भाजपा सरकार में इलाहाबाद को मिली बड़ी सफलता

फूलपुर सांसद और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष केशव को मिला डिप्टी सीएम का पद

ALLAHABAD: उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार में संगम नगरी को बड़ी सफलता हाथ लगी है। फूलपुर सांसद और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य को पार्टी नेतृत्व ने डिप्टी सीएम का पद देकर बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है। इस उपलब्धि पर जिले में खुशी की लहर दौड़ गई। जगह-जगह जश्न मनाया गया और पार्टी कार्यकर्ताओं ने मिठाई बांटकर एक-दूसरे को बधाई दी। यह भी बता दें कि जिस तरह से एक चाय बेचने वाला देश चला रहा है उसी प्रकार बचपन में चाय बेचने वाले केशव अब उप्र की सरकार में उप मुख्यमंत्री बनकर बड़ी भूमिका निभाएंगे।

मिला मेहनत का फल

शनिवार दोपहर तक यूपी के सीएम पद के लिए केशव प्रसाद मौर्य का नाम पहले नंबर पर था लेकिन अचानक गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ का नाम सामने आ गया। शाम छह बजे भाजपा के विधायक दल की बैठक में उनके नाम पर मुहर भी लग गई, जिससे इलाहाबादियों के चेहरे पर मायूसी छाने लगी। लेकिन, थोड़ी देर में जैसे ही केशव का नाम डिप्टी सीएम पद के लिए घोषित किया गया, सड़कों पर खुशियां मनाई जाने लगीं। इलाहाबाद के इस लाल ने एक चाय बेचने वाले से यूपी के डिप्टी सीएम का सफर ऐसे ही नही तय किया। इसके लिए पीछे संघर्ष और त्याग की कहानी छिपी हुई है।

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तय किया फर्श से अर्श तक का सफर

करीब 48 साल के केशव प्रसाद मौर्य का जन्म इलाहाबाद (बंटवारे के बाद अब कौशाम्बी जिला) के सिराथू इलाके में बेहद गरीब परिवार में हुआ था। तीन भाइयों में केशव दूसरे नंबर के थे और उनके पिता कभी तहसील कैम्पस तो कभी रेलवे स्टेशन के बाहर फुटपाथ पर चाय का ठेला लगाते थे। केशव और उनके बड़े भाई भी बचपन से ही पिता के काम में हाथ बंटाते थे। पैसों की तंगी के चलते पढ़ाई के लिए पैसे नहीं मिले तो दिन भर चाय के ठेले पर वक्त बिताने वाले केशव ने सुबह अखबार बेचना शुरू कर दिया।

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मोदी से मिलती है केशव की कहानी

जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बचपन में कैंटीन में चाय बेचते थे, उसी प्रकार केशव अपनी पढ़ाई और परिवार के पालन पोषण के लिए चाय का ठेला लगाया। मोदी की तरह 14 साल की उम्र में घर-बार छोड़ ्रकर विश्व हिंदू परिषद नेता अशोक सिंघल का दामन थाम लिया। सिंहल के घर पर संगठन के काम में हाथ बंटाने वाले केशव जल्द ही उनके चहेते बन गए। पढ़ाई के साथ वह विहिप ऑफिस में मेहमानों का सत्कार करते थे। घरवालों की फटकार सुनने के बाद वह बारह साल तक अपने घर नही गए। विहिप दफ्तर में कामकाज के बदले केशव को जो पैसे मिलते थे, वह उसकी एक-एक पाई वह अपने घर जरूर भेजते थे। केशव की शादी के लिए घरवालों को काफी दबाव भी बनाना पड़ा था।

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हारी बाजी जीतकर बने बाजीगर

केशव ने 2007 में इलाहाबाद पश्चिम सीट से पहली बार बीजेपी टिकट से चुनाव लड़ा और हार गए। वर्ष 2012 विधानसभा कौशाम्बी की सिराथू सीट से विधानसभा का चुनाव लड़े और समाजवादी लहर में भी जीत दर्ज कर विधायक बन गए। इस दौरान उन्होंने कई बड़े आंदोलन खड़े किये और सडकों पर खूब संघर्ष किया। संघर्ष का सिलसिला यही नही रुका और 2014 के लोकसभा चुनाव में इलाहाबाद की फूलपुर सीट से पार्टी का टिकट पाने के लिए उन्हें काफी जद्दोजहद करनी पडी। दिग्गजों को किनारे कर भाजपा ने उन पर विश्वास जताया तो केशव ने भी इस सीट पर तीन लाख से अधिक मतों से जीत कर कमल खिला दिया।

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जीता मोदी और शाह का विश्वास

केंद्र सरकार में केशव को मंत्री पद तो नही मिला लेकिन 2016 में उन्हें भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बनाकर पीएम मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने बड़ा दांव खेला। केशव ने भी उन्हें निराश नही किया और विधानसभा चुनाव में बीजेपी को प्रचंड बहुमत दिलाने में बड़ी भूमिका अदा की। केशव को गैर यादव ओबीसी वोटरों को जोड़ने की जो जि़म्मेदारी दी गई, उस पर सौ फीसदी खरे उतरे। उन्होंने ओबीसी के अलावा दूसरे वर्गो को भी जोड़ा। विधानसभा चुनाव में केशव ने ढाई सौ के करीब सभाएं की। यही कारण है कि भाजपा नेतृत्व ने इनाम के तौर पर केशव को उप मख्यमंत्री पद सौंपा है। पार्टी के रणनीतिकार जानते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में इसी फार्मूले और इसी टीम के सहारे मैदान में उतरने से ही बीजेपी अपना पुराना प्रदर्शन दोहरा सकती है।

Posted By: Inextlive