भारतीय रेल खासतौर पर मेट्रो सेवा की नींव रखने वाले ई.श्रीधरन आज भले ही वृद्धावस्‍था की जंजीरों में जकड़े हैं। लेकिन एक समय इंडियन इंजीनियरिंग सर्विस IES ऑफिसर बनकर उन्‍होंने मेट्रो रेल जैसे कई बड़े-बड़े प्रोजेक्‍ट बनाकर पब्‍िलक ट्रांसपोर्ट को आसान बना दिया था। तो आइए जानें आज उनके 83वें बर्थ-डे पर जीवन से जुड़े कुछ रोचक तथ्‍य.....

6 महीने का काम 46 दिन में
1954 में IES ऑफिसर बनकर भारत सरकार की सेवा में लगे ई.श्रीधरन की असली परीक्षा 1964 में हुई। जब एक साइक्लोन ने रामेश्वरम से तमिलनाडु को जोड़ने वाले पंबन ब्रिज को क्षतिग्रस्त कर दिया था। इस ब्रिज पर रेल का आवागमन होता था। लेकिन पुल टूटने के कारण काफी परेशानी होने लगी। उस दौरान श्रीधरन को इसकी रिपेयरिंग का काम सौंपा गया, और रेलवे ने इसके लिए 6 महीने का समय दिया। वैसे नॉर्मली यह काम ज्यादा से ज्यादा 3 महीने का था, लेकिन श्रीधरन ने इसका चार्ज संभालते हुए पूरा काम 46 दिनों में ही खत्म कर दिया। श्रीधरन के इस काम को देखकर रेलवे मिनिस्टर ने उन्हें सम्मानित किया था।
कोंकण रेलवे का बदला स्वरूप
साल 1987 में ई.श्रीधरन को वेस्टर्न रेलवे का जनरल मैनेजर नियुक्त किया गया। लेकिन 3 साल बाद 1990 में उस समय रेल मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस ने श्रीधरन को कोंकण रेलवे के कायाकल्प का भार सौंपकर उन्हें CMD एप्वॉइंट कर दिया। गोवा में जुआरी नदी पर बनने वाले इस ब्रिज का जिम्मा श्रीधरन के कंधों पर था। यह प्रोजेक्ट काफी यूनिक था, क्योंकि यह इंडिया का पहला मेजर प्रोड्क्ट था जो BOT (Build-Operate-Transfer) पर बेस्ड था। इसका स्ट्रक्चर टिपिकल इंडियन रेलवे सेट-अप से बिल्कुल अलग था। इसमें 93 ट्यूनल बनाए गए।
और बन गए 'मेट्रो मैन'
1970 में डिप्टी चीफ इंजीनियर रहते हुए श्रीधरन को कलकत्ता मेट्रो की जिम्मेदारी सौंपी गई। यह भारत की पहली मेट्रो रेल सेवा थी। श्रीधरन ने काफी मेहनत और समझदारी से इस प्रोजेक्ट को पूरा किया। जिसके चलते चारों ओर उनकी खूब तारीफ हुई। हालांकि साल 2000 में दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (DMRC) के मैनेजिंग डायरेक्टर रहते हुए श्रीधरन ने दिल्ली मेट्रो की जिम्मेदारी संभाली। इसके चलते उन्होंने मिनिस्ट्री से मेट्रो कोचेस के लिए स्टैंडर्ड गेज बनाने की बात कही, जो कि ग्लोबली मेट्रो रेल में यूज होता है। लेकिन मंत्रालय इसमें भारतीय रेलवे की तरह ब्रॉड गेज का इस्तेमाल करना चाहता था। जिसको लेकर कई मिनिस्टर से श्रीधरन की बहस भी हुई। लेकिन अंत में श्रीधरन को गीता का पाइ याद आया और उन्होंने अपनी लड़ाई जारी रखी। दिल्ली मेट्रो में 16 साल की नौकरी करते हुए श्रीधरन ने इसका स्वरूप ही बदल दिया। इसीलिए लोग उनको 'मेट्रो मैन' कहकर पुकारने लगे। श्रीधरन को 2001 में पद्मश्री और 2008 में पद्म विभूषण अवार्ड से सम्मानित किया गया।   
Courtesy : forbesindia.com & wikipedia
Image Source : forbesindia.com

Hindi News from India News Desk

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari