अंतर्राष्टीय महिला दिवस अब मनोरंजन की दुनिया में एक नया शगूफा हो गया है। वजह है कि इस दिन महिलाओं के हक के नाम पर उनकी प्रशंसा और सशक्तिकरण के नाम पर कई महिला प्रधान शो लांच किये जा रहे हैं। बॉम्बे बेगम्स इसी गिमिक का एक नया नमूना है। अलंकृता जिन्होंने लिपस्टिक अंडर माई बुर्का बना कर एक मिसाल दी थी अब वह केवल फॉर्मूला निर्देशका बन गई है। इस बार उन्होंने बॉम्बे बेगम्स के माध्यम से मी टू मूवमेंट को भुनाने की कोशिश की है। लेकिन वह अपनी पिछली फिल्मों के हैंग ओवर में ही नजर आई हैं। परेशानी इस शो के साथ यह है कि इसकी कहानी स्त्री की जिंदगी के बाकी मसलों को छोड़ कर केवल दैहिक समस्या पर ही उलझ कर रह जाता है। बहुत कुछ दिखा जाने और संदेश देने के चक्कर में कहानी की सोच में भटकाव नजर आता है। मगर इसके बाजवूद ऐसे विषयों पर फिल्में बनती रहना तो जरूरी है ही। पढ़ें पूरा रिव्यु

शो का नाम : बॉम्बे बेगम्स
कलाकार : पूजा भट्ट, अमृता सुभाष, शहाना गोस्वामी, प्लाबिता बोरठाकुर, आध्या आनंद, मनीष चौधरी, राहुल बोस, इमाद शाह, विवेक गोमबर, नौहीद
निर्देशक : अलंकृता श्रीवास्तव, बोरनीला चटर्जी
ओ टी टी चैनल : नेटफ्लिक्स
एपिसोड्स : 6
रेटिंग : 2. 5 स्टार

क्या है कहानी
मुंबई का बैकड्रॉप है। पांच नायिकाएं हैं। लिली (अमृता सुभाष), रानी (पूजा भट्ट), आयशा (प्लाबिता बोरठाकुर), सई (आध्या आनंद), फातिमा (शहाना गोस्वामी)। लिली को छोड़ कर, बाकी की सारी नायिकाएं कॉर्पोरेट जगत से ताल्लुक रखती हैं। सई पूजा की स्टेप मदर है। कहानी में सई ही सूत्रधार बनी है। अपनी पेंटिंग्स के माध्यम से वह कहानी के तार जोड़ती जाती है। रानी एक बैंक की मालकिन है। आयेशा और फातिमा उनके साथ काम करते हैं। एक रोज लिली, जो कि एक वैश्या है, उसके बेटे का कार एक्सीडेंट हो जाता है और वह होता है रानी के बेटे से। रानी मामले को निबटाना चाहती है। लेकिन लिली भी कसम खाती है कि वह रानी से सिर्फ पैसे नहीं, बल्कि कुछ और लेकर रहेगी। उसे इज्जत चाहिए। इस चक्कर में वह रानी को कहती है कि उसे फैक्ट्री खोल कर दे। रानी को मजबूरन ऐसा करना पड़ता है। रानी की खुद की जिंदगी में कई मसले हैं। उसका अपना बेटा, दूसरा पति और स्टेप बेटी।

छह एपीसोड में सिमटी कहानी
सई उसे पसंद नहीं करती है। सई खुद कम उम्र में ही एक स्कूल के लड़के के प्रेम में पड़ जाती है। टीनएज प्यार में फिर क्या-क्या होता है, वह इस किरदार से दिखाने की कोशिश है। इन सबके बीच कॉर्पोरेट जगत की उठा-पटक के बीच रानी फंसी होती है । फातिमा आयेशा उसी बैंक का हिस्सा है। आयेशा पर उसके बॉस दीपक (मनीष चौधरी) की गंदी नजर है। फातिमा एम्बीशियस है और वह अपनी शादीशुदा जिंदगी की उठा पटक से परेशान है। उसका पति (विवेक) भी उसी बैंक का हिस्सा है। पत्नी के अंडर काम करना उससे बर्दाश्त नहीं होता है। इन सबके बीच रानी के कुछ सीक्रेट्स हैं। सबकुछ होते हुए भी वह अंदर से बिल्कुल अकेली है। इन सबके बीच किस तरह से स्त्री का शरीर इस्तेमाल होता रहता है या फिर वे इसका इस्तेमाल करती हैं। ऐसे में सबकुछ बिखरा-बिखरा नजर आता है। निर्देशिका ने यही दर्शाने की कोशिश की है। कहानी फिलहाल छह एपिसोड में सीमित है। अगला सीजन भी आएगा। ऐसी उम्मीद है।

क्या है अच्छा
सोच अच्छी है, काफी सशक्त कलाकारों का भी चयन है। कुछ संवाद भी अच्छे है। अमृता सुभाष के किरदार ने शानदार तरीके से खुद को स्थापित किया है। पूजा भट्ट ने अच्छी वापसी की है।

क्या है बुरा
कहानी सिर्फ स्त्री के दैहिक पहलू पर आकर सिमट जाती है। मी टू के मुद्दे को भी सही तरीके से प्रस्तुत नहीं किया जा सका है। फिर जबरन कहानी को खींचा गया है, ऐसा लगता है , कुछ दृश्य बेहद इलोजिकल हैं, जैसे सई का फेक पीरियड गेम। यह सब ओवर द टॉप दिखाने के चक्कर में निर्देशिका की खामियां अधिक गिना रहा है। नायिकाओं को गढ़ने के चक्कर में पुरुष किरदारों पर बिल्कुल ध्यान या तवज्जो नहीं दी गई है। इससे शो और अधिक कमजोर होता जाता है। ऐसा शो में कुछ भी नहीं, जो हमने पहले नहीं देखा हो। सई जैसी छोटी उम्र की लड़की का सूत्रधार बनना भी बचकाना लगता है, ऐसा लगता है कम उम्र में काफी कुछ समझ लिया है।

अभिनय
पूजा भट्ट की वापसी अच्छी हुई है। शहाना, प्लाबिता ने शानदार अभिनय किया है। इस शो की नायिकाएं ही शो की असली यू एस पी हैं। लेकिन बाजी मारी है अमृता सुभाष ने। इस बार एकदम अलग ही अवतार में उन्हें काम करने का मौका मिला है और उन्होंने काफी शानदार तरीके से काम किया है। आध्या ने अपनी उम्र और अनुभव के हिसाब से अच्छा काम किया है। इमाद, राहुल, मनीष चौधरी वगैरह के किरदार पर ख़ास काम नहीं हुआ है। विवेक जैसे सशक्त कलाकार पर भी ध्यान नहीं दिया गया है।

वर्डिक्ट
पूजा भट्ट की वापसी एक लिए फैंस यह शो देखना पसंद कर सकते हैं।

Review by: अनु वर्मा

Posted By: Abhishek Kumar Tiwari