15 जनवरी 1956 को दिल्‍ली में जन्‍मीं बीएसपी अध्‍यक्ष और उत्‍तर प्रदेश की पूर्व मुख्‍यमंत्री मायावती आज 61 साल की हो गई हैं। आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़े सूबे उत्‍तर प्रदेश और बहुजन समाजवादी पार्टी का सबसे अहम चेहरा बन चुकी हैं मायावती। कारण अब तक वह चार बार यूपी के सीएम की कुर्सी पर बैठ चुकी हैं। वैसे उनको ये गौरव दिलाने के पीछे सबसे बड़ा हाथ बहुजन समाजवादी पार्टी की नींव रखने वाले कांशीराम का रहा है। ये वहीं कांशीराम थे जिन्‍होंने आईएएस बनने का सपना देखने वाली एक साधारण सी लड़की को उत्‍तर प्रदेश की मुख्‍यमंत्री बनने का सपना दिखाया। एक समय था जब इन्‍होंने मायावती से पूछा था कि उत्‍तर प्रदेश की सीएम बनने के बाद तुमको कैसा लगेगा। अपने इस सवाल को उन्‍होंने इसके जवाब के रूप में सच कर दिखाया था। आइए जानें इन्‍हीं मायावती के बारे में चंद खास बातें...।

ऐसी रही शुरुआत
मायावती का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था। दिल्ली के इंद्रपुरी इलाके में दो छोटे कमरे के मकान में इनका पूरा परिवार (मां-पिता और छह भाई, दो बहनें) रहता था। बचपन से ही माया नाम की इस बच्ची का सपना था कलेक्टर बनने का। बीएड करने के बाद वह प्रशासनिक सेवा की तैयारी में लग गईं। हालात ये थे कि दिन में वो बच्चों को पढ़ाती थीं और रात में खुद पढ़ती थीं। 1977 में इनको एक स्कूल टीचर की नौकरी करनी पड़ी। इसके बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से इन्होंने एलएलबी किया और वकालत भी की।

इनका रहा सबसे बड़ा हाथ

वैसे ये बात शत-प्रतिशत सच है कि आज मायावती जो भी कुछ हैं, उसके पीछे सबसे बड़ा और अहम हाथ हैं कांशीराम का। वो 80 की दशक था जब कांशीराम को उत्तर-प्रदेश की इस काबिल प्रतिभा के बारे में मालूम पड़ा। उनके बारे में सुनने के बाद वह उनसे मिलने के लिए सीधा उनके घर पर आ गए। यहां उन्होंने इनसे बात की और इनके सपने के बारे में मालूम करने की कोशिश की।

फाइनली बनीं यूपी की सीएम
काफी उठापटक के बाद 5 जून 1995 को बीजेपी के सहयोग से मायावती पहली बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं। ये वो पल था जब फाइनली कांशीराम का सपना पूरा हुआ। सीएम बनने के समय मायावती की उम्र सिर्फ 39 साल थी। यह एक ऐतिहासिक पल जब था, जब देश की प्रथम दलित महिला मुख्यमंत्री बनीं थी। यह सरकार वैसे सिर्फ चार महीने चली।

एक बार फिर लौटा इनका दौर
इसके बाद एक बार फिर मायावती का दौर लौटा जब 1997 और 2002 में फिर से बीजेपी की मदद से वह मुख्यमंत्री बनीं। अब मायावती का कद पार्टी और प्रदेश की राजनीति में तेजी के साथ बढ़ रहा था। उधर, कांशीराम की छवि वक्त के साथ धुंधलाती जा रही थी। इसके साथ ही उनका स्वास्थ्य भी तेजी के साथ गिरने लगा था। नतीजा ये हुआ कि साल 2001 में उन्होंने मायावती को अपना राजनीतिक वारिस घोषित किया और 6 अक्टूबर 2006 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। इसके बाद बसपा की पूरी बागडोर आ गई मायावती के हाथों में और अब वो पार्टी की सर्वेसर्वा बनकर आगामी चुनाव में एक बार फिर अपनी जीत का डंका बजाने की तैयारी में लग गई हैं।

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Posted By: Ruchi D Sharma