां स्तंभ का अवशेष शिव-पार्वती की मूर्ति के रूप में पाया गया था।
बीस हजार लगाए गए थे शीशम के पौधे
कचईनियां गांव के निवासी हृदयानंद पांडेय, सर्वजीत पांडेय, विनोद कुमार ङ्क्षसह, रामजी पांडेय, श्रीभगवान ङ्क्षसह ने बताया कि भूदान में मिली जमीन भमिहीनों के बीच वितरित किए जाने के बाद बाकी बची 56.12 एकड जमीन में वर्ष 1990 के दौरान एक प्लांटेशन कंपनी द्वारा पौधरोपण किया गया और एक साल के अंदर ही पौधरोपण करने वाली कंपनी गायब हो गई। उसके बाद लोग पौधों की देखरेख कर रहे हैं। इसी भूखंड के बाकी हिस्सों पर वर्ष 2000. में बीस हजार शीशम के पौधे लगाए गए, जिसकी समुचित देख-भाल नहीं हो पा रही है। इस संबंध में डुमरांव के अनुमंडल पदाधिकारी कुमार पंकज ने बताया कि मनरेगा अधिकारियों और कर्मियों से बातचीत कर सूख रहे शीशम के पेड़ को बचाने की कोशिश की जाएगी। ताकि, इस ऐतिहासिक जगह का अस्तित्व बरकरार रहे

Posted By: Inextlive