Meerut : समर वेकेशन शुरू हो गए हैं. बच्चों को मस्ती आ रही है मगर पेरेंट्स टेंशन में हैं. स्कूल से बच्चों को अच्छा खासा होमवर्क मिला है. साथ में प्रोजेक्ट्स वर्क भी है. बच्चे खुद होमवर्क कम्पलीट नहीं कर पाते पेरेंट्स के पास वक्त नहीं है. नतीजा बच्चों का प्रोजेक्ट वर्क पूरा करने के लिए प्रोफेशनल्स की हेल्प ली जा रही है. बोले तो होमवर्क इंडस्ट्री. दो माह में इस इंडस्ट्री का टर्नओवर 8 करोड़ रुपए का है...


बच्चों का खेल नहींसात साल की इशिता लंच करते समय अपनी मम्मी को बताती है कि टीचर ने समर वेकेशन पर उसे डॉल हाउस, समर फ्रूट्स, लीफ फाइल, आइसक्रीम स्टिक बॉक्स और ढेर सारा हॉलीडे होमवर्क दिया है। इतना सुनते ही मम्मी के पसीने छूट गए। क्योंकि समर वेकेशन के कई प्लान ड्रॉप करने पड़ेंगे। आखिरकार उन्होंने इसका सॉल्यूशन खोज लिया। उन्हें एक ऐसा पर्सन मिल गया, जो इशिता के प्रोजेक्ट और होमवर्क करेगा। वो भी कुछ हजार रुपयों में। सिटी के तमाम पेरेंट्स ऐसे लोगों से एप्रोच कर रहे हैं, जो बच्चों के होमवर्क और प्रोजेक्ट्स का काम करते हैं और इसके बदले में फीस लेते हैं।मम्मी पापा की टेंशन


स्कूलों से बच्चों को समर ब्रेक में मिलने वाले होमवर्क, प्रैक्टिकल फाइल्स बनाने के लिए दिए जाते हैं। इन प्रोजेक्ट्स को पूरा करने में मम्मी-पापा को पसीने आ जाते हैं। पेरेंट्स को कभी बच्चों के लिए स्पेशल काड्र्स बनाने पड़ते हैं तो कभी क्राफ्ट का सामान। स्कूलों से समर वेकेशन पर मिलने वाले अधिकतर प्रोजेक्ट्स, होमवर्क और प्रैक्टिकल फाइल्स का काम बच्चों की जगह उनके पेरेंट्स को ही करना पड़ता है।बड़े भाई-बहन की आफत

जिन घरों में बड़े बच्चे हैं तो उनके कई जून का टाइम बड़ा ही क्रुशियल होता है। एडमीशन, एंट्रेंस एग्जाम की तैयारी में उनका दिन और रात यूं ही निकल जाता है। ऐसे में उनके सामने भी छोटे भाई बहनों के होमवर्क और प्रोजेक्ट्स बनाने में जिम्मेदारी बढ़ जाती है। वो खुद अपनी स्टडी के लिए टाइम दें या न दें, उनका काम उन्हें हर हाल में करना होता है।बन रही होमवर्क इंडस्ट्रीयहां इकोनोमिक्स में बेसिक माना जाने वाला डिमांड एंड सप्लाई का रूल साफ दिख रहा है। इसी रूल के चलते होमवर्क, प्रोजेक्ट्स और असाइंमेंट्स का काम एक बड़ी इंडस्ट्री की शक्ल लेने जा रहा है। इस समय जरूरत के हिसाब से डिमांड ने इस काम के लिए भी प्रोफेशनल तैयार कर दिए हैं। पेरेंट्स भी काफी तेजी से इन प्रोफेशनल्स की मदद ले रहे हैं।करोड़ों का बिजनेस

जब आई नेक्स्ट ने इस इंडस्ट्री के बारे में पूरी तरह से पता लगाया तो आपको ताज्जुब होगा कि समर वैकेशन में ही होमवर्क इंडस्ट्री का टर्नओवर करोड़ों में होता है। प्रोफेशनल की माने तो समर वैकेशन उनके लिए एक सीजन की तरह होता है। सिटी में सीबीएसई और आईसीएसई में पढऩे वाले स्टूडेंट्स 40 फीसदी स्टूडेंट्स समर वैकेशन में प्रोफेशनल से होमवर्क और प्रोजेक्ट बनवा रहे हैैं। एक स्टूडेंट्स का खर्च अगर दो हजार रुपए आता है तो सिटी में होमवर्क इंडस्ट्री 8 करोड़ की हो गई है। वैसे ये फिगर स्टेबल नहीं है। यह मामला स्टूडेंट के होमवर्क और स्कूल से मिलने वाले प्रोजेक्ट्स पर भी वैरी करता है। सिटी में सीबीएसई और आईसीएसई को 100 से अधिक स्कूल हैं, जिनमें एक लाख से अधिक स्टूडेंट्स स्टडी करते हैं।'समर वैकेशन के दौरान बच्चों को काफी उम्मीदें होती हैं कि कहीं घूमने जाएंगे। इतना होमवर्क और प्रोजेक्ट वर्क मिलने के बाद उनका दिल टूट जाता है। घर और बाहर का काम करने के बाद हमारे पास भी वक्त नहीं होता कि पूरा होमवर्क और प्रोजेक्ट वर्क पूरा करें। फिर भी हम कोशिश करते हैं.'- रजनी शर्मा, दशमेश नगर'हमारे स्कूल में तो इस तरह के प्रोजेक्ट्स नहीं दिए जाते। प्रोजेक्ट का मोटिव बच्चों के ब्रेन का विकास होता है, पेरेंट्स को चाहिए कि प्रोजेक्ट और होमवर्क बाहर से न बनवाएं और अगर स्कूल से ज्यादा प्रोजेक्ट्स बनाने के लिए दिए जा रहे हैं तो स्कूल में जाकर अपनी प्रॉब्लम शेयर करें.'-एचएम राउत, प्रिंसीपल, दीवान पब्लिक स्कूल
'अगर हम कोई भी काम कर रहे हैं तो वो समाज सेवा तो है नहीं, अपनी मेहनत और लागत का ही पैसा हम लेते हैं। बच्चों पर स्कूलों में इतना बर्डन डाल दिया जाता है कि वो खुद अपना काम पूरा कर ही नहीं पाते और हमारी मदद लेते हैं.'-रविन्द्र शर्मा, प्रोजेक्ट मेकर

एनुअल कांट्रेक्ट के साथ भीअब ये होमवर्क और प्रोजेक्ट तैयार करने वाले प्रोफेशनल एक स्टूडेंट के लिए एनुअल कांट्रेक्ट भी कर रहे हैं। अब बच्चे को पूरे साल भर चाहें जितने भी प्रोजेक्ट और असाइंमेंट्स मिलें ये लोग एक बार फीस लेकर उसे पूरा करेंगे। इनके चार्जेज को पे करने के बाद पेरेंट्स पूरे साल बच्चों के प्रोजेक्ट्स, होमवर्क और असाइनमेंट्स जैसी हर चीज से टेंशन फ्री रहेंगे।क्लास एनुअल चार्जनर्सरी सेक्शन - 5 हजार रुपएफस्र्ट टू फोर्थ क्लास - 6 हजार रुपएफिफ्थ टू सेवंथ क्लास - 10 हजार रुपएएर्थ टू ट्वेल्थ - 15 हजार रुपएऔर जॉब छोड़ दी
मीनाक्षी पिछले दो सालों से एक पब्लिकेशन हाउस में काम करती थीं। यहां उन्हें छह हजार रुपए मिलते थे। मीनाक्षी की छोटी बहन दिशा की जॉब सिटी के एक स्कूल में लगी। जहां पेरेंट्स की ये शिकायत रहती थी कि बच्चों को बहुत ज्यादा प्रोजेक्ट्स बनाने को दिए जाते हैं। दिशा ने अपनी बहन से पूछा कि क्या वो प्रोजेक्ट तैयार करेगी, जिसके लिए वह तैयार हो गई। काम के हिसाब से मीनाक्षी पेरेंट्स से फीस लेती हैं। इस काम में वो हर महीने करीब दस हजार रुपए कमा लेती हैं। मीनाक्षी ने पब्लिकेशन हाउस की जॉब छोड़ दी है और इसी काम को फुल टाइम बिजनेस की शेप दे दी है।फैक्ट्स एंड फिगर- सिटी में सीबीएसई, आईसीएसई स्कूल्स हैैं 100 से ज्यादा- इनमें पढऩे वाले स्टूडेंट्स की संख्या एक लाख से ज्यादा।- होमवर्क और प्रोजेक्ट्स बनवाने के लिए 40 परसेंट स्टूडेंट्स लेते हैैं प्रोफेशनल की हेल्प।- एक स्टूडेंट के समर ब्रेक होमवर्क और प्रोजेक्ट्स पूरे करने का चार्ज 2 हजार रुपए।- सिर्फ समर वैकेशन में इस इंडस्ट्री का टर्नओवर 8 करोड़ से अधिक।

Posted By: Inextlive