क्त्रन्हृष्ट॥ढ्ढ: रिम्स में बायोकेमिस्ट्री डिपार्टमेंट की मशीन चार दिनों से खराब पड़ी हैं. इस वजह से दर्जनों फ्री टेस्ट कराने के लिए भी मरीजों को चार गुना तक अधिक पैसे चुकाने पड़ रहे हैं. इसके बावजूद मशीन की रिपेयरिंग कराने को लेकर कोई पहल नहीं की जा रही है. अगर यही स्थिति रही तो गरीब मरीजों को लंबे समय तक पैसे देकर जांच करानी पड़ेगी. बताते चलें कि मार्च में 24 दिनों के अंदर ही तीसरी बार मशीन खराब हो गई है.

10 साल पुरानी मशीन, मेंटेनेंस नहीं

बायोकेमिस्ट्री डिपार्टमेंट में लगी मशीन दस साल से ज्यादा पुरानी हो चुकी है. इसके बाद भी मैनेजमेंट मशीनों के रेगुलर मेंटेनेंस को लेकर प्लानिंग को धरातल पर नहीं उतार पाया है. इस वजह से मशीन अब हफ्ते में ही खराब हो जा रही है. बात यहीं खत्म नहीं होती जब मशीन को बनाने के लिए इंजीनियरों को बुलाया जाता है तो उसमें भी तीन से चार दिन तक का समय लग जाता है. जबकि इक्विपमेंट्स के मेंटेनेंस और रिपेयरिंग को लेकर हेल्थ डिपार्टमेंट ने मेडिसिटी के साथ करार किया है.

डेली लौट रहे 130 मरीज

हॉस्पिटल के ओपीडी में हर दिन इलाज के लिए 1500 लोग पहुंचते हैं. इसमें से ढाई से तीन सौ लोगों को टेस्ट के लिए डॉक्टर एडवाइस देते हैं. इन मरीजों में से 130 का बायोकेमिस्ट्री टेस्ट नहीं हो पा रहा है. ये मरीज निराश होकर सेंट्रल कलेक्शन सेंटर से लौट जा रहे हैं. इन मरीजों को प्राइवेट सेंटरों में अधिक पैसे देकर चुकाने के अलावा कोई चारा ही नहीं है.

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बंद हो गए टेस्ट

-टोटल बिलरुबिन

-डायरेक्ट बिलरुबिन

-एसजीपीटी

-एसजीओटी

-अल्कलाइन फॉस्फेट

-कॉलेस्ट्रॉल

-टोटल प्रोटीन

-एल्बुमिन

-एमाइलेज

Posted By: Prabhat Gopal Jha