कभी नवाबों का था संरक्षण

पटना (ब्यूरो)। साडिय़ों, गाउन, ब्लाउज, बेड शीट और घरों में पर्दे आदि हर जगह जरी और जरदोरी वर्क का अपना एक खास स्थान रहा है। इसकी मांग देश-विदेश में रही है। पटना में इसके कई मशहूर कारीगर रहे हैैं, लेकिन इस परंपरागत क्राफ्ट वर्क से नई पीढ़ी दूर हो रही है। अब यह क्राफ्ट वर्क परंपरागत कारीगरों की लगन के बूते ही जिंदा है। बुधवार से निफ्ट पटना में शुरू हुए टेक्स्टाइल एग्जीबिशन और वर्कशॉप में इसके काफ्ट वर्क से जुड़े कारीगरों ने स्टॉल लगाए हैं। जरी और जरदोरी वर्क से जुड़े ट्रेडिशनल कारीगर मो। शफी अहमद ने बताया कि वे इस काम को करीब चार दशकों से कर रहे हैं और जब शुरू किया था तब इसकी डिमांड जैसी थी, उसमें अब कमी आई है। हालांकि उन्होंने कहा कि आज भी इसके कद्रदान इससे बने प्रोडक्ट को खूब पसंद करते हैं।

कभी नवाबों का था संरक्षण

जरी से जुड़े क्राफ्टवर्कर्स का कहना है कि यह नवाबों के जमाने से चला आ रहा है। समस्या यह है कि इसे अब सरकारी संरक्षण नहीं मिल रहा है, न ही प्रोत्साहन। पटना सिटी के क्राफ्टवर्कर मो। शकील अहमद और मो। शफी अहमद का कहना है कि वर्तमान में मेहंदी नवाब और सिटी के और नवाब का इसे बढ़ावा देने में बड़ा योगदान रहा है। अब इस परंपरागत क्राफ्टवर्क से जुड़कर काम करना महंगा सौदा साबित हो रहा है।

सूरत से आता है सामान

जरी के सभी सामान गुजरात के सूरत से आते हैैं। मो। शफी अहमद ने कहा कि सूरत में इस वर्क से जुड़े लोग इसे कम लागत में तैयार कर लेते हैं, लेकिन पटना में जरी का सामान मंगवाकर इसे तैयार करने से लागत ज्यादा आती है, जबकि मुनाफा बहुत कम हो गया है। क्या जरी का काम बिहार से बाहर जाता है, इस बारे में मो। शफी ने बताया कि बिहार में ही इसकी इतनी डिमांड है, जिसे पूरा नहंी किया जा रहा है।

बहुत बारीक काम है जरी का वर्क युवा कारीगरों को अब नहीं भाती जरी-जरदोरी
जरी का वर्क बहुत ही महीन काम होता है। दरअसल, इस काम को करने वाले हुनरमंद सालों से इस काम को पुश्तैनी धंधे के तौर पर कर रहे हैं। वे इस काम को बचपन से ही सीख -समझकर कर रहे हैं। इसमें बारीक नजर और क्राफ्ट वर्क के प्रति समर्पित होने की जरूरत है। इसलिए नई पीढ़ी के लिए बिना मुनाफा महंगा काम है। जरी एवं जरदोरी वर्क वाली एक साड़ी को तैयार करने में एक से दो महीना लग जाता है। आपको जानकर यह आश्चर्य होगा कि फुल जरी वाली भारी साड़ी की कीमत 25 से 30 हजार भी हो सकती है। प्राइस के मामले में ये लाभ घट जाने से नई पीढ़ी के कारीगरों का जरी के काम के प्रति मोह भंग हो गया है। वे खुद को इस परंपरागत काम से अलग कर रहे हैं।

नई पीढ़ी छोड़ रही जरी का काम

पटना में कभी नवाबों के प्रश्रय से जरी-जरदोरी वर्क की तूती बोलती थी और आज यह स्थिति है कि इस काम को करने वाले पीढ़ी के युवा इसे छोड़ रहे हैं। मो। शफी ने बताया कि यदि राज्य सरकार इसे संरक्षण दे तो यह काम बहुत आगे बढ़ सकता है। भले ही आज इसके कारीगर कम हो गऐ हैं लेकिन इसकी डिमांड अभी भी इतनी है कि इसे पूरा करना आसान नहीं है।

'क्राफ्ट विलेज Ó में लगे 40 से अधिक स्टॉल

बिहार दिवस के अवसर पर निफ्ट पटना के सेंट्रल हॉल में बुधवार को हैंडलूम एग्जीबिशन के मौके पर 40 स्टॉल लगाए गए हैं। इस तीन दिवसीय एग्जीबिशन कम वर्कशाप में मधुबनी पेंटिंग, सिक्की आर्ट, टिकुली पेंटिंग, एप्लिक वर्क आदि के स्टॉल हैं। ये स्टॉल जाने-माने क्राफ्ट वर्कर के हैं जो इन क्राफ्ट से संबंधित हैं। इसका विधिवत उद्घाटन साइंस एंड टेक्नोलाजी मिनिस्टर सुमित कुमार सिंह ने किया। निफ्ट पटना के निदेशक कर्नल राहुल शर्मा ने मधुबनी पेटिंग स्टॉल पर सभी गेस्ट का वेलकम किया। सेंट्रल हॉल में सभी स्टॉल घास-फूस से बनाए गए हैं। इस एग्जीबिशन कम वर्कशॉप की थीम है- 'क्राफ्ट विलेजÓ। यहां ट्री ऑफ लाइफ के नीचे स्टाल की तमाम एक्टिविटी हो रही थी। निफ्ट पटना कैंपस में लगे इस एग्जीबिशन में नि: शुल्क प्रवेश है, जिसमें विजिटर हस्तशिल्प और हस्तकरघा के बने उत्पाद को देख समझ सके।

Posted By: Inextlive