आम चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी भाजपा ने अपना घोषणापत्र जारी कर दिया है. घोषणापत्र से ज़ाहिर होता है कि जीत और सत्ता की चाह ने एक बार फिर पार्टी को ग़ैर-हिंदुत्व और हिंदुत्व के दो पाटन के बीच लटका दिया है.


पहले जीत और सत्ता की चाह में हो रहे हिंदुत्व के पाटन की बात करते हैं.भाजपा की ओर से हमेशा ये संकेत रहे हैं कि उन्हें मुसलमानों के वोट की ज़रूरत नहीं है क्योंकि उनका एजेंडा ही हिंदुत्व का है. ऐसे में उनकी राजनीति स्वत: मुस्लिम-विरोधी हो जाती है.लेकिन घोषणापत्र में मुसलमानों को जीतने की भाजपा की पुरज़ोर कोशिश दिखाती है कि उन्हें मालूम है कि बग़ैर मुसलमानों के वोट के भाजपा अकेले दम पर लोकसभा में बहुमत नहीं पा सकती है.मुस्लिम हितैषी?भाजपा का घोषणपत्र कहता है भाजपा सरकार देश भर के मदरसों में विज्ञान और गणित की पढ़ाई शुरू करवाएगी.ध्यान देने की बात है कि घोषणापत्र समिति के मुखिया मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि मुसलमानों को शिक्षा और उद्योग में उचित मौक़ा मिलना चाहिए.


अगर भाजपा वाक़ई संजीदा है तो ये वादे अहम हैं. ये दिखाते हैं कि पिछले बीस सालों में अगड़ों, पिछड़ों, सिखों और दलितों की राजनीति करने के बाद भाजपा मुस्लिम हितैषी बन कर भारतीय राजनीति में कांग्रेस पार्टी की उत्तराधिकारी बनना चाहती है.लेकिन ऐसा नहीं है कि इस घोषणापत्र को पढ़ते ही मुसलमानों का दिल पिघल जाएगा और वो झट से भाजपा को वोट दे देंगे.अनुच्छेद 370

यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड मुसलमानों को शादी, तलाक़ और उत्तराधिकार जैसे निजी मामले में क़ुरान की रीति पर चलने की मिली आज़ादी को ख़त्म करने की बात करता है.दोनों मुद्दे भाजपा को मुसलमानों से दूर रखते रहे हैं और रखते रहेंगे.यूँ तो घोषणापत्र में हर क़िस्म के वादे हैं, उसका अधिक ज़ोर शहरों पर है जहाँ भाजपा को जीत की ज़्यादा उम्मीद रहती है.भाजपा का दावा है कि वो शहरी इलाक़ों में सार्वजनिक वाईफ़ाई इंटरनेट का प्रावधान करेगी और उच्च शिक्षा को बढ़ावा देगी. लेकिन घोषणापत्र ये नहीं बताता कि उच्च शिक्षा के बढ़ावे के लिए पार्टी कौन से ठोस क़दम उठाएगी.जीडीपी का छह फ़ीसदउदारवादी आर्थिक नीति की पक्षधर भाजपा, ख़ासतौर से उसके प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी, हर व्यवस्था के निजीकरण की हिमा़यत करते हैं. उनका ये वादा उनकी आर्थिक सोच का अंतर्विरोध दिखाता है.इसी तरह मौलिक सुधार के अधिकतर वादों पर अमल मुश्किल होगा.न्यायालयों की संख्या दोगुनी कर देने का वादा अव्यवहारिक है. न केवल इसके लिए रक़म जुगाड़ना मुश्किल होगा, बल्कि इसका भी भरोसा नहीं कि जजों की संख्या दोगुने हो जाने से मुक़दमों में भी वृद्धि नहीं होगी.

ऐसा ही एक वादा उद्योग से जुड़े लोगों, शिक्षाविदों और समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों को नौकरशाही में सम्मिलित करने से जुड़ा हुआ है. यहां भी सवाल उठता है कि क्या अफ़सर कभी भी ग़ैर-बाबुओं को अपने बीच आसानी से जगह देंगे?रोजगार और निवेशदरअसल पार्टी की सोच क्या है ये तभी पता चलेगा जब वो अपनी कृषि नीति की विस्तृत जानकारी देगी.घोषणापत्र कहता है कि भाजपा सरकार हर नागरिक को पक्का घर मुहैया कराएगी और सस्ते घरों की स्कीम निकालेगी. लेकिन वह ये नहीं बताती ये सब कैसे होगा.भारत में हर छठा नागरिक झुग्गी-झोंपड़ी में रहता है. शहरों में 100 में एक इंसान बेघर है.भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए भाजपा के वादे ठोस नहीं हैं. आश्चर्य है कि जहाँ आम आदमी पार्टी ने जनलोकपाल का नारा देकर दे सवाल से एजेंडा तय किया हुआ है वहाँ भाजपा सिर्फ़ ई-गवरनेंस की बात कर रही है.भाजपा का सबसे रोचक सुझाव है कि वह लोकसभा और सभी विधानसभा चुनाव एक साथ करवाएगी. ऐसा हो जाने से चुनावी ख़र्च बहुत कम हो जाएगा. लेकिन क्या ये संसदीय प्रणाली के आधार को ही नहीं ख़त्म कर देगा?

Posted By: Subhesh Sharma